बुधवार, 17 दिसंबर 2014

ये कैसा जैहाद है जो मासूमो की जान लेता है


पाकिस्तान मे 142 मासूम स्कूली बच्चो की गोली मारकर तालीबानी आंतक कारियो ने हत्या कर दी , जैहाद के नाम पर, बदले की आग मे मासूमो की हत्या कौनसा धर्म देता है ये समझ से परे है , कौनसी कुरान मे लिखा है कि मासूमो की हत्या कर कोई पवित्र जंग लडी जा सकती है , कुरान तो किसी बेकसूर की हत्या को गुनाह मानता है जिससे ऐसा गुनाह करने वालो को जहन्नुम भी नसीब नही होता , कितना दर्दनाक लगता है सुनकर कि परीक्षा दे रहे बच्चो को तालीबानी आंतकियो ने गोलियो से भून दिया , उन आंतकियो के हाथ नही कापे मासूमो को मारते समय, क्या उनको ये ख्याल नही आया कि उनके भी बच्चे है , उन मा बापो का खयाल नही आया जो अपने जिगर के टुकडो को एक अच्छा नागरिक बनाने के लिए तालिम देने के लिए भेजे थे ,
अगर ये जैहाद है तो धिक्कार है ऐसे जैहाद पर , शर्म आनी चाहिए ऐसे धर्म पर जो मासूमो की जान लेता है जिनका कोई कसूर भी नही था , क्या बिगाडा था इन मासूमो ने इन आंतकियो का , अगर बदला ही लेना था तो उन लोगो से लेते जिन्होने कुछ बिगाडा था , आंतकियो के आकाओ देख लेना चहिए कि कितनी माताए , और पिता अपने लाडलो को , उन ताबूतो मे सुला रहे थे जो उनके लिए उन्होने बना दिए थे ,अगर इन्ही ताबूतो मे उन आकाओ के जिगर के टुकडे होते तो खुद उन पर क्या बीत रही होती ,क्या उनका कलेजा ये सब देख कर भी नही पसीजा कि उनकी इस करतूत को अल्लाह भी कभी माफ नही करेगा और उन्हे दोजख भी नसीब नही होगा , मासूम फूल जैसे बच्चे कफन मे लिपटे जैसे कह रहे हो ए आतंक के आकाओ हमने आपका क्या बिगाडा था जो आपने हमे खिलने से पहले ही मिट्टी मे मिला दिया
इस्लाम मे अगर जैहाद बेकसूर लोगो को ही मारकर लडा जाता है तो लानत है ऐसे जैहाद पर , ये मासूम कफन मे लिपटे बच्चे जैसे कह रहे हो कि ए आतंक के आकाओ बताओ तो जरा कि कुरान की किस आयतो मे लिखा है कि बेकसूर मासूम लोगो की जान लेकर जन्नत नसीब होती है , मोहम्मद साहब ने तो ये कहा है कि जो लोग बेकसूरो का कत्ले आम करते है उनको कोई बक्शीश नसीब नही होती , इन मासूमो की बद दुआए, इन बच्चो के अम्मी अब्बूओ की ताउम्र निकलने वाली आहे इन आतंक के आकाओ को सकून से नही जीने देगी , इन आतंक के आकाओ को ताउम्र इतनी जिल्लत जीने को मजबूर होना पडॆगा कि वे बाकी की जिन्दगी कितनी शकुन से गुजारना चाहे , कितने ही अपने गुनाहो को माफ करने के लिए प्रयशिचत करे लेकिन उनके इस गुनाह की सजा तो उन्हे जहन्नुम मे भी भुगतनी ही पडॆगी क्योकि उन्होने ऐसे मासूमो की जान ली है जिनका कोई गुनाह नही था वे बेकसूर थे और अपनी तालीम ले रहे थे

मंगलवार, 23 सितंबर 2014

इन बुजुर्ग को अपनो की तलाश है , क्या आप इन्हे अपनो से मिलाने का कोइ सार्थक प्रयास करेंगे ताकि ये अपनो से मिल सके


नाम -भरत बिस्बास   उम्र 50-55 साल
पता   गांव - बून्दी पाडाजिला -24 परगना  राज्य-  पस्चिम बंगाल  का बताते है
भाइ का नाम- काली बदन बिस्बास बताते है ,जो सरकारी शिक्षक है
वर्तमान मे ये बुजुर्ग 
अपना घर व्र्धाश्रम , व्रन्दावन एंक्लेव ,जयपुर रोड, बीकानेर राजस्थान 
संस्था का  फोन  नम्बर, 0151-2526333  09414147142
मे पिछले सवा महिने से है , इस संथा को ये भरतपुर मे मिले थे , ये अपने घर जाने को एक एक दिन गिन गिन कर निकाल रहे है , आपका एक क्लिक इनको अपनो से मिलवा सकता है , हो सकता है कि आपके किसी दोस्त के माध्यम से ये खबर  इनके परिजनो तक पहुंच जाए और इनके परिजन इनको अपने घर ले जाए , जो इनको तलाश करते करते थक हार गए हो इसे इतना अधिक शेयर करे कि 24 घंटो मे इनके परिजनो को इनकी सूचना मिल जाए और बिछडे हुए ये बुजुर्ग जल्दी से जल्दी अपनो के बीच हो, वो मिलन कितना सुखद होगा जब बिछडॆ हुए मिलेंगे . आज मुझे इस संस्था मे जाने का अवसर मिला ये बुजुर्ग अपने घर जाने को बेताब लगे इन्होने मुझे कहा कि आप यहा के इंचार्ज को कहे कि कल मुझे ये मेरे घर भेज दे इनकी घर जाने की बेताबी और उनके आगर्ह  ने मुझे झकझोर दिया , हालांकि संस्था द्वारा भी इन्हे परिजनो से मिलाने का  प्रयास किया जाना बताया गया  लेकिन सवा महिने के समय ने इन बुजुर्ग को बहुत ही थका दिया है ये जल्दी से जल्दी अपने घर जाना चाहते है , अगर हमारे प्रयासो से ये शिघ्र अपनो से मिल पाते है तो इससे सुखद  क्या हो सकता है मेरा सम्पर्क

09414425812

मंगलवार, 9 सितंबर 2014

शिक्षक दिवस पर राजस्थान राज्य के दो मंत्रियो और एक आइ ए एस अधिकारी ने किया शिक्षको को अपमानित

शिक्षक दिवस पर जिस तरह राजस्थान राज्य के दो मंत्रियो और एक आइ ए एस अधिकारी ने शिक्षको को अपमानित किया वह बहुत ही दुखद है .राज्य के शिक्षको का आत्म सम्मान बढाने के बजाय, उनके आत्म सम्मान को चोट पहुचाइ , मौका था शिक्षक दिवस पर राज्य स्तरीय सम्मान समारोह का , जहा कि वे राज्य के उत्तम शिक्षको को सम्मानित कर रहे थे. राज्य के शिक्षा मंत्री श्री काली चरण सरार्फ ने इस अवसर पर कहा कि प्रदेश मे पढ्कर कोइ टापर नही बन सकता ,तो क्या माननीय शिक्षा मंत्री जी ये बताएगे कि बोर्ड और विश्वविधालयो मे हर साल जो टाप 10 और 100 की लिस्ट निकाली जाती है वो क्या राज्य के बाहर की होती है या फिर ये लिस्टे सही नही है ?क्योकि मंत्री जी के अनुसार तो प्रदेश मे पढ्कर कोइ टापर बन ही नही सकता . शायद माननीय मंत्री जी ये भूल गये कि राजस्थान के युवाओ की जितनी डिमांड देश विदेश मे है उतनी किसी भी प्रदेश के योग्य युवाओ की नही है ,राज्य के युवा ही देश की कइ बडी प्रतियोगी परीक्षाओ मे अपना परचम फहरा चुके है और तो और राज्य के कोटा मे तो पूरे देश के युवा अपना भविस्य बनाने राज्य के शिक्षको के पास ही आते है , इन कोचिग संसथानो प्रदेश मे पढ्आने वाले राजस्थान के शिक्षक ही है जिनकी धाक पूरे देश मे है , सिविल सेवाओ ,राज्य की प्रशासनिक सेवाओ,सीए,सी एस, आइ आइ टी, आइ आइ एम जैसी महत्वपूर्ण परीक्षाओ मे राजस्थान के शिक्षको द्वारा पधाए गये छात्र परचम फहरा रहे है,क्या ये राज्य के शिक्षको का योगदान नही है? वे क्या विदेशो से पढ्कर आते है ? होना तो ये चाहिए था कि माननीय शिक्षामंत्री जी इन शिक्षको का मान बधाते हुए उन शिक्षको को इनसे प्रेरणा लेने की नसीहत देते जो शिक्षक अपने कर्तव्यो का पालन जिम्मेदारी से नही करते, उन्होने तो पूरे शिक्षक वर्ग को ही ये कहकर लाछिंत कर दिया कि "प्रदेश मे पढ्कर कोइ टापर नही बन सकता", ये तो सम्मान के बहाने बुलाकर अपमानित करने वाली बात हो गइ, इससे शिक्षक वर्ग का आहत होना स्वाभाविक ही है,एक बात और अपरोक्ष रूप से माननीय शिक्षा मंत्री महोदय ने अपनी योग्यता पर भी स्वय ही प्रश्न चिन्ह लगा लिया, कोइ उनसे पूछे कि माननीय जी जब आप ये समझते है कि प्रदेश मे पढ्कर कोइ टापर बन ही नही सकता
तो फिर आप तो इस शिक्षॅण व्यवस्था के मुखिया है ,जब आप ही ये सोचते है तो इसके लिए जिम्मेदार भी तो आप ही हुए ना ? फिर क्यो आप इस पद को धारण किए है ?आपको तो नैतिकता के आधार पर तुरंत पद्त्याग देना चाहिए
बात यही तक होती तो और बात थी इसी समारोह मे माननीय पंचायत राज मंत्री श्री गुलाब चन्द कटारिया ने तो शिक्षको द्वारा अंतिम संस्कार तक का खर्चा भी स्कूल के खाते से निकालने का आरोप लगाकर शिक्षको प्रति अपनी गलत मानसिकता का उदाहरण पेश कर दिया जबकि आश्चर्य तो इस बात का है कि वे स्वय शिक्षक रह चुके है .क्या माननीय कटारिया जी ये बताएगे कि एक शिक्षक को वेतन के अलावा किस मद से पैसा उथाने का अधिकार है ? ऐसा लगता कि जैसे दोनो ही माननीय मंत्री जी ये तय करके आये थे कि उन्हे शिक्षक सम्मान समारोह मे शिक्षको को सम्मानित करने की बज़ाय अपमानित ही करना है होना तो यह चाहिए था कि सम्मानित होने वाले शिक्षको के किए कार्यो का उल्लेख करते हुए पूरे शिक्षक वर्ग को इनसे प्रेरणा लेने की बाते कही जाती ताकि अन्य शिक्षॅको को भी इनसे प्रेरणा मिले लेकिन हुआ इसके विपरित
जब मंत्रियो को शिक्षको के प्रति ये उद्गार व्यक्त करते देखा तो राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव श्याम एस अग्रवाल फिर क्यो पीछे रहते उन्होने तो इन दोनो मंत्रियो को भी पीछे छोडते हुए यहा तक कह दिया कि "राजस्थानियो मे योग्यता ही नही है, मै उन्हे साथ ही नही रखता " लगता है अग्रवाल साहब राजस्थान के नही है और उनकी राजस्थानियो के प्रति कैसी मानसिकता है ये भी सबके सामने आ गया . अब तो ये भी जांच का विशय हो गया है कि उनके अधीन जितने भी लोग है वे कहा से ताल्लुक रखते है, उनके मातहतो मे कितने राजस्थान के बाहर के है , तथा उनके द्वारा लिये जाने वाले निर्णयो मे किन किन लोगो की महत्वपूर्ण भूमिका होती है कही उनकी कथनी सही तो नही है वे झूथ तो नही बोल रहे या वास्तव मे उनकी कथनी और करनी मे बहुत अंतर होता है ? जिस राज्य की जनता के चुने हुए जंप्रतिनिधियो ने उन्हे इस पद पर सुशोभित किया उन्हे राजस्थानियो मे कोइ योग्यता ही नही दिखाइ देती, यही नही इसीलिए वे राजस्थानियो को अपने साथ ही नही रखते , अतिरिक्त मुख्य सचिव साहब शायद ये नही जानते कि राजस्थानियो ने तो पूरे देश मे ही नही विश्व मे अपनी पहचान बना रखी है , अपने सामान्य घ्यान को थोडा बेहतर कर लीजिए , पूरे देश से यदि राजस्थानियो को निकाल दिया जाए तो देश की अर्थ्व्यवस्था ही डावाडोल हो जायेगी एसे कुशाग्र है हमारे प्रदेश के लोग ,इसलिए क्रिपया इन राजनेताओ के सुर मे तो सुर मत मिलाइए , प्रदेश के लोगो को इतना तो मत अयोग्य बताइए कि उनके आत्म सम्मान को आघात लगे अपने पद की गरिमा को इतना मत गिराइये कि प्रदेश की जनता को एसा न लगे कि हमारे प्रदेश के दूसरे बडे मुख्य अधिकारी की नज़र मे राजस्थानियो की क्या हैसियत है मंत्री गण तो केवल शिक्षको को ही कोस रहे थे आपने तो पूरे प्रदेश वासियो की योग्यता पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया . आज पूरे शिक्षॅक वर्ग मे और प्रदेश वासियो मे रोष व्याप्त है जिसे कोइ क्षमा याचना भी दूर नही कर सक्ती

रविवार, 29 जून 2014

क्या आस्था, विश्वास, भक्ति, श्रद्धा के आधार पर् किसी को भगवान माना जा सकता है ? क्या हमारे धर्म ग्रंथो मे कोइ मानदंड बना रखे है जिसके आधार पर ये तय किया जा सके कि भगवान किसे माना जाए और किसे नही ?

शिर्डी के साइ बाबा को भगवान  मानने को लेकर हमारे धर्म गुरूओ मे बहस छिड गइ है . साइ के भक्त उन्हे भगवान  मानते है तो शंकराचार्य सरस्वती उन्हे भगवान की तरह महिमा मंडित किए जामने का विरोध करते है . प्रश्न ये आता है कि क्या आस्था, विश्वास, भक्ति, श्रद्धा के आधार पर् किसी को भगवान  माना जा सकता है ? क्या हमारे धर्म ग्रंथो मे कोइ मानदंड बना रखे है जिसके आधार पर ये तय किया जा सके कि भगवान किसे माना जाए और किसे नही ?

शंकराचार्य जी का सोच शायद ये है कि यदि इसी तरह 150 साल पूर्व हुए ऐसे किसी संत को भगवान की तरह पूजा जाने लगा तो हो सकता आने वाली पीड्डीयो को  ब्रह्मा, विश्नु, महेश, राम, क्रिश्न , आदि को सदियो से मान रही सनातनी परम्परा मे इनका नाम विलोप हो जाएगा और लोग इन्हे भूल जाएगे और 200-500 सालो मे हुए महापुरूशो को लोग भगवान मानकर यदि  पूजने लग जाएगे  तो इस प्रकार भावी पिधी टुकडो मे बंट जाएगी और सनातनी परम्परा विलुप्त हो जाएगी जिससे हिन्दू धर्म ही संकट मे पड जाएगा इस्लिए शायद शंकराचार्य सरस्वती जी विचलित हो गए होंगे , उन्होने हिन्दू धर्म को टुकडो मे बंट्ने से बचाने के लिए ही शायद एसा बयान दिया हो , इसमे उनकी भावना हिन्दू धर्म को बंट्ने से रोकने की हो सकती है

अब प्रश्न ये आता है कि क्या किसी संत  महात्मा, फकीर, महापुरूश या मानव मात्र की सेवा करने वाले महान आत्मा को भगवान मानना उचित होगा ? साइ बाबा का इतिहास देखा जाए तो वह 150 साल पुराना बताया जाता है जिसमे उन्होने फकीर के वेश मे रहकर दीन दुखियो की सेवा की , उनके अनुयाइयो ने उन्हे पूजना शुरू कर दिया  देश मे जगह जगह उनके मन्दिर बनने लगे, उनकी मूर्तियो की स्थापना की जाने लगी और साइ मन्दिर अलग से बनने लगे , हिन्दू धर्म के ही ज्यादातर लोगो की भावना साइ बाबा की ओर होने लगी , जब हिन्दू धर्म के सनातनी लोगो ने एक बडे वर्ग को साइ बाबा को भगवान मानकर पूजा अर्चना करते देखा तो उन्हे लगा कि इस तरह तो हिन्दु धर्म टुकडो टुकडो मे विखंडित होकर बिखर सकता है तो उन्होने इसका विरोध शुरू कर दिया जिसकी परिनिती हम आज देख ही रहे है

ये यक्ष प्रश्न है कि क्या सनातनी धर्म को मानने वालो का ये विचार उचित है कि इससे सनातन धर्म को नुकसान पहुचेगा ?  क्या हिन्दु धर्म् के टुकडॆ हो जाने से किसी दूसरे धर्म को भारत मे पैर फैलाने मे आसानी रहेगी ? क्या संत, महात्मा, फकीरो या महापुरूशो को भगवान का दर्जा देकर विभिन्ं खंडो मे हिन्दू धर्म को बांट्कर उसे विखंडित किया जा रहा है? ताकि भविश्य मे लोग विभिन्न संतो, महात्माओ व फकीरो के अनुयाइ होकर बट जाये , पर्श्न ये भी है कि यदी हम हर काल खंड के किसी संत, महात्मा या फकीर को भगवान मानकर पूजने लगे तो हर 150-200 सालो के बाद भगवान बदल जाएगे , फिर तो हर शंकराचार्य की गद्दी पर बैथने वाला अपने को भगवान मान कर अपनी पूजा अर्चना शुरू करा देगा और उनके अनुयाइ उन्हे भगवान मानकर पूजते रहेंगे, और फिर ये परम्परा मनुश्य के जीवन काल तक ही सिमट कर रह जाएगी , कल्पना किजिए कि यदि एसा होने लगा तो बह्र्मा, विश्नु महेश, राम, क्रिश्न को तो आने वाली पीधीया भूल ही जाएगी
फिर तो हर संत आशाराम बन जायेगा और अपने अपने अनुयाइयो की जमात के साथ भगवान की तरह पूजा जाने लगेगा , इससे ऐसा लगता है कि  द्वारका के शंकराचार्य जी की पीडा वाजिब ही लगती है कि इससे हिन्दू धर्म को नुकसान ही होगा , हिन्दू विभिन्न संतो को भगवान मानकर उन्ही मे रम जायेगा और बंट कर सनातनी परम्परा को समाप्त कर देगा

शायद इसीलिए द्वारिका के शंकराचार्य ने इसकी कल्पना कर ही साइ बाबा को भगवान नही मानने की बात कही होगी और सत्य् भी है कि हम अपने ही सनातन धर्म को  किसी व्यक्ति विशेश की आस्था की आड मे बांटने को तैयार  है , हमारे समाज को सैकडो हजारो संत, महात्माओ, फकीरो  महापुरूशो ने  मार्गदर्शन  दिया है क्य हम उन्हे भी भगवान मानकर पूजना आरम्भ कर  दे यदि ऐसा करने लगे तो गोस्वामी तुलसी दास, कबीर दास, तुकाराम , भगत सिन्ह, राजगुरु, महात्मा गान्धी, मदर टेरेसा जैसे हजारो सैकडो महापुरूश भगवान की श्रेणी मे आ जाएगे

 इसलिए उचित यही होगा कि  संत , महात्माओ, फकीरो, महापुरूशो के आर्दशो को अपनाते हुए हमारी सनातनी परम्पराओ को अक्षुण्ण बनाए रखे और इस विवाद मे न पडॆ कि किसे भगवान माना जाए , हमारे वेद, पुराणो और ग्रंथो मे जब अतिथी देवो भव जैसे उदाहरण भरे है तो फिर अतिथी की मूर्ती बनाकर उसे पूजने मे क्या हर्ज है लेकिन क्या हम ऐसा करते है ? नही करते ना तो फिर  साइ के दिखाए मार्ग का हम अनुसरण करे, उनकी तरह दीन दुखियो की सेवा मे अपन समय बिताए न कि इसमे कि साइ भगवान है या नही इसमे अपना समय बरबाद करे , स्वय साइ ने कहा  "सबका मालिक एक" उन्होने ये तो नही कहा कि "सबका मालिक मै"  इसका मतलब ये कि साइ बाबा ने भी जब अपने को भगवान नही कहा उन्होने भी मालिक किसी और को बताया तो हम उन्हे ही मालिक क्यो बता रहे है? ये भी तो उनके बताए मार्ग का अनुसरण नही हुआ ना. जबकि हम कहते है हम उनके अनुयाइ है . ये कैसे अनुयाइ हुए हम भाइ . उनके कही बात को ही हम नही मान रहे और उनके अनुयाइ होने का दंभ! ये कैसी भक्ति?

शुक्रवार, 16 मई 2014

चलो आखिर अच्छे दिन आ ही गये

चलो आखिर अच्छे दिन आ ही गये 
पिछले करीब दो महिनो से देश की जनता ये ही सुन रही थी कि उसके अच्छे दिन आने वाले है , 15 मइ तक ये असमंजस् ही था कि क्या पता अच्छे दिन आ पायेंगे भी या नही , लेकिन आज के लोक सभा परिनामो ने ये सच कर ही दिखाया कि जनता ने अच्छे दिन लाने वालो को मौका दे दिया है , अब भाजपा को जनता के लिये अच्छे दिन लाने होंगे , जनता के अच्छे दिन कौन से है जरा उनके बारे मे भी देख ही लेना चहिए , हालांकि मोदी जी ये अच्छी तरह जानते है कि एक आम आदमी के लिये अच्छे दिन कौन स होंगे ,
फिर भी एक आम आदमी के अच्छे दिन तो उस दिन शुरू होंगे जिस दिन महंगाइ कम होंगी , पूरी बिजली मिलेंगी ,पीने का शुध पानी मिलेगा, हर गांव सदक से जुद जायेगा, भर्स्ताचार कम होगा, जनता की तकलीफे दूर होंगी , पेत्रोल् दीजल के दाम कम होंगे , युवाओ को रोजगार मिलेगा,महिलाओ की सुरक्शा होगी , हर आदमी की मूलभूत आवश्यकताओ का निराकरन होगा,
मोदी जी को ये याद होगा कि उन्होने चुनावी सभाओ मे कांग्रेस द्वारा 100 दिन मे मह्ंगाइ कम करने के वादे को पूरा न करने को जनता से बहुत भुनाया था , उनसे ये बुलवाया था कि भाइयो बहनो क्या कांग्रेस 100 दिन मे मह्ंगाइ कम पाइ , बोलो हा या ना , वे जनता के मुह से सुनते थे नही , अब अगर मोदी जी ने जिन क्शेत्रो मे जो जो वादे किये है और जितने समय मे करने का वदा किया है और अगर वे उनको भूल गये तो फिर 2019 मे उनका भी वही हश्र होगा जो आज कांग्रेस का हो रहा है , अगर भाजपा को सिर्फ 60 महिने ही रहना हो तो वो जनता से वादे कर भुल सकती है और यदी उसे अगले 60 साल देश पर राज करना है तो पहले 60 महिनो मे जनता से किये वादो पर खरी उतर कर बताए , तो फिर कोइ दूसरी पार्ति आगे नही आ सकती , लेकिन ये भाजपा की पहली पूर्न सरकार होगी जो किसी की वैसाखी के बिना खुद की अपनी होगी , अब भाजपा को ये तय करना है की वो अपनी पहली पूर्न बहुमत की सरकार मे जनता मे वो ऐसा विश्वास जमा ले कि फिर कोइ उसकी जगह नही ले सके
अब तय भाजपा को करना है कि वो सत्ता के मद मे चूर होकर जनता से किये वादे भूल जाती है या उन्हे पूरा कर जनता मे अपनी साख जमाती है

सोमवार, 12 मई 2014

नरेन्द्र मोदी का विश्वास

लोकसभा चुनावो के नतीजे अभी आये नही है लेकिन मोदी जी ने प्रधान मंत्री बनने के सारे इंतजामात शुरू कर दिए है . उन्होने संघ मे श्री मोहन भगवत जी से मिलकर ये बता दिया है कि उनके मंत्री मन्दल मे आदवानी और मुरली मनोहर जोशी नही होंगे ये समाचार पत्रो मे आज प्रमुखता से छपा है . यही नही उन्होने ये भी कह दिया बताते है कि उन्हे मंत्री मन्दल अपने हिसाब से ही बनाने दिया जाए , शाम होते होते न्युज चैनलो पर यह भी दिखाया जाने लगा कि मोदी जी ने गुजरात मे अपने उत्तराधिकारी के चयन के लिए गुजरात बीजेपी कोर समिति की बैथक बुलाकर अपने प्रधानमंत्री बनने की पूरी तैयारी के तहत आनन्दी बेन पतेल को गुजरात की भावी मुख्यमंत्री बनाने का पक्का इंतजाम कर दिया है. खास बात ये है कि अभी तक एकिजत पोल भी अभी नही आये है जिससे ये अनुमान हो कि इनके कारन भी तैयारी की जा रही हो लेकिन मोदी जी तो एकिजत पोल से भी एक कदम आगे चल रहे है . मालूम नही उन्हे कैसे ये पता लग चला है कि वे प्रधान मंत्री बनने वाले है और अब उन्हे कोइ रोक नही सकता .इतना आत्मविश्वास तो आज तक जवाहर लाल नेहरू, इदिरा गान्धी , अतल बिहारी वाजपइ तक को नही हुआ . वास्तव मे मोदी प्रधान मंत्री बनने के लिए बहुत बेताब दिखाइ देते है , जैसे जैसे 16 मइ नजदीक आ रही है उनका सब्र का बान्ध तूतता दिखाइ देता है वे अब बिना किसी देरी और बाधा के देश के अगले प्रधान मंत्री बनने को तैयार है
लेकिन सत्ता बजार से जो खबरे आरही है वे बीजेपी को पुरी बहुमत नही देरही ऐसे मे मोदी जी बिना इधर उधर देखे प्रधान मंत्री बनने की पूरि तैयारी किस भरोसे कर रहे है क्या उन्होने सारी परिसिथयो पर गौर कर लिया है और हर तरफ से आश्वसत होने के बाद ही एसा कर रहे है ? क्या कोइ भी राज नेता इतना बदा रिस्क ले सकता है जिसमे कही भी कोइ भी बाधा आने कि सभावना हो सकती है उसके बाद भी प्रूरी तैयारी क्या दर्शाती है? ये सभी राजनीतिक लोगो को सोचने की जरूरत है , इतना ओवर कंफिदेंस कैसे किसी मे हो सकता है ? भारतीय राजनीति मे शायद ये पहला मौका है जब कोइ व्यक्ति प्रधान मंत्री बनने के लिए इतना बेताब ही नही हो बल्कि उसके लिये सारे पूर्व इंतजाम भी कर ले . एक पल के लिये भी यदि इस सबकी तैयारी के बीच चुनाव परिनाम मोदी जी की अपेक्षा के अनुरूप नही आये या कोइ पेंच फस गया तो कितनी हास्यास्पद सिथति होगी शायद मोदी जी प्रधान मंत्री बनने की हसरत मे भूल गए है .इससे तो एसा ही लगता है की मोदी जी ने यह जान लिया है कि चुनाव परिनाम चाहे जो आये , उन्हे तो प्रधान मंत्री बनना ही बनना है , या तो वे भविश्य वक्ता है या उन्होने एसी बिसात बिछा ली है कि हर हलत मे परिनाम जैसे वो चाहते है वैसे ही आने वाले है

गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

नरेन्द्र मोदी का सुनियोजित चुनावी प्रचार प्रबंधन व व्यूह रचना

देश में लोकसभा चुनावों की प्रचार दौड में नरेन्द्र मोदी की प्रबंधन नीति व व्यूह रचना ने सभी राजनैतिक दलों को पीछे छोड दिया है । चाहे नरेन्द्र मोदी की कितनी ही आलोचना की जा रही हो लेकिन ये तो सभी क्षेत्रीय पार्टीयों व राष्ट्ीय दलों को मानना ही पडेगा कि मोदी का चुनावी प्रचार प्रबंधन जिस तरह का है उससे ये लगता है कि वे आधी जंग तो जीत ही चुके है बाकी की लडाई वे चुनावों के बाद आने वाले परिणामों से शायद जीत जाए । 

भाजपा की रणनीति इससे पहले हमेशा अलग तरह की रही है लेकिन जब से प्रचार प्रबंधन के मुखिया के तौर पर मोदी को बिठाया गया है वह पहले से भी सुनियोजित तरीके से हो रहा है । देखिए कैसे इसका पहला उदाहरण तो ये  है कि मोदी ने बडोदरा में अपने नामाकंन से पहले जसोदा बेन को वहां से हटा दिया क्योकि वे जानते थे कि जैसे ही वे अपने नामाकंन में जसोदा बेन को अपनी पत्नी के रूप मे दर्शाएगे पूरे मीडिया और राजनैतिक दलों में बहस शुरू हो जाएगी और मीडिया वाले तो जसोदा बेन तक पहुंचने उनसे बातचीत करने सवाल जबाव करने की कोशिश तो करेगें ही ऐसे में यदि जसोदा बेन ने भावुकता मे आकर कुछ बोल दिया तो विरोधी राजनैतिक दल जनता को गुमराह करने का प्रयास तो करेगे ही यही नही मीडिया तो बवाल ही मचा देगा और हो सकता है कि कोई भी ऐसी बात जो जसोदा बेन के मुंह से निकल जाएं जो उनके लिए परेशानी कर सकती है इसलिए उन्होने नामांकन से पहले ही जसोदा बेन को चार धाम की यात्रा पर जाने की बात उनके भाई से कहलवा कर मीडिया का मुंह बंद कर दिया जबकि बहुत ही शांत चित्त से सोचने की बात है कि उतराखण्ड के चार धाम की यात्रा तो 7 मई 2014 से प्रारम्भ होनी है जसोदा बेन क्या पैदल रवाना हुई है गुजरात से और वर्तमान स्थिति ये बता रही है कि वे अभी मेहसाणा मे अपने भाई के यहां है । तो क्या वे चार धाम की यात्रा कपाट खुलने से पहले ही कर आई या तो  उस समय झूठ बोला गया या अभी झूठ बोला जा रहा है एक बार तो झूठ बोला ही गया है । ये मोदी की व्यूह रचना का ही खेल है कि वे जसोदा बेन को लेकर उठने वाले बवाल को किस तरह समेटने मे कामयाब हो गए ।

मोदी की चुनावी व्यूह रचना का कमाल देखिए कि वे किस तरह प्रबंधन करके जनता को आकर्षित कर रहे है । जब देश की 117 लोकसभा सीटों पर आज 24 अप्रेल 2014 को चुनाव हो रहे है तो मोदी वाराणसी से अपना पर्चा दाखिल कर रहे है चुनावी रणनीति का इससे अच्छा प्रबंधन तो कांग्रेस तक नही कर सकी । जिन लोकसभा सीटों पर आज चुनाव हो रहे है वहां चुनाव प्रचार बंद है लेकिन देश के राष्ट्ीय चेैनलो पर मोदी के नामांकन का जो प्रसारण दिखाया जा रहा है तथा वहां जो भीड जुटी है उसे देखकर इन 117 लोकसभा सीटों के मतदाताओं के दिलो दिमाग पर कुछ तो असर पडेगा हीे कम से कम ऐसे मतदाता जो असमंझस की स्थिति मे हो उसके मानस को बदलने में सहायक तो होगी ही और उनमे से कुछ लोग तो भाजपा को वोट दे ही आएगे । इससे बीजेपी को कम से कम नुकसान तो नही होगा बल्कि उसके लिए फायदेमंद ही होगा । इसे कहते है प्रबंधन । चुनाव आयोग चाहे ये सोचकर प्रसन्न हो ले कि जिन 117 लोकसभा सीटो पर आज मतदान हो रहा है वहां चुनाव प्रचार बंद है लेकिन मोदी की प्रबंधकारिता ने ऐसा रास्ता खोज निकाला कि उससे बीजेपी को फायदा ही होना है कम से कम नुकसान तो किसी भी स्थिति मे नहीं हो सकता बल्कि ऐेसे वोटर जो मोदी की स्थिति के कारण इधर उधर होने की फिराक मे होेगे कम से कम वे तो खिसक नहीं सकेगे ।
इसी तरह देखिए नरेन्द्र मोदी के खिलाफ लगे आरोपो मे दम होता है तो वे उस पर मौन हो जाते है तथा एक बार भी अपने मुंह से एक वाक्य तक नहीं निकालते । जब पूरा मीडिया और विरोधी पार्टीयां मोदी जी को अपनी विवाहित स्थिति के बारे में सवाल कर  रही थी तब मोदी जी मौन थे  और फिर चुपचाप नामाकंन मे ये स्वीकार कर आए कि उनके जसोदा बेन नाम की पत्नी है लेकिन उन्होने इस नामाकंन से पहले कितनी सभाएं की होगी तब उन्हे शायद मालूम ही नही था कि उन्हे जसोदा बेन को अपनी पत्नी के रूप मे नामांकन भरते समय दर्शाना पडेगा उन्होने चुपचाप बिना कोई स्वीकारोक्ति के अपने पिछले विधान सभा के चुनावों के घोषणा पत्रों को झूठलाते हुए जसोदा बेन को अपनी पत्नी के रूप में दर्शा दिया । 

याद करिए जब जसोदा बेन के बारे में मीडिया और उनके विरोधी एक साथ सवाल पूछ रहे थे तो मोदी जी ने इस पर एक शब्द तक नहीं कहा । इसी प्रकार एक महिला की जासूसी पर पूरा मीडिया और विपक्षी पार्टीयां मोदीजी  को घेरने की फिराक मे थी तो भी मोदी जी ने एक शब्द इस विषय पर नहीं कहा । इसी तरह जब कांग्रेस अडानी को बडोदरा जितनी जमीन मोदी द्वारा एक रूपये मीटर मे देने की बात कह रही थी तो भी मोदी जी ने इस पर एक शब्द नहीं बोला । न विरोध किया और न ही स्पष्टीकरण ही दिया । जसोदा बेन को अपनी पत्नी सार्वजनिक रूप से उन्होने अपनी एक भी सभा में स्वीकार नहीं किया जबकि वे नामांकन में इसे स्वीकार कर चुके है लेकिन देखिए सार्वजनिक तौर पर वे इस नाम को अपनी जुबान पर लाना ही नही चाहते क्योंकि वे जानते है कि यदि उन्होने भूलवश ही जसोदा बेन का जिक्र अपने भाषणों में कर बैठे तो सवालों का सिलसिला चल पडेगा और बात होगी तो कुछ ऐसी बाते भी मुह से निकल सकती है जो परेशानी का कारण बन सकती है । इसलिए क्यों परेशानी मोल ली जावे ।

गुजरात में एक महिला की जासूसी कराने के आरोप पर भी वे एक शब्द नहीं बोलते क्या इसका ये अर्थ लगाया जावे कि इन आरोपों में दम है तभी वे इन पर एक शब्द तक नही बोलते जिस तरह जसोदा बेन के मामले में हुआ जब चुनाव आयोग ने स्पष्ट निर्देश दिया कि कोई भी प्रत्याशी नामाकंन पत्र के किसी भी काॅलम को खाली नही छोड सकता । अर्थात् मोदी जी किसी बात को तभी स्वीकार करते है जब उससे बचने का कोई रास्ता ही न रहे। जसोदा बेन को भी पत्नी उन्होने तभी दर्शाया जब चुनाव आयोग ने किसी भी काॅलम को खाली छोडने पर चुनाव के अयोग्य घोषित होने की बाध्यता लगाई । अर्थात् जब तक बाध्यता नही थी तब तक जसोदा बेन का नाम पत्नी के रूप मे दर्शाना उन्होने उचित ही नहीं समझा लेकिन जब बाध्यता आई और नामांकन रद्द की बात हुई तो उन्होने इसे स्वीकार किया । मतलब जब मोदी जी को ये लगने लगा कि हो सकता है इस बार नामांकन रद्द भी हो जाए तो प्रधान मंत्री की कुर्सी तो हाथ से ही निकल जाएगी और वे प्रधान मंत्री की कुर्सी तो कुर्बान कर ही नहीं सकते इसलिए उन्होने पत्नी वाले कालम को खाली छोडना उचित नहीं समझा। इसी तरह महिला की जासूसी मे भी हर स्तर पर राज्य सरकार की मशीनरी का  दुरूपयोग तो किया ही गया लेकिन मोदी जी ऐसी किसी भी बात पर ऐसे मौन साध लेते है जैसे कि कुछ हो ही नही । 

मोदी का मौन मतलब कुछ न कुछ गडबड जरूर है वरना वे राहुल और सोनिया प्रियंका सब के प्रश्नों का उत्तर तुरंत देते है । वे इस पर क्यों नहीं जबाव देकर विरोधियों को शांत करते । क्योकि वे जानते है इस मसले पर अगर कुछ उल्टा पुल्टा मुंह से निकल गया तो न तो मीडिया चुप रहेगी और न ही विरोधी और इसका असर प्रधान मंत्री बनने की राह मे रोडा । जो वे किसी भी किमत पर आने देने के मूड में नहीं है ।

और देखिए अडानी को गुजरात में एक रूपये मीटर जमीन देने के प्रश्न पर भी वे किसी भी चुनावी सभा में स्पष्टीकरण देना उचित नहीं समझते । मौन वो ही मौन जसोदा बेन के मसले जैसा  वही मौन महिला की जासूसी के आरोपो वाला । क्योंकि मोदी जी जानते है कि इस मुद्दे पर  भी कुछ बोला गया तो अनावश्यक किसी भी बात पर बवाल खडा हो सकता है और इससे अच्छा है कि मौन ही रहा जाएं चार दिन की बाते है अपने आप शांत हो जाएगी क्योंकि वे जानते है कि मै कुछ बोलूंगा और अगर कोई ऐसी बात मुंह से निकल गई जो  चुनावी रणभेरी में उन्हे नुकसान पहंुचा सकती है तो  फिर उनके लिए प्रधान मंत्री की कुर्सी तक पहुंचना मुश्किल हो जाएगा । इसलिए मौन रहना ही फायेदमंद है । मोदी जी एक बार देश के प्रधान मंत्री बनना चाहते है और वे बनकर ही दम लेगें । ऐसा उनके अब तक के जीवन के आचरण से हमें देखने को मिलता है ।


क्योकि ये सर्व विदित है कि संघ में प्रचारक वही बन सकता है जो अविवाहित हो लेकिन मोदी जी ने प्रचारक बनने की ठान ली थी तो उन्होने 47 सालों तक यह किसी पर भी जाहिर नही होने दिया कि वे शादीशुदा है शायद संघ को ही अभी उनके नामांकंन के दाखिले पर ही आधिकारिक रूप से जानकारी मिल पाई होगी । जिस व्यक्ति का पाचन इतना जर्बदस्त हो कि 47 सालो तक वह अपने साथ रहने वालो को भी भनक न लगने दे कि उसकी शादी 1967 मे ही हो चुकी थी तो वह व्यक्ति तो नमो ही हो सकता है । अब मोदी जी ने प्रधान मंत्री बनने की ठान ली है तो वे बनकर ही दम लेगे चाहे उनके विरोधी अपने या पराए कितने ही पहाड खडे करे ये मानुस तो ठानने वाली बात तो करेगा ही । 16 मई के परिणाम ये तय कर देगे कि मोदी जी जो ठानते है वो करके ही दम लेते है  या फिर गुजरात में तो उनका ऐसा चरित्र चल सकता है लेकिन  पूरे देश में उनके इस चरित्र को लोग पंसद करते भी है या नहीं ।
नरेन्द्र मोदी का सुनियोजित चुनावी प्रचार प्रबंधन व व्यूह रचना

देश में लोकसभा चुनावों की प्रचार दौड में नरेन्द्र मोदी की प्रबंधन नीति व व्यूह रचना ने सभी राजनैतिक दलों को पीछे छोड दिया है । चाहे नरेन्द्र मोदी की कितनी ही आलोचना की जा रही हो लेकिन ये तो सभी क्षेत्रीय पार्टीयों व राष्ट्ीय दलों को मानना ही पडेगा कि मोदी का चुनावी प्रचार प्रबंधन जिस तरह का है उससे ये लगता है कि वे आधी जंग तो जीत ही चुके है बाकी की लडाई वे चुनावों के बाद आने वाले परिणामों से शायद जीत जाए । 

भाजपा की रणनीति इससे पहले हमेशा अलग तरह की रही है लेकिन जब से प्रचार प्रबंधन के मुखिया के तौर पर मोदी को बिठाया गया है वह पहले से भी सुनियोजित तरीके से हो रहा है । देखिए कैसे इसका पहला उदाहरण तो ये  है कि मोदी ने बडोदरा में अपने नामाकंन से पहले जसोदा बेन को वहां से हटा दिया क्योकि वे जानते थे कि जैसे ही वे अपने नामाकंन में जसोदा बेन को अपनी पत्नी के रूप मे दर्शाएगे पूरे मीडिया और राजनैतिक दलों में बहस शुरू हो जाएगी और मीडिया वाले तो जसोदा बेन तक पहुंचने उनसे बातचीत करने सवाल जबाव करने की कोशिश तो करेगें ही ऐसे में यदि जसोदा बेन ने भावुकता मे आकर कुछ बोल दिया तो विरोधी राजनैतिक दल जनता को गुमराह करने का प्रयास तो करेगे ही यही नही मीडिया तो बवाल ही मचा देगा और हो सकता है कि कोई भी ऐसी बात जो जसोदा बेन के मुंह से निकल जाएं जो उनके लिए परेशानी कर सकती है इसलिए उन्होने नामांकन से पहले ही जसोदा बेन को चार धाम की यात्रा पर जाने की बात उनके भाई से कहलवा कर मीडिया का मुंह बंद कर दिया जबकि बहुत ही शांत चित्त से सोचने की बात है कि उतराखण्ड के चार धाम की यात्रा तो 7 मई 2014 से प्रारम्भ होनी है जसोदा बेन क्या पैदल रवाना हुई है गुजरात से ? और वर्तमान स्थिति ये बता रही है कि वे अभी मेहसाणा मे अपने भाई के यहां है । तो क्या वे चार धाम की यात्रा कपाट खुलने से पहले ही कर आई ? या तो  उस समय झूठ बोला गया या अभी झूठ बोला जा रहा है एक बार तो झूठ बोला ही गया है । ये मोदी की व्यूह रचना का ही खेल है कि वे जसोदा बेन को लेकर उठने वाले बवाल को किस तरह समेटने मे कामयाब हो गए ।

मोदी की चुनावी व्यूह रचना का कमाल देखिए कि वे किस तरह प्रबंधन करके जनता को आकर्षित कर रहे है । जब देश की 117 लोकसभा सीटों पर आज 24 अप्रेल 2014 को चुनाव हो रहे है तो मोदी वाराणसी से अपना पर्चा दाखिल कर रहे है चुनावी रणनीति का इससे अच्छा प्रबंधन तो कांग्रेस तक नही कर सकी । जिन लोकसभा सीटों पर आज चुनाव हो रहे है वहां चुनाव प्रचार बंद है लेकिन देश के राष्ट्ीय चेैनलो पर मोदी के नामांकन का जो प्रसारण दिखाया जा रहा है तथा वहां जो भीड जुटी है उसे देखकर इन 117 लोकसभा सीटों के मतदाताओं के दिलो दिमाग पर कुछ तो असर पडेगा हीे कम से कम ऐसे मतदाता जो असमंझस की स्थिति मे हो उसके मानस को बदलने में सहायक तो होगी ही और उनमे से कुछ लोग तो भाजपा को वोट दे ही आएगे । इससे बीजेपी को कम से कम नुकसान तो नही होगा बल्कि उसके लिए फायदेमंद ही होगा । इसे कहते है प्रबंधन । चुनाव आयोग चाहे ये सोचकर प्रसन्न हो ले कि जिन 117 लोकसभा सीटो पर आज मतदान हो रहा है वहां चुनाव प्रचार बंद है लेकिन मोदी की प्रबंधकारिता ने ऐसा रास्ता खोज निकाला कि उससे बीजेपी को फायदा ही होना है कम से कम नुकसान तो किसी भी स्थिति मे नहीं हो सकता बल्कि ऐेसे वोटर जो मोदी की स्थिति के कारण इधर उधर होने की फिराक मे होेगे कम से कम वे तो खिसक नहीं सकेगे ।
इसी तरह देखिए नरेन्द्र मोदी के खिलाफ लगे आरोपो मे दम होता है तो वे उस पर मौन हो जाते है तथा एक बार भी अपने मुंह से एक वाक्य तक नहीं निकालते । जब पूरा मीडिया और विरोधी पार्टीयां मोदी जी को अपनी विवाहित स्थिति के बारे में सवाल कर  रही थी तब मोदी जी मौन थे  और फिर चुपचाप नामाकंन मे ये स्वीकार कर आए कि उनके जसोदा बेन नाम की पत्नी है लेकिन उन्होने इस नामाकंन से पहले कितनी सभाएं की होगी तब उन्हे शायद मालूम ही नही था कि उन्हे जसोदा बेन को अपनी पत्नी के रूप मे नामांकन भरते समय दर्शाना पडेगा उन्होने चुपचाप बिना कोई स्वीकारोक्ति के अपने पिछले विधान सभा के चुनावों के घोषणा पत्रों को झूठलाते हुए जसोदा बेन को अपनी पत्नी के रूप में दर्शा दिया । 

याद करिए जब जसोदा बेन के बारे में मीडिया और उनके विरोधी एक साथ सवाल पूछ रहे थे तो मोदी जी ने इस पर एक शब्द तक नहीं कहा । इसी प्रकार एक महिला की जासूसी पर पूरा मीडिया और विपक्षी पार्टीयां मोदीजी  को घेरने की फिराक मे थी तो भी मोदी जी ने एक शब्द इस विषय पर नहीं कहा । इसी तरह जब कांग्रेस अडानी को बडोदरा जितनी जमीन मोदी द्वारा एक रूपये मीटर मे देने की बात कह रही थी तो भी मोदी जी ने इस पर एक शब्द नहीं बोला । न विरोध किया और न ही स्पष्टीकरण ही दिया । जसोदा बेन को अपनी पत्नी सार्वजनिक रूप से उन्होने अपनी एक भी सभा में स्वीकार नहीं किया जबकि वे नामांकन में इसे स्वीकार कर चुके है लेकिन देखिए सार्वजनिक तौर पर वे इस नाम को अपनी जुबान पर लाना ही नही चाहते क्योंकि वे जानते है कि यदि उन्होने भूलवश ही जसोदा बेन का जिक्र अपने भाषणों में कर बैठे तो सवालों का सिलसिला चल पडेगा और बात होगी तो कुछ ऐसी बाते भी मुह से निकल सकती है जो परेशानी का कारण बन सकती है । इसलिए क्यों परेशानी मोल ली जावे ।

गुजरात में एक महिला की जासूसी कराने के आरोप पर भी वे एक शब्द नहीं बोलते क्या इसका ये अर्थ लगाया जावे कि इन आरोपों में दम है तभी वे इन पर एक शब्द तक नही बोलते जिस तरह जसोदा बेन के मामले में हुआ जब चुनाव आयोग ने स्पष्ट निर्देश दिया कि कोई भी प्रत्याशी नामाकंन पत्र के किसी भी काॅलम को खाली नही छोड सकता । अर्थात् मोदी जी किसी बात को तभी स्वीकार करते है जब उससे बचने का कोई रास्ता ही न रहे। जसोदा बेन को भी पत्नी उन्होने तभी दर्शाया जब चुनाव आयोग ने किसी भी काॅलम को खाली छोडने पर चुनाव के अयोग्य घोषित होने की बाध्यता लगाई । अर्थात् जब तक बाध्यता नही थी तब तक जसोदा बेन का नाम पत्नी के रूप मे दर्शाना उन्होने उचित ही नहीं समझा लेकिन जब बाध्यता आई और नामांकन रद्द की बात हुई तो उन्होने इसे स्वीकार किया । मतलब जब मोदी जी को ये लगने लगा कि हो सकता है इस बार नामांकन रद्द भी हो जाए तो प्रधान मंत्री की कुर्सी तो हाथ से ही निकल जाएगी और वे प्रधान मंत्री की कुर्सी तो कुर्बान कर ही नहीं सकते इसलिए उन्होने पत्नी वाले कालम को खाली छोडना उचित नहीं समझा। इसी तरह महिला की जासूसी मे भी हर स्तर पर राज्य सरकार की मशीनरी का  दुरूपयोग तो किया ही गया लेकिन मोदी जी ऐसी किसी भी बात पर ऐसे मौन साध लेते है जैसे कि कुछ हो ही नही । 

मोदी का मौन मतलब कुछ न कुछ गडबड जरूर है वरना वे राहुल और सोनिया प्रियंका सब के प्रश्नों का उत्तर तुरंत देते है । वे इस पर क्यों नहीं जबाव देकर विरोधियों को शांत करते । क्योकि वे जानते है इस मसले पर अगर कुछ उल्टा पुल्टा मुंह से निकल गया तो न तो मीडिया चुप रहेगी और न ही विरोधी और इसका असर प्रधान मंत्री बनने की राह मे रोडा । जो वे किसी भी किमत पर आने देने के मूड में नहीं है ।

और देखिए अडानी को गुजरात में एक रूपये मीटर जमीन देने के प्रश्न पर भी वे किसी भी चुनावी सभा में स्पष्टीकरण देना उचित नहीं समझते । मौन वो ही मौन जसोदा बेन के मसले जैसा  वही मौन महिला की जासूसी के आरोपो वाला । क्योंकि मोदी जी जानते है कि इस मुद्दे पर  भी कुछ बोला गया तो अनावश्यक किसी भी बात पर बवाल खडा हो सकता है और इससे अच्छा है कि मौन ही रहा जाएं चार दिन की बाते है अपने आप शांत हो जाएगी क्योंकि वे जानते है कि मै कुछ बोलूंगा और अगर कोई ऐसी बात मुंह से निकल गई जो  चुनावी रणभेरी में उन्हे नुकसान पहंुचा सकती है तो  फिर उनके लिए प्रधान मंत्री की कुर्सी तक पहुंचना मुश्किल हो जाएगा । इसलिए मौन रहना ही फायेदमंद है । मोदी जी एक बार देश के प्रधान मंत्री बनना चाहते है और वे बनकर ही दम लेगें । ऐसा उनके अब तक के जीवन के आचरण से हमें देखने को मिलता है ।


क्योकि ये सर्व विदित है कि संघ में प्रचारक वही बन सकता है जो अविवाहित हो लेकिन मोदी जी ने प्रचारक बनने की ठान ली थी तो उन्होने 47 सालों तक यह किसी पर भी जाहिर नही होने दिया कि वे शादीशुदा है शायद संघ को ही अभी उनके नामांकंन के दाखिले पर ही आधिकारिक रूप से जानकारी मिल पाई होगी । जिस व्यक्ति का पाचन इतना जर्बदस्त हो कि 47 सालो तक वह अपने साथ रहने वालो को भी भनक न लगने दे कि उसकी शादी 1967 मे ही हो चुकी थी तो वह व्यक्ति तो नमो ही हो सकता है । अब मोदी जी ने प्रधान मंत्री बनने की ठान ली है तो वे बनकर ही दम लेगे चाहे उनके विरोधी अपने या पराए कितने ही पहाड खडे करे ये मानुस तो ठानने वाली बात तो करेगा ही । 16 मई के परिणाम ये तय कर देगे कि मोदी जी जो ठानते है वो करके ही दम लेते है  या फिर गुजरात में तो उनका ऐसा चरित्र चल सकता है लेकिन  पूरे देश में उनके इस चरित्र को लोग पंसद करते भी है या नहीं ।

सोमवार, 24 मार्च 2014

जागो मतदाता जागो अपने क्षेत्र से सुयोग्य ईमानदार छवि वाले उम्मीदवार को चुनें



लोकतंत्र के महापर्व में भारत की जनता को अपने लिए  एक ऐसे प्रतिनिधि को चुनना है तो जो आपके क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर सके । जनता को यह तय करना है कि उनके क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए कौन योग्य है यदि हमने अपने क्षेत्र के प्रतिनिधी को चुनने में भूल की तो अगले पांच साल तक पछताना पड सकता है ।  ऐसे गुणों वाले उम्मीदवार को जनता को संसद में भेजना चाहिए जो हमारे क्षेत्र की समस्याओं को प्रभावी ढंग से उठाकर उनका समाधान करा सकें । हमें उसमें ये योग्यता नहीं देखनी चाहिए कि वह किस पार्टी से है चाहे वह किसी भी पार्टी का भी क्यों न हो अगर हमें लगता है कि वह हमारे क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर सकता है तो उसे चुनना चाहिए । हमें ये भी नहीं देखना चाहिए कि यदि वह जीता और उस दल की सरकार नही बनी तो हम पिछड जाएंगे ।  हमारा कर्तव्य है कि हम उसे ही चुने जो हमारे क्षेत्र का ख्याल रखें यदि हमने योग्य उम्मीदवारों को चुनना शुरू कर दिया तो ये राजनैतिक दल स्वतः ही ऐसे उम्मीदवारों को देना शुरू कर देगे जो हमारे लिए उपयुक्त हो यदि हमने सरकार बनने का ख्याल रख कर मतदान किया तो हमें योग्य उम्मीदवार से हाथ धोना पडेगा । जब सत्ता की चाबी मतदाता के हाथ मे है तो हम क्यों नही इन सभी राजनैतिक दलों को सबक सिखाएं कि बहुत हो गया अब थोपा गया उम्मीदवार या योग्य उम्मीदवार नहीं मिलने पर हम सत्ता की चाबी किसी भी दल को नहीं देने वाले ।
जागना होगा भारतीय मतदाताओं को क्योंकि राजनैतिक दलों ने तो तय कर लिया है कि उन्हे जनता के लिए योग्य उम्मीदवार कौन है यह देखने की जरूरत नहीं है जिस किसी को भी हम उम्मीदवार बनाएगे जनता उसे चुन लेगी । ऐसे मे जनता को यह तय करना होगा और इन राजनैतिक दलों को यह सबक सिखाना पडेगा कि उनकी यह सोच अब बदलनी होगी। यदि मतदाताओ को लगे कि उनके क्षेत्र में ऐसा कोई उम्मीदवार नही है जो उनका प्रतिनिधित्व कर सके तो मतदान न करने की बजाय मतदान केन्द्र पर जाकर नोटा के बटन का इस्तेमाल कर यह बतांए कि मतदाता जागरूक हो गया है और वह अपने क्षेत्र से किसी भी दल द्वारा योग्य उम्मीदवार खडा न करने के कारण तथा निर्दलियों मे भी कोई योग्य उम्मीदवार न होने के कारण नोटा का प्रयोग कर रहा है ।
अब तक होता यह रहा है कि जनता के पास कोई विकल्प ही नही था कि वह किसी भी उम्मीदवार को योग्य न समझने पर अपना कोई पक्ष रखे लेकिन अब ऐसा विकल्प जनता को मिल गया है जिसमें हम अपनी भावना व्यक्त कर सकते है हांलाकि नोटा के विकल्प में अभी बहुत कुछ सुधार किये जाने की जरूरत है लेकिन ये जरूरत तब महसूस होगी जब इसका प्रयोग बहुतायत से होगा । इसलिए मतदाताओं को जागरूक होकर ऐसे उम्मीदवार को चुनना चाहिए जो योग्य हो यदि कोई भी न लगे तो नोटा का प्रयोग कर अपने मताधिकार का प्रयोग जरूर करें । तभी लोकतंत्र की जडे मजबूत होेगी अन्यथा ये राजनैतिक दल और नेता तो लोकतंत्र की जडों को काटने में लगे है । जागरूक मतदाताओं को अपने मताधिकार प्रयोग बहुत ही सावधानी से करना होगा ताकि हमारे देश की राजनीति मे सुधार हो ।
तय मतदाताओ को  करना है  कि हमें राजनीति के दूषित माहोल को सुधारने का बीडा हमें कब से उठाना है अभी से या अगले पांच साल बाद । अपने आप तो यह नहीं सुधरने वाली । कबीरदास जी ने कहा है काल करे सो आज कर  आज करे सो अब ।  तो फिर देर किस बात की । मौका भी है और सही समय भी कर दिजीए चोट । वोट की चोट से ही ये राजनीति सुधरेगी अन्यथा अगले मौके का इंतजार करना पडेगा क्योंकि अपने आप तो सुधरनी होती तो 67 साल नहीं इंतजार करना पडता । धीरे धीरे गर्त में ही जा रही है हमारे देश की राजनीति इसलिए इसे सुधारने का बीडा मतदाताओं को ही उठाना पडेगा । कब ये तय आपको करना है । हम तो कहते है अभी से शुरूआत कर दिजीए और बता दिजीए इन राजनैतिक दलों को कि
न कोई दल न कोई लहर 

 हमे चाहिए योग्य डगर

रविवार, 2 मार्च 2014

बात बेबाक

देश में एक ऐसा न्यायाधिकरण हो जो विज्ञापनों में दिखाएं जा रहे उत्पाद की गुणवत्ता को स्वतः ही परखे कि उसमें दिखाई जा रही वे सब खूबिया वास्तव मे है भी या नहीं

आजकल हमारे देश में हर कोई जनता को मूर्ख बनाने में लगा है । राजनेता तो वोटो के खातिर जनता को मूर्ख बनाकर सत्ता पर काबिज होना चाहते है ये तो सब जानने लगे है सब्ज बाग दिखाकर जनता को बेवकूफ बनाकर सत्ता पर काबिज होना जैसे उनका धर्म हो गया है । कोई भी राजनैतिक दल इसमे पीछे नही रहना चाहता लेकिन क्या आप जानते है एक और वर्ग को जो जनता को मूर्ख बनाकर उनकी जेब काट रहा है । नही जानते । अरे जनबा आप जानते है अच्छा चलो बता ही देते है कौन है ऐसा वर्ग जो जनता को ठग रहा है । क्या आप विज्ञापन देखते है  अरे साहब विज्ञापन तो आज कल हर चैनल की जान है  कितनी ही महत्वपूर्ण बहस क्यों नही हो रही है लेकिन यदि विज्ञापन का समय हो गया तो एंकर को बीच बहस छोड कर विज्ञापन के लिए जाना पडेगा । जी हां यहां विज्ञापनो की ही बात  हो रही है । क्या कभी आपने सोचा है कि जिस वस्तु को आप अपने घर उस  विज्ञापन मे उसकी विशेषताओ को देखकर लाएं है वह उसमें है भी या नहीं । आप गौर से देखिए विज्ञापनों में कम्पनियां अपने माल को बेचने के लिए उसमें जितनी भी खूबियां गिनाती है क्या उसमें वे सब होती है । यदि नही तो साहब ये भी मूर्ख बनाने का काम ही हुआ ना ।

जनता को अपना माल बेचने के लिए मूर्ख बनाकर अपनी बिक्री बढाना उपभोक्ता हितो का हनन ही कहा जाएगा । हां ये अलग बात है कि इसके लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम अलग से बना हुआ है और यदि कोई उपभोक्ता किसी भी तरह की कमी पाता है तो उस कम्पनी के खिलाफ  उपभोक्ता न्यायालय में अपनी शिकायत कर सकता है । लेकिन साहब हम तो यहां ये कहना चाहते है कि ये विज्ञापन दिखाने वाली कम्पनियां सरे आम जनता को भ्रमित कर रही है उसके खिलाफ स्वतः संज्ञान क्यो नहीं लिया जाता । क्या ऐसा कोई कानून नहीं बनाया जा सकता जिसमें विज्ञापन में बताई गई खूबियां उस उत्पाद में जरूर हो । और यदि नही हो तो उनके खिलाफ उपभोक्ताओं को अपने हित के लिए मूर्ख बनाकर ठगी करने का केस स्वतः ही दर्ज  हो सके ।

आप भी सोच रहे होगे कि क्या  हम भी ऐसी बात बेबात के मुद्दे को तूल दिए जा रहे है लेकिन जनाब थोडा सोचिए कि उपभोक्ता हित के लिए ऐसा क्यों नहीं हो सकता । आखिर हम आप भी तो कहीं न कही उपभोक्ता है ही ना । हमारा सुझाव है कि हमारे देश में एक ऐसा न्यायाधिकरण हो जो विज्ञापनों में दिखाएं जा रहे उत्पाद की गुणवत्ता को स्वतः ही परखे कि उसमें दिखाई जा रही वे सब खूबिया वास्तव मे है भी या नहीं । कही ये कम्पनियां जनता को मूर्ख बनाकर उनकी जेबों से रूपएं निकाल कर अपना उल्लू तो सीधा नहीं कर रही ।  किसी भी उत्पाद में उसकी निर्माता कम्पनी द्वारा बताई गई गुणवता है या नही इसकी जांच तो होनी ही चाहिए ना । यदि ऐसा न्यायाधिकरण हो जो बाजार से हर कम्पनी के उत्पाद को बिना उस कम्पनी की जानकारी के लेकर उसकी जांच कराएं और उसकी गुणवता को परखे और यदि उसमे कमी पाई जाए तो उस कम्पनी के खिलाफ स्वतः ही संज्ञान लेकर जनता को मूर्ख बनाकर ठगी करने का मुकदमा दर्ज कर संबंधित कंपनी को सुनवाई के लिए बुलाए ।


क्या जनाब आप मुस्करा रहे है । आप मन ही मन तरस खा रहे होगे हमारी जानकारी पर कि गुणवता जांच के लिए हमारे यहां कई सरकारी और गैर सरकारी एंजेसिया है जो गुणवता की परख कर प्रमाण पत्र देती है तभी तो आई एस ओ  आई एस आई  मार्का मिलता है जिसका कम्पनियां प्रमुखता से बखान करती है । जैसे आई एस ओ  से प्रमाणित या आई एस आई प्रमाणिक । सही है साहब आप भी लेकिन क्या इन प्रमाणित वस्तुओं में वे सभी गुणवता मिलती है । अगर न्यायाधिकरण होगा तो उसे बाजार से वस्तुओं को लेकर उसके बारे में विज्ञापनों मे बताई गई एक एक खूबी की जांच  होगी जिससे यह पता चलेगा कि कौन सा उत्पाद कितना सही है और कौनसी कम्पनी जनता को मूर्ख बनाकर अपने व्यारे न्यारे कर रही है । इससे जनता को बाजार से सही व गुणवता युक्त वस्तुएं मिलने का रास्ता प्रशस्त होगा और ऐसे विज्ञापनो पर रोक लगेगी जो जनता को मूर्ख अपना कर अपने उत्पाद बेच रही है । 

कथनी और करनी के अन्तर को यही से सुधारना होगा तभी राजनेताओं की भाषा में बदलाव आने लगेगा । वो कैसे आएगा इसकी चर्चा फिर कभी या फिर आप समझ गए हो तो बता दिजीए साहब ।

आम आदमी पर सवार खास आदमी

बात बेबाक

आम आदमी पर सवार खास आदमी ।

अब देखिए ना आज ये ही हो रहा है कि आम आदमी को हर कोई पीछे धकेल देता है इस देश मे । अरविन्द केजरीवाल आम आदमी का सहारा लेकर चमके और खास आदमी बन गए यही नहीं अब आम आदमी पार्टी में टिकट खास लोगो को दिया जा रहा है बेचारा आम आदमी तो सडको पर भटक रहा है । नित नए खास लोग आम आदमी  पार्टी मे शामिल हो रहे है और टिकट पा रहे है बेचारे आम आदमी की कोई सुन ही नही रहा ।

अरे जनाब क्या आम आदमी पार्टी की बात करें हर कहीं खास आदमी की ही कद्र होती है आम आदमी तो बस किसी को खास बनाने वाला होता है और वह वहीं का वहीं रह जाता है जिनमें खास बनने की लालसा होती है वह आम आदमी के कंधे का सहारा लेकर खास बन जाता है और आम आदमी वहंी का वही नजर आता है । सहारा श्री सुब्रतो राय भी कभी आम आदमी ही थे लेकिन जब से वे खास आदमी बने है उनके लिए सब कुछ बदल गया है । कोर्ट के गैर जमानती गिरफ्तारी वांरट के कारण उन्हे गिरफ्तार कर  खास जेल में रखा गया है अरे जनाब अगर वे आम होते तो क्या उन्हे गेस्ट हाउस मे  गिरफतार कर रखा जाता । यही कोई आम आदमी के खिलाफ गिरफतारी वांरट होता तो पुलिस उसे पहले तो गिरफतार करती और फिर उसे थाने के उस बैरक मे डालती जिसमे केवल फर्श होता और खाने को रूखी रोटी मिलती यही नहीं पूछताछ के नाम पर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल होता वो अलग । लेकिन भाई खास आदमी होने का यही तो फायदा है कि जुर्म भी करो और ढाढ से रहो वरना आप हम कोई जुर्म करके देख ले पुलिस कोई गेस्ट हाउस मे नहीं रखने वाली । आम आदमी से खास आदमी बनने के लिए आम आदमी का कंधा ही मजबूत है जो सबको ढो लेता है लेकिन वह खुद को नही ढो पाता । 

इस देश में खास आदमी वही बना है जिसने आम आदमी को बेवकूफ बनाया हो । जो जितना बेवकूफ बनायेगा वह उतना ही बडा खास होगा । नरेन्द्र मोदी आम आदमी को सपने बेच कर खास बनना चाहते है  उनका भाषण सुना आपने  वे आम आदमी को कहते है बस  अब अच्छे दिन आने वाले है लेकिन यह तय है कि इस देश का आम आदमी वहीं का वहीं रहने वाला है बस सपने दिखा कर मोदी जी मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री का खास पद पा लेने वाले प्रमुख दावेदार है । चाय बनाने वाले को तो आज भी चाय बेचकर ही अपना घर चलाना है और अगर मोदी जी प्रधानमंत्री बन भी गए तो उसे तो वही चाय बेचनी है लेकिन इस चाय की चुस्की लेकर नरेन्द्र मोदी जी जरूर कुछ पा लेना चाहते है ।