गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

नरेन्द्र मोदी का सुनियोजित चुनावी प्रचार प्रबंधन व व्यूह रचना

देश में लोकसभा चुनावों की प्रचार दौड में नरेन्द्र मोदी की प्रबंधन नीति व व्यूह रचना ने सभी राजनैतिक दलों को पीछे छोड दिया है । चाहे नरेन्द्र मोदी की कितनी ही आलोचना की जा रही हो लेकिन ये तो सभी क्षेत्रीय पार्टीयों व राष्ट्ीय दलों को मानना ही पडेगा कि मोदी का चुनावी प्रचार प्रबंधन जिस तरह का है उससे ये लगता है कि वे आधी जंग तो जीत ही चुके है बाकी की लडाई वे चुनावों के बाद आने वाले परिणामों से शायद जीत जाए । 

भाजपा की रणनीति इससे पहले हमेशा अलग तरह की रही है लेकिन जब से प्रचार प्रबंधन के मुखिया के तौर पर मोदी को बिठाया गया है वह पहले से भी सुनियोजित तरीके से हो रहा है । देखिए कैसे इसका पहला उदाहरण तो ये  है कि मोदी ने बडोदरा में अपने नामाकंन से पहले जसोदा बेन को वहां से हटा दिया क्योकि वे जानते थे कि जैसे ही वे अपने नामाकंन में जसोदा बेन को अपनी पत्नी के रूप मे दर्शाएगे पूरे मीडिया और राजनैतिक दलों में बहस शुरू हो जाएगी और मीडिया वाले तो जसोदा बेन तक पहुंचने उनसे बातचीत करने सवाल जबाव करने की कोशिश तो करेगें ही ऐसे में यदि जसोदा बेन ने भावुकता मे आकर कुछ बोल दिया तो विरोधी राजनैतिक दल जनता को गुमराह करने का प्रयास तो करेगे ही यही नही मीडिया तो बवाल ही मचा देगा और हो सकता है कि कोई भी ऐसी बात जो जसोदा बेन के मुंह से निकल जाएं जो उनके लिए परेशानी कर सकती है इसलिए उन्होने नामांकन से पहले ही जसोदा बेन को चार धाम की यात्रा पर जाने की बात उनके भाई से कहलवा कर मीडिया का मुंह बंद कर दिया जबकि बहुत ही शांत चित्त से सोचने की बात है कि उतराखण्ड के चार धाम की यात्रा तो 7 मई 2014 से प्रारम्भ होनी है जसोदा बेन क्या पैदल रवाना हुई है गुजरात से और वर्तमान स्थिति ये बता रही है कि वे अभी मेहसाणा मे अपने भाई के यहां है । तो क्या वे चार धाम की यात्रा कपाट खुलने से पहले ही कर आई या तो  उस समय झूठ बोला गया या अभी झूठ बोला जा रहा है एक बार तो झूठ बोला ही गया है । ये मोदी की व्यूह रचना का ही खेल है कि वे जसोदा बेन को लेकर उठने वाले बवाल को किस तरह समेटने मे कामयाब हो गए ।

मोदी की चुनावी व्यूह रचना का कमाल देखिए कि वे किस तरह प्रबंधन करके जनता को आकर्षित कर रहे है । जब देश की 117 लोकसभा सीटों पर आज 24 अप्रेल 2014 को चुनाव हो रहे है तो मोदी वाराणसी से अपना पर्चा दाखिल कर रहे है चुनावी रणनीति का इससे अच्छा प्रबंधन तो कांग्रेस तक नही कर सकी । जिन लोकसभा सीटों पर आज चुनाव हो रहे है वहां चुनाव प्रचार बंद है लेकिन देश के राष्ट्ीय चेैनलो पर मोदी के नामांकन का जो प्रसारण दिखाया जा रहा है तथा वहां जो भीड जुटी है उसे देखकर इन 117 लोकसभा सीटों के मतदाताओं के दिलो दिमाग पर कुछ तो असर पडेगा हीे कम से कम ऐसे मतदाता जो असमंझस की स्थिति मे हो उसके मानस को बदलने में सहायक तो होगी ही और उनमे से कुछ लोग तो भाजपा को वोट दे ही आएगे । इससे बीजेपी को कम से कम नुकसान तो नही होगा बल्कि उसके लिए फायदेमंद ही होगा । इसे कहते है प्रबंधन । चुनाव आयोग चाहे ये सोचकर प्रसन्न हो ले कि जिन 117 लोकसभा सीटो पर आज मतदान हो रहा है वहां चुनाव प्रचार बंद है लेकिन मोदी की प्रबंधकारिता ने ऐसा रास्ता खोज निकाला कि उससे बीजेपी को फायदा ही होना है कम से कम नुकसान तो किसी भी स्थिति मे नहीं हो सकता बल्कि ऐेसे वोटर जो मोदी की स्थिति के कारण इधर उधर होने की फिराक मे होेगे कम से कम वे तो खिसक नहीं सकेगे ।
इसी तरह देखिए नरेन्द्र मोदी के खिलाफ लगे आरोपो मे दम होता है तो वे उस पर मौन हो जाते है तथा एक बार भी अपने मुंह से एक वाक्य तक नहीं निकालते । जब पूरा मीडिया और विरोधी पार्टीयां मोदी जी को अपनी विवाहित स्थिति के बारे में सवाल कर  रही थी तब मोदी जी मौन थे  और फिर चुपचाप नामाकंन मे ये स्वीकार कर आए कि उनके जसोदा बेन नाम की पत्नी है लेकिन उन्होने इस नामाकंन से पहले कितनी सभाएं की होगी तब उन्हे शायद मालूम ही नही था कि उन्हे जसोदा बेन को अपनी पत्नी के रूप मे नामांकन भरते समय दर्शाना पडेगा उन्होने चुपचाप बिना कोई स्वीकारोक्ति के अपने पिछले विधान सभा के चुनावों के घोषणा पत्रों को झूठलाते हुए जसोदा बेन को अपनी पत्नी के रूप में दर्शा दिया । 

याद करिए जब जसोदा बेन के बारे में मीडिया और उनके विरोधी एक साथ सवाल पूछ रहे थे तो मोदी जी ने इस पर एक शब्द तक नहीं कहा । इसी प्रकार एक महिला की जासूसी पर पूरा मीडिया और विपक्षी पार्टीयां मोदीजी  को घेरने की फिराक मे थी तो भी मोदी जी ने एक शब्द इस विषय पर नहीं कहा । इसी तरह जब कांग्रेस अडानी को बडोदरा जितनी जमीन मोदी द्वारा एक रूपये मीटर मे देने की बात कह रही थी तो भी मोदी जी ने इस पर एक शब्द नहीं बोला । न विरोध किया और न ही स्पष्टीकरण ही दिया । जसोदा बेन को अपनी पत्नी सार्वजनिक रूप से उन्होने अपनी एक भी सभा में स्वीकार नहीं किया जबकि वे नामांकन में इसे स्वीकार कर चुके है लेकिन देखिए सार्वजनिक तौर पर वे इस नाम को अपनी जुबान पर लाना ही नही चाहते क्योंकि वे जानते है कि यदि उन्होने भूलवश ही जसोदा बेन का जिक्र अपने भाषणों में कर बैठे तो सवालों का सिलसिला चल पडेगा और बात होगी तो कुछ ऐसी बाते भी मुह से निकल सकती है जो परेशानी का कारण बन सकती है । इसलिए क्यों परेशानी मोल ली जावे ।

गुजरात में एक महिला की जासूसी कराने के आरोप पर भी वे एक शब्द नहीं बोलते क्या इसका ये अर्थ लगाया जावे कि इन आरोपों में दम है तभी वे इन पर एक शब्द तक नही बोलते जिस तरह जसोदा बेन के मामले में हुआ जब चुनाव आयोग ने स्पष्ट निर्देश दिया कि कोई भी प्रत्याशी नामाकंन पत्र के किसी भी काॅलम को खाली नही छोड सकता । अर्थात् मोदी जी किसी बात को तभी स्वीकार करते है जब उससे बचने का कोई रास्ता ही न रहे। जसोदा बेन को भी पत्नी उन्होने तभी दर्शाया जब चुनाव आयोग ने किसी भी काॅलम को खाली छोडने पर चुनाव के अयोग्य घोषित होने की बाध्यता लगाई । अर्थात् जब तक बाध्यता नही थी तब तक जसोदा बेन का नाम पत्नी के रूप मे दर्शाना उन्होने उचित ही नहीं समझा लेकिन जब बाध्यता आई और नामांकन रद्द की बात हुई तो उन्होने इसे स्वीकार किया । मतलब जब मोदी जी को ये लगने लगा कि हो सकता है इस बार नामांकन रद्द भी हो जाए तो प्रधान मंत्री की कुर्सी तो हाथ से ही निकल जाएगी और वे प्रधान मंत्री की कुर्सी तो कुर्बान कर ही नहीं सकते इसलिए उन्होने पत्नी वाले कालम को खाली छोडना उचित नहीं समझा। इसी तरह महिला की जासूसी मे भी हर स्तर पर राज्य सरकार की मशीनरी का  दुरूपयोग तो किया ही गया लेकिन मोदी जी ऐसी किसी भी बात पर ऐसे मौन साध लेते है जैसे कि कुछ हो ही नही । 

मोदी का मौन मतलब कुछ न कुछ गडबड जरूर है वरना वे राहुल और सोनिया प्रियंका सब के प्रश्नों का उत्तर तुरंत देते है । वे इस पर क्यों नहीं जबाव देकर विरोधियों को शांत करते । क्योकि वे जानते है इस मसले पर अगर कुछ उल्टा पुल्टा मुंह से निकल गया तो न तो मीडिया चुप रहेगी और न ही विरोधी और इसका असर प्रधान मंत्री बनने की राह मे रोडा । जो वे किसी भी किमत पर आने देने के मूड में नहीं है ।

और देखिए अडानी को गुजरात में एक रूपये मीटर जमीन देने के प्रश्न पर भी वे किसी भी चुनावी सभा में स्पष्टीकरण देना उचित नहीं समझते । मौन वो ही मौन जसोदा बेन के मसले जैसा  वही मौन महिला की जासूसी के आरोपो वाला । क्योंकि मोदी जी जानते है कि इस मुद्दे पर  भी कुछ बोला गया तो अनावश्यक किसी भी बात पर बवाल खडा हो सकता है और इससे अच्छा है कि मौन ही रहा जाएं चार दिन की बाते है अपने आप शांत हो जाएगी क्योंकि वे जानते है कि मै कुछ बोलूंगा और अगर कोई ऐसी बात मुंह से निकल गई जो  चुनावी रणभेरी में उन्हे नुकसान पहंुचा सकती है तो  फिर उनके लिए प्रधान मंत्री की कुर्सी तक पहुंचना मुश्किल हो जाएगा । इसलिए मौन रहना ही फायेदमंद है । मोदी जी एक बार देश के प्रधान मंत्री बनना चाहते है और वे बनकर ही दम लेगें । ऐसा उनके अब तक के जीवन के आचरण से हमें देखने को मिलता है ।


क्योकि ये सर्व विदित है कि संघ में प्रचारक वही बन सकता है जो अविवाहित हो लेकिन मोदी जी ने प्रचारक बनने की ठान ली थी तो उन्होने 47 सालों तक यह किसी पर भी जाहिर नही होने दिया कि वे शादीशुदा है शायद संघ को ही अभी उनके नामांकंन के दाखिले पर ही आधिकारिक रूप से जानकारी मिल पाई होगी । जिस व्यक्ति का पाचन इतना जर्बदस्त हो कि 47 सालो तक वह अपने साथ रहने वालो को भी भनक न लगने दे कि उसकी शादी 1967 मे ही हो चुकी थी तो वह व्यक्ति तो नमो ही हो सकता है । अब मोदी जी ने प्रधान मंत्री बनने की ठान ली है तो वे बनकर ही दम लेगे चाहे उनके विरोधी अपने या पराए कितने ही पहाड खडे करे ये मानुस तो ठानने वाली बात तो करेगा ही । 16 मई के परिणाम ये तय कर देगे कि मोदी जी जो ठानते है वो करके ही दम लेते है  या फिर गुजरात में तो उनका ऐसा चरित्र चल सकता है लेकिन  पूरे देश में उनके इस चरित्र को लोग पंसद करते भी है या नहीं ।
नरेन्द्र मोदी का सुनियोजित चुनावी प्रचार प्रबंधन व व्यूह रचना

देश में लोकसभा चुनावों की प्रचार दौड में नरेन्द्र मोदी की प्रबंधन नीति व व्यूह रचना ने सभी राजनैतिक दलों को पीछे छोड दिया है । चाहे नरेन्द्र मोदी की कितनी ही आलोचना की जा रही हो लेकिन ये तो सभी क्षेत्रीय पार्टीयों व राष्ट्ीय दलों को मानना ही पडेगा कि मोदी का चुनावी प्रचार प्रबंधन जिस तरह का है उससे ये लगता है कि वे आधी जंग तो जीत ही चुके है बाकी की लडाई वे चुनावों के बाद आने वाले परिणामों से शायद जीत जाए । 

भाजपा की रणनीति इससे पहले हमेशा अलग तरह की रही है लेकिन जब से प्रचार प्रबंधन के मुखिया के तौर पर मोदी को बिठाया गया है वह पहले से भी सुनियोजित तरीके से हो रहा है । देखिए कैसे इसका पहला उदाहरण तो ये  है कि मोदी ने बडोदरा में अपने नामाकंन से पहले जसोदा बेन को वहां से हटा दिया क्योकि वे जानते थे कि जैसे ही वे अपने नामाकंन में जसोदा बेन को अपनी पत्नी के रूप मे दर्शाएगे पूरे मीडिया और राजनैतिक दलों में बहस शुरू हो जाएगी और मीडिया वाले तो जसोदा बेन तक पहुंचने उनसे बातचीत करने सवाल जबाव करने की कोशिश तो करेगें ही ऐसे में यदि जसोदा बेन ने भावुकता मे आकर कुछ बोल दिया तो विरोधी राजनैतिक दल जनता को गुमराह करने का प्रयास तो करेगे ही यही नही मीडिया तो बवाल ही मचा देगा और हो सकता है कि कोई भी ऐसी बात जो जसोदा बेन के मुंह से निकल जाएं जो उनके लिए परेशानी कर सकती है इसलिए उन्होने नामांकन से पहले ही जसोदा बेन को चार धाम की यात्रा पर जाने की बात उनके भाई से कहलवा कर मीडिया का मुंह बंद कर दिया जबकि बहुत ही शांत चित्त से सोचने की बात है कि उतराखण्ड के चार धाम की यात्रा तो 7 मई 2014 से प्रारम्भ होनी है जसोदा बेन क्या पैदल रवाना हुई है गुजरात से ? और वर्तमान स्थिति ये बता रही है कि वे अभी मेहसाणा मे अपने भाई के यहां है । तो क्या वे चार धाम की यात्रा कपाट खुलने से पहले ही कर आई ? या तो  उस समय झूठ बोला गया या अभी झूठ बोला जा रहा है एक बार तो झूठ बोला ही गया है । ये मोदी की व्यूह रचना का ही खेल है कि वे जसोदा बेन को लेकर उठने वाले बवाल को किस तरह समेटने मे कामयाब हो गए ।

मोदी की चुनावी व्यूह रचना का कमाल देखिए कि वे किस तरह प्रबंधन करके जनता को आकर्षित कर रहे है । जब देश की 117 लोकसभा सीटों पर आज 24 अप्रेल 2014 को चुनाव हो रहे है तो मोदी वाराणसी से अपना पर्चा दाखिल कर रहे है चुनावी रणनीति का इससे अच्छा प्रबंधन तो कांग्रेस तक नही कर सकी । जिन लोकसभा सीटों पर आज चुनाव हो रहे है वहां चुनाव प्रचार बंद है लेकिन देश के राष्ट्ीय चेैनलो पर मोदी के नामांकन का जो प्रसारण दिखाया जा रहा है तथा वहां जो भीड जुटी है उसे देखकर इन 117 लोकसभा सीटों के मतदाताओं के दिलो दिमाग पर कुछ तो असर पडेगा हीे कम से कम ऐसे मतदाता जो असमंझस की स्थिति मे हो उसके मानस को बदलने में सहायक तो होगी ही और उनमे से कुछ लोग तो भाजपा को वोट दे ही आएगे । इससे बीजेपी को कम से कम नुकसान तो नही होगा बल्कि उसके लिए फायदेमंद ही होगा । इसे कहते है प्रबंधन । चुनाव आयोग चाहे ये सोचकर प्रसन्न हो ले कि जिन 117 लोकसभा सीटो पर आज मतदान हो रहा है वहां चुनाव प्रचार बंद है लेकिन मोदी की प्रबंधकारिता ने ऐसा रास्ता खोज निकाला कि उससे बीजेपी को फायदा ही होना है कम से कम नुकसान तो किसी भी स्थिति मे नहीं हो सकता बल्कि ऐेसे वोटर जो मोदी की स्थिति के कारण इधर उधर होने की फिराक मे होेगे कम से कम वे तो खिसक नहीं सकेगे ।
इसी तरह देखिए नरेन्द्र मोदी के खिलाफ लगे आरोपो मे दम होता है तो वे उस पर मौन हो जाते है तथा एक बार भी अपने मुंह से एक वाक्य तक नहीं निकालते । जब पूरा मीडिया और विरोधी पार्टीयां मोदी जी को अपनी विवाहित स्थिति के बारे में सवाल कर  रही थी तब मोदी जी मौन थे  और फिर चुपचाप नामाकंन मे ये स्वीकार कर आए कि उनके जसोदा बेन नाम की पत्नी है लेकिन उन्होने इस नामाकंन से पहले कितनी सभाएं की होगी तब उन्हे शायद मालूम ही नही था कि उन्हे जसोदा बेन को अपनी पत्नी के रूप मे नामांकन भरते समय दर्शाना पडेगा उन्होने चुपचाप बिना कोई स्वीकारोक्ति के अपने पिछले विधान सभा के चुनावों के घोषणा पत्रों को झूठलाते हुए जसोदा बेन को अपनी पत्नी के रूप में दर्शा दिया । 

याद करिए जब जसोदा बेन के बारे में मीडिया और उनके विरोधी एक साथ सवाल पूछ रहे थे तो मोदी जी ने इस पर एक शब्द तक नहीं कहा । इसी प्रकार एक महिला की जासूसी पर पूरा मीडिया और विपक्षी पार्टीयां मोदीजी  को घेरने की फिराक मे थी तो भी मोदी जी ने एक शब्द इस विषय पर नहीं कहा । इसी तरह जब कांग्रेस अडानी को बडोदरा जितनी जमीन मोदी द्वारा एक रूपये मीटर मे देने की बात कह रही थी तो भी मोदी जी ने इस पर एक शब्द नहीं बोला । न विरोध किया और न ही स्पष्टीकरण ही दिया । जसोदा बेन को अपनी पत्नी सार्वजनिक रूप से उन्होने अपनी एक भी सभा में स्वीकार नहीं किया जबकि वे नामांकन में इसे स्वीकार कर चुके है लेकिन देखिए सार्वजनिक तौर पर वे इस नाम को अपनी जुबान पर लाना ही नही चाहते क्योंकि वे जानते है कि यदि उन्होने भूलवश ही जसोदा बेन का जिक्र अपने भाषणों में कर बैठे तो सवालों का सिलसिला चल पडेगा और बात होगी तो कुछ ऐसी बाते भी मुह से निकल सकती है जो परेशानी का कारण बन सकती है । इसलिए क्यों परेशानी मोल ली जावे ।

गुजरात में एक महिला की जासूसी कराने के आरोप पर भी वे एक शब्द नहीं बोलते क्या इसका ये अर्थ लगाया जावे कि इन आरोपों में दम है तभी वे इन पर एक शब्द तक नही बोलते जिस तरह जसोदा बेन के मामले में हुआ जब चुनाव आयोग ने स्पष्ट निर्देश दिया कि कोई भी प्रत्याशी नामाकंन पत्र के किसी भी काॅलम को खाली नही छोड सकता । अर्थात् मोदी जी किसी बात को तभी स्वीकार करते है जब उससे बचने का कोई रास्ता ही न रहे। जसोदा बेन को भी पत्नी उन्होने तभी दर्शाया जब चुनाव आयोग ने किसी भी काॅलम को खाली छोडने पर चुनाव के अयोग्य घोषित होने की बाध्यता लगाई । अर्थात् जब तक बाध्यता नही थी तब तक जसोदा बेन का नाम पत्नी के रूप मे दर्शाना उन्होने उचित ही नहीं समझा लेकिन जब बाध्यता आई और नामांकन रद्द की बात हुई तो उन्होने इसे स्वीकार किया । मतलब जब मोदी जी को ये लगने लगा कि हो सकता है इस बार नामांकन रद्द भी हो जाए तो प्रधान मंत्री की कुर्सी तो हाथ से ही निकल जाएगी और वे प्रधान मंत्री की कुर्सी तो कुर्बान कर ही नहीं सकते इसलिए उन्होने पत्नी वाले कालम को खाली छोडना उचित नहीं समझा। इसी तरह महिला की जासूसी मे भी हर स्तर पर राज्य सरकार की मशीनरी का  दुरूपयोग तो किया ही गया लेकिन मोदी जी ऐसी किसी भी बात पर ऐसे मौन साध लेते है जैसे कि कुछ हो ही नही । 

मोदी का मौन मतलब कुछ न कुछ गडबड जरूर है वरना वे राहुल और सोनिया प्रियंका सब के प्रश्नों का उत्तर तुरंत देते है । वे इस पर क्यों नहीं जबाव देकर विरोधियों को शांत करते । क्योकि वे जानते है इस मसले पर अगर कुछ उल्टा पुल्टा मुंह से निकल गया तो न तो मीडिया चुप रहेगी और न ही विरोधी और इसका असर प्रधान मंत्री बनने की राह मे रोडा । जो वे किसी भी किमत पर आने देने के मूड में नहीं है ।

और देखिए अडानी को गुजरात में एक रूपये मीटर जमीन देने के प्रश्न पर भी वे किसी भी चुनावी सभा में स्पष्टीकरण देना उचित नहीं समझते । मौन वो ही मौन जसोदा बेन के मसले जैसा  वही मौन महिला की जासूसी के आरोपो वाला । क्योंकि मोदी जी जानते है कि इस मुद्दे पर  भी कुछ बोला गया तो अनावश्यक किसी भी बात पर बवाल खडा हो सकता है और इससे अच्छा है कि मौन ही रहा जाएं चार दिन की बाते है अपने आप शांत हो जाएगी क्योंकि वे जानते है कि मै कुछ बोलूंगा और अगर कोई ऐसी बात मुंह से निकल गई जो  चुनावी रणभेरी में उन्हे नुकसान पहंुचा सकती है तो  फिर उनके लिए प्रधान मंत्री की कुर्सी तक पहुंचना मुश्किल हो जाएगा । इसलिए मौन रहना ही फायेदमंद है । मोदी जी एक बार देश के प्रधान मंत्री बनना चाहते है और वे बनकर ही दम लेगें । ऐसा उनके अब तक के जीवन के आचरण से हमें देखने को मिलता है ।


क्योकि ये सर्व विदित है कि संघ में प्रचारक वही बन सकता है जो अविवाहित हो लेकिन मोदी जी ने प्रचारक बनने की ठान ली थी तो उन्होने 47 सालों तक यह किसी पर भी जाहिर नही होने दिया कि वे शादीशुदा है शायद संघ को ही अभी उनके नामांकंन के दाखिले पर ही आधिकारिक रूप से जानकारी मिल पाई होगी । जिस व्यक्ति का पाचन इतना जर्बदस्त हो कि 47 सालो तक वह अपने साथ रहने वालो को भी भनक न लगने दे कि उसकी शादी 1967 मे ही हो चुकी थी तो वह व्यक्ति तो नमो ही हो सकता है । अब मोदी जी ने प्रधान मंत्री बनने की ठान ली है तो वे बनकर ही दम लेगे चाहे उनके विरोधी अपने या पराए कितने ही पहाड खडे करे ये मानुस तो ठानने वाली बात तो करेगा ही । 16 मई के परिणाम ये तय कर देगे कि मोदी जी जो ठानते है वो करके ही दम लेते है  या फिर गुजरात में तो उनका ऐसा चरित्र चल सकता है लेकिन  पूरे देश में उनके इस चरित्र को लोग पंसद करते भी है या नहीं ।