मंगलवार, 11 मई 2021

व्यंग देश में किसी चीज की कमी नहीं है

 वाह मेरी सरकार आप नहीं गुनाहगार

जी हां देश में कोरोना की दूसरी लहर आते आते इससे लड़ने की हमनें पूरी तैयारी कर ली है। अरे साहब आप हंस रहे है?  हमारी सरकार कह रही है न देश में आक्सीजन की कमी है न अस्पतालों में बिस्तरों और वेंटीलेटर की। हमने चुना है न सरकार को तो हमें तो विश्वास करना चाहिए चाहे लोग बिना आक्सीजन के मरते आपको दिखे, चाहे लोग अस्पतालों में बेड के लिए इधर से उधर दौड़ते दिखे और चाहे अस्पतालों में वेंटीलेटर भी न हो। अरे आप तो नीरे भोले है, ये सब अफवाहें तो विपक्ष फैला रहा है, ये जो सड़को पर आक्सीजन सिलेंडर लेने को लंबी लंबी कतारें देख रहे हो ना  लोगों की गिड़गिड़ाते हुए देख रहे हों न, ये सब विपक्ष के लोग है जो हमारी चुनी हुई सरकार को बदनाम करने की साजिश है, देश की छवि दुनिया में खराब करने की चाल है।

आप किसी भी अस्पताल में चलें जाइए आपको तुरंत बेड मिल जाएगा आक्सीजन सिलेंडर तो आपको अस्पताल के दरवाजे पर ही मिलेगा अगर आपको आक्सीजन की कमी है तो सेचुरेशन नापने के साथ ही आपको जरूरत की आक्सीजन मिल जाएगी। वेंटीलेटर तो खाली पड़े है जनाब आपके लिए। ऐसी व्यवस्थाएं है हमारी चुनी हुई सरकार की।

वेक्सिनेशन सेंटर तो खाली पड़े है जनाब, टीके की कोई कमी नहीं है आप तो सेंटर पर जाए और तुरंत लगा कर आ जाए। किसी भी आयु वर्ग के हो आप आपके लिए टीको की कोई कमी नही है अगर कमी होती तो हम 93 देशों को 6.5 करोड़ टीके निर्यात करते क्या जनाब? आखिर हमारी चुनी हुई सरकार है ऐसी मूर्खता कैसे कर सकती है? ये तो विपक्ष है जो सरकार की अच्छी व्यवस्थाओं को पचा नहीं पा रहा है और अफवाहें फैला रहा है।


आम आदमी से अपील है कि वो अफवाहों पर ध्यान नहीं दे। कोरोना की दूसरी लहर से मुकाबला करने को देश पहले से ही तैयार था और तीसरी लहर की भी व्यवस्थाएं हमारी सरकार ने कर ली हैं।  और हां कोरोना से मौतें भी विपक्ष बढ़ा चढ़ा कर बता रहा है, गंगा में जो लाशें बहकर आ रही है वे भी विपक्ष के लोग बहा रहे है, वे लोगों को कह रहे है अधजली लाशें बहा दो या सीधे ही प्रवाहित कर दो मोक्ष मिलेगा बस इसलिए लोग ऐसा कर रहे है। बाकी विपक्ष सरकार को बदनाम करने की साजिश कर रहा है संकट की इस घड़ी में उसे सरकार की व्यवस्थाओं की तारीफ करनी चाहिए ताकि जनता का मनोबल बढ़े और वो इस महामारी का मरते हुए मुकाबला कर सकें।

ऐसी निपट सरकार देखी है आपने कि जो अव्यवस्थाओं की बात करें उसे ही जेल भेज दे बजाय व्यवस्थाओं को सुधारने के?  बिहार की सरकार ने पप्पू यादव को इसलिए गिरफ्तार कर लिया क्योंकि उन्होंने रूड़ी के यहां खड़ी  एंबुलेंस की स्थिति बता दी थी और अब ये भी लिख लीजिए कि अब जब इस पर बवाल हो गया है तो उनकी गिरफ्तारी इसके लिए नहीं किसी और केस में होना बता दी जाएगी। एक बेटा अपनी मां को आक्सजीन नहीं मिलने पर अपना दुख सार्वजनिक रूप से क्या बोला उसे गिरफ्तार कर लिया गया आखिर सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा कि ऐसे लोकतंत्र जिंदा नही रह सकता  लोगों को बोलने से रोकना उचित नहीं है।


इस सरकार की निरकुंशता  देखिए कि वो देश की सर्वोच्च अदालत को ही हड़का दे। कार्यपालिका के कामों में दखल न दे अदालतें।  यानि कोर्ट को  देश की स्थिति को देखते हुए स्वत संज्ञान लेने की जरूरत नहीं, लोग मरते दिखे, कहराते दिखे तो वो न्याय पालिका है जिसकी आंखों पर पट्टी बंधी है उसे तो वो पट्टी हटानी ही नहीं है। उसे तो कोई उसके पास आए तो संविधान की सीमाओं तक ही रहने देना है ।  और हमारी सरकार ने  ये व्यवस्थाएं पहले से ही कर रखी है कि कोई प्रशांत भूषण बनकर आएगा ही नही। आएगा तो भी ईडी, इनकम टैक्स, एनएसए, सीबीआई ऐसी है कि वो उससे ही पूछ लेगी कि बता सुप्रीम कोर्ट के वकीलों की फीस देने का पैसा कहां से आया?  मनी लांड्रिंग का केस तैयार हो जाएगा।

ऐसी संवेदनहीन सरकार जिसे लोगो की तकलीफ दिखाई नहीं देती लेकिन जो इस सरकार को दिखाना भी चाहे तो उस पर अफवाह फैलाने का आरोप। ये कैसी सरकार चुन ली हमने? संवेदनशील सरकार तो जहां कमी दिखाई जाए उसकी पूर्ति करती दिखाई देनी चाहिए उसके बदले जो दिखाए उसे ही हड़काए। लोकतांत्रिक सरकारें तो ऐसी नहीं सुनी थी इससे पहले।


शनिवार, 8 मई 2021

हमें अपने स्वास्थ्य सिस्टम को अपडेट करना होगा

 

प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में आक्सीजन  कांस्ट्रेटर तो सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों  पर आक्सीजन प्लांट हो


गांवों में बढ़ रहे कोरोना मरीज


हमारे देश का स्वास्थ्य सिस्टम 1957 के विकसित सिस्टम पर चल रहा है। 64 साल पहले विकसित सिस्टम वर्तमान कोरोना महामारी के आगे फेल हो गया है। विशेषकर कोरोना की दूसरी लहर ने हमें ये संदेश दे दिया है कि अब हमें इस पुराने सिस्टम को अपडेट करना होगा वरना तीसरी कोरोना लहर इससे भी ज्यादा घातक सिद्ध हो सकती है। अगर हम अभी भी नहीं चेते तो भावी संकट इससे भी बड़ा होते हमें अपनी आंखों से देखना पड़ सकता है। जो राज्य सरकारें इससे सबक लेकर अपने राज्यों के हेल्थ सिस्टम को अपडेट कर लेगी वे राज्य अपनी जनता को कम से कम नुकसान  से बाहर निकाल सकेंगे।


क्या अपडेट करें कि जनहानि कम से कम हो

अब प्रश्न आता है कि हम क्या अपडेट करें कि हम भावी जन हानि से लोगों को बचा सकें। आइए विचार करते है।


प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र मजबूत हों


हमारे गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और उप स्वास्थ्य केंद्र खुले है लेकिन उनमें या तो डाक्टर नही है या फिर वे ए एन एम के भरोसे चल रहे है। वर्तमान कोरोना संकट में इन स्वास्थ्य केन्द्रों को मजबूत किए जाने की जरूरत है ताकि वहां प्रारंभिक कोरोना मरीजों का इलाज हो सकें। वहां स्वीकृत पदों के अनुसार चिकित्सक, पैरा मेडिकल स्टॉफ हो उसके बाद प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर कोरोना के कम गंभीर मरीजों के इलाज की व्यवस्था हो, वहां कोरोना जांच की मशीन तकनीकी कर्मचारी के साथ हो।


 इसके अलावा जो आक्सीजन कांस्ट्रेटर जिला अस्पतालों में दिए जा रहे है वे प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर उपलब्ध हो। ये आक्सीजन कांस्ट्रेटर 5 लीटर आक्सीजन प्रति मिनिट मरीज को दे सकते है। गांवों में जिन कोरोना मरीजों को 5 लीटर आक्सीजन प्रति मिनिट की जरूरत हो उन्हें वहीं आक्सीजन मिल जाएं तो सामुदायिक केंद्रों तथा जिला अस्पतालों में ऐसे मरीजों का आना कम हो जाएगा जिससे बड़े अस्पतालों पर भार कम होगा और वे गंभीर कोरोना मरीजों का इलाज कर सकेंगे।


वर्तमान में हो ये रहा है कि जो भी आक्सीजन कांस्ट्रेटर आ रहे है वे सभी बड़ी अस्पतालों में आ रहे है इसलिए वहां भीड़ लगी है कम गंभीर मरीज भी वहीं पहुंच रहे है तो गंभीर मरीज भी।वहां के डाक्टरों को तो दोनो तरह के मरीजों को देखना पड़ रहा है जिससे क्रिटिकल मरीजों की जान समय पर इलाज नहीं मिलने से जा रही है। मेरा मानना है कि हर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर कम से कम 5 आक्सीजन कांस्ट्रेटर तो उपलब्ध तो हो और इनकी व्यवस्था एक बार क्षेत्रीय विधायक के विधायक कोटे की राशि से की जाएं। इस तरह कम गंभीर कोरोना मरीजों का इलाज अपने गांव के पास स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर मिल सकेगा और बड़े अस्पतालों में गंभीर मरीज ही पहुंचेंगे जिससे डाक्टरों को उनका इलाज करने का समय मिल सकेगा।


सामुदायिक स्वास्थ केंद्रों पर हो आक्सीजन प्लांट


इसी  तरह हर सामुदायिक केंद्र पर एक आक्सीजन प्लांट  लगाया जाएं ताकि आक्सीजन कांस्ट्रेटर से ज्यादा आक्सीजन जरूरत वाले कोरोना मरीजों का इलाज सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर हो सकें। हर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर कम से कम 10 बेड  वेंटीलेटर  वाले हो साथ ही 10 आक्सीजन कांस्ट्रेटर भी हो ताकि लिक्विड आक्सीजन वाले मरीजों के स्वास्थ्य में सुधार होने पर उन्हें आक्सीजन कांस्ट्रेटर पर लिया जा सकें।


इन सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर आक्सीजन प्लांट, वेंटीलेटर तथा आक्सीजन कांस्ट्रेटर  तथा आक्सीजन सिलेंडरों की व्यवस्था भी विधायक कोटे, नगर पालिका ,नगर परिषद या ग्राम पंचायतों के ग्रामीण विकास के बजट से की जाएं इसके अलावा स्थानीय भामाशाहों के सहयोग से भी इसके लिए आर्थिक सहयोग लिया जा सकता है। इससे ऐसे कोरोना मरीज जिन्हे ज्यादा आक्सीजन तथा वेंटीलेटर की जरूरत है वे अपने नजदीक के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर अपना इलाज करा सकें। इससे केवल क्रिटिकल मरीज ही जिला अस्तपतालों में पहुंच पाएंगे। और जिला अस्पतालों पर बहुत ही कम भार हो जाएगा और वे अच्छे तरीके से क्रिटिकल मरीजों की देखभाल कर सकेंगे।


 इसके अलावा ज्यादातर सामुदायिक केंद्रों में भी डाक्टरों तथा पैरा मेडिकल स्टाफ, वेंटीलेटर आपरेट करने वाले तकनीकी कर्मचारी, फार्मासिस्ट , रेडियो ग्राफर आदि की कमी है। हर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर एक्सरे मशीन, रेडियोलॉजिस्ट,सोनोग्राफी मशीन, लेबोरेट्री, लेब असिस्टेंट, स्त्री रोग विशेषज्ञ, बाल रोग विशेषज्ञ, सर्जन, मेडिसिन, दंत चिकित्सक, एंबुलेस तथा इनसे संबंधित हर उपकरण व जांच की सुविधा उपलब्ध हो।


जिला अस्पतालों में क्रिटिकल मरीजों की देखभाल हो


जिले के बड़े अस्पताल में केवल क्रिटिकल मरीज ही पहुंचे शहरी क्षेत्र के प्राथमिक तथा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर उनकी आवश्यकता के अनुसार वहीं व्यवस्थाएं हो जो ग्रामीण क्षेत्र के प्राथमिक, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर जो सुविधाएं हो वे हो लेकिन इनमें आक्सीजन वाले बिस्तरों की संख्या वहां की आबादी घनत्व को देखते हुए कम ज्यादा रखी जा सकती है।


बड़े अस्पताल में आई सी यू, क्रिटिकल केयर की जरूरत वाले मरीजों के साथ साथ कम गंभीर मरीजों के इलाज की व्यवस्था भी हो ताकि क्रिटिकल केयर से निकले मरीजों को उनकी जरूरत के हिसाब से शिफ्ट किया जा सकें। जिला अस्पतालों में अक्सीजन प्लांट की क्षमता जरूरत को ध्यान में रखते हुए रखी जाएं ताकि आक्सिजन की कमी नही रहें। इनके लिए फंड की व्यवस्था स्थानीय विधायक सांसद, नगर निगम, नगर विकास न्यास, जिला परिषद, सी एस आर कंपनियों तथा बैंकों, भामाशाहों आदि से की जा सकती है।


कोरोना महामारी की रफ्तार को देखते हुए मनरेगा के कामों में अस्थाई रूप से अस्पतालों में उपकरण खरीदने,  अस्पताल भवन बनाने आदि की मंजूरी भी बिना देरी के दे देनी चाहिए ताकि स्वास्थ्य सेवाएं अपडेट होकर इस महामारी से मुकाबला करने को तैयार हो जाएं।


डाक्टरों तथा पैरा मेडिकल स्टॉफ की नियुक्ति राज्य सरकार करें। मुसीबत काल में सेवा निवृत डाक्टरों तथा पैरा मेडिकल स्टॉफ की सेवाएं भी ली जा सकती है। सरकार योग्य चिकित्सको तथा पैरा मेडिकल स्टॉफ का चयन कर उनका पैनल भी तैयार कर सकती है जिन्हे जरूरत पड़ने पर बुलाया जा सकता है।


आवश्यकता इस वैश्विक महामारी से दिमाग से तथा व्यवस्थित रूप से लड़ने की है। इससे ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को भी सीधे शहरों में दौड़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी। हमें ये भी ध्यान रखना होगा कि अगर अच्छा इलाज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर मिलेगा तो मरीज अपने आप ही अपने नजदीक के स्वास्थ्य केंद्र पर पहुंचेंगे। लेकिन होता क्या है कि हमारी आधी अधूरी व्यवस्थाएं लोगों में विश्वास नहीं जमा पाती। वर्तमान स्थिति क्या है कि जहां एक्सरे मशीन है वहां रेडियोलॉजिस्ट का पद ही नहीं है। न वहां मशीन खराब होने पर उसे ठीक करने वाला तकनीशियन। लेबोरेट्री तो है लेकिन लेब टेक्नीशियन का पद खाली पड़ा है या जांच की सामग्री की कमी है। इन्ही कमियों की वजह से ग्रामीण सीधे जिला मुख्यालय या बड़े अस्पताल जाना पसंद करते है हमारी सरकारों को ऐसी कमियों को दूर करना होगा तभी जनता का विश्वास  ग्रामीण स्वास्थ्य केन्द्रों पर जमेगा।

बुधवार, 5 मई 2021

हर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर आक्सीजन प्लांट क्यों नहीं

कोरोना की तीसरी लहर की क्या तैयारियां कर रहे हम

जब हमें ये पता है कि कोरोना की तीसरी लहर भी आएगी तो हमारी सरकारें हर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर  इससे मुकाबला करने के लिए चिकित्सकों, पैरा मेडिकल स्टॉफ,आक्सीजन प्लांट, कम से कम 10 वेंटीलेटर बेड, उन्हें संचालित करने वाले स्टॉफ की व्यवस्था क्यों नहीं कर रही।


अगर हमें अपनी पब्लिक की जान बचानी है तो ये व्यवस्थाएं करनी ही होगी अन्यथा हालात दूसरी लहर से भी ज्यादा खराब हो सकते है।


आक्सीजन का एक प्लांट ,  वेंटीलेटर तथा उसके बेड आदि का पैसा उस क्षेत्र के विधायक को अपनी विधायक कोष की राशि से अपने क्षेत्र के हर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए देना चाहिए ताकि उनके क्षेत्र के हर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में आक्सीजन की कमी, वेंटीलेटर तथा बेड की कमी न रहे। 


 एक विधायक  को एक वर्ष में  काफी राशि विधायक कोष में मिलती है और उसके क्षेत्र में इतने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भी नही होते की इन सब पर वो राशि खर्च हो जाए। और अगर हो भी जाए तो ये जरूरी भी है और अभी अति जरूरत वाली भी।


इसी तरह राज्य सरकारों को इन सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर पर्याप्त चिकित्सकों, पैरा मेडिकल स्टॉफ को तथा वेंटीलेटर तथा आक्सीजन प्लांट को संचालित करने वाले तकनीकी स्टॉफ को लगाने की व्यवस्था करनी चाहिए। राज्य सरकार अगर स्थाई स्टॉफ नहीं रख सकती तो कम से कम संविदा वाले ऐसे कर्मियों का पैनल तैयार कर तो रख ही सकती है ताकि एमरजेंसी में इनकी सेवाएं ली जा सकें।


अगर हमने अब भी तैयारियां  नहीं रखी तो फिर लोगो की जान खतरे में पड़ सकती है। अभी समय इस महामारी पर ध्यान केंद्रित करने का है चुनावों या अन्य धार्मिक आयोजनों का नहीं। केंद्र और राज्य सरकारों को भावी खतरे को देखते हुए अब तो कम से कम तैयारियां कर ही लेनी चाहिए। विडम्बना ये है कि हमारी सरकारें एक व्यवस्था करती है तो उससे संबंधित अन्य व्यवस्थाएं नहीं करती जिससे उस व्यवस्था का पूरा लाभ जनता को नहीं मिल पाता।


अभी हाल ही में कई अस्पतालों में वेंटीलेटर खुले ही नही क्योंकि इनके संचालन वाले या इंस्टाल करने वाले लगाए ही नहीं गए जिससे वेंटीलेटर होते हुए भी मरीजों को इनका लाभ नही मिल पाया। इसी  तरह निशुल्क दवा वितरण की व्यवस्था तो कर दी गई, दवाइयां भी पहुंचा दी गई लेकिन इन्हे वितरित करने वाले  फार्मासिस्ट लगाए ही नही गए जिससे अप्रशिक्षित नर्सिंग स्टॉफ से इनका वितरण कराया जा रहा है। अब जिस नर्सिंग स्टाफ को मरीजों को ड्रिप, इंजेक्शन पट्टी आदि के काम करने चाहिए वे अपना मूल कार्य छोड़कर गांवों  की अस्पतालों में निशुल्क दवा वितरित कर रहे है।  अब कोई तो काम सफर हो ही रहा है। 


यही नहीं जिन अस्पतालों में एक्स रे मशीन, सोनोग्राफी मशीन या अन्य जांच मशीनें है,  उनके खराब होने पर उन्हें ठीक करने वाले तकनीकी मेकेनिक ही नहीं है जिससे एक बार खराब होने पर वे मशीनें कई कई  दिनों तक ठीक नही हो पाती । इनको ठीक करने कंपनी के मेकेनिक जब आते है तब तक मरीज परेशान होते  रहते है। अगर जिला स्तर पर इन मशीनों को ठीक करने वाले तकनीकी मेकेनिको के पद स्वीकृत कर दिए जाए तो वे पूरे जिले में कहीं भी ऐसी  मशीन खराब होने पर बिना कंपनी के मेकेनिकों का इंतजार किए जल्दी दुरस्त कर सकते  है।


जरूरत इस बात की है कि किसी भी सुविधा के शुरू करने से पहले उसके सभी पहलुओं की भी व्यवस्थाएं की जाएं ताकि वे चुस्त दुरस्त रहे और हर समय अपनी पूरी क्षमता से कार्य करती रहें।

सोमवार, 3 मई 2021

सेवा निवृत डॉक्टर, नर्स और सेना की मदद क्यों नहीं ?

देरी से किए निर्णयों से हजारों लाखों लोग जिंदगी से हाथ धो बैठेंगे

देश में इस समय कोरोना की दूसरी लहर ने कहर बरपा रखा है, आक्सीजन, दवाइयां तथा अस्पतालों में बेड की कमी से लोगों की सांसे उखड़ रही है। ऐसे में लगता है देश में कोई सरकार नहीं है । न राज्यों की सरकारें और न केंद्र सरकार ही कोई निर्णय ले पा रही है।

हालात साफ बता रहे है कि देश में हेल्थ इमरजेंसी है ऐसे में सरकारों को बिना देरी किए कई निर्णय लेने चाहिए जैसे केंद्र सरकार कह रही है कि आक्सीजन की कोई कमी नहीं है तो फिर वो सेना के माध्यम से कमी वाले राज्यों, जिलों में आक्सीजन क्यों नही पहुंचा रही ? क्या वो देश को बड़ी भारी क्षति होने के बाद जागेगी? कमी नहीं है तो फिर आक्सीजन तुरंत पहुंचे ऐसी व्यवस्था क्यों नही कर पा रही? क्या ये राजनीति करने का समय है? 

दूसरी तरफ अस्पतालों में तीमारदारों की कमी है कोविड वार्डों में  एक दो डॉक्टर और पैरा मेडिकल स्टाफ के भरोसे सैकड़ों मरीजों को छोड़ा जा रहा है क्या वे क्रिटिकल मरीजों के बेड तक समय पर पहुंच सकते है? 

 ये भी शिकायते लगातार आ रही है कि मरीजों की उठने के ताकत नहीं है कि वे उठकर पानी भी पी सके  खाना और दवाइयां खुद से लेना कैसे संभव हो सकता है? और ये भी संभव नही है कि वार्ड में ड्यूटी पर लगे एक दो रेजिडेंट डॉक्टर और दो तीन पैरा मेडिकल स्टॉफ हर मरीज की इन आवश्यकताओं को पूरा कर सकें आखिर वे भी तो इंसान है। 

तो इसके लिए विकल्प क्या हो सकते है?

कई विकल्प है इसके लिए

केंद्र सरकार को राज्य सरकारों के लिए एमरजेंसी बजट जारी करना चाहिए जिसमें राज्य सरकारें अपनी जरूरत के हिसाब से  तथा कमी वाले कोवीड वार्डो में रिटायर्ड डॉक्टर, और पैरा मेडिकल स्टाफ को लगा सकें इसके अलावा ऐसा संभव नही हो तो जो छात्र एम बी बी एस के अंतिम वर्ष में है उनकी सेवाएं ली जा सकती है इसके अलावा नर्सिंग कर रहे पैरा मेडिकल छात्रों को भी पूरी सुरक्षा देते हुए लगाया जा सकता है।

अगर ये भी संभव न हो तो सेना के जवानों की  सेवाएं मरीजों की देखभाल के लिए ली जा सकती है चार पांच मरीजों की देखभाल के लिए एक जवान को  लगाया जा सकता है जो मरीजों को समय पर दवा, पानी खाना दे सकें। हमारे जवान अपनी ड्यूटी पूरी ईमानदारी से निभाएंगे। 

इलाज के लिए सेना के रिटायर्ड डॉक्टर और पैरा मेडिकल स्टाफ की सेवाएं ली जा सकती है। वे पूरी जिम्मेदारी से इस संकंट की घड़ी में लोगों की जान बचाएंगे।

मरीजों को लाने ले जाने के लिए सेना की गाड़ियां काम में ली जा सकती है। नए कोविड वार्ड सेना के इंजीनियर आनन फानन में खड़े कर सकते है।

आवश्यकता है निर्णय लेने की

इस समय की देरी हजारों लाखों लोगों की जान ले सकती है। जो निर्णय केंद्र सरकार को लेने है बिना देरी किए तुरंत इंप्लीमेंट करने चाहिए और जो निर्णय राज्य सरकारों को लेने है वे राज्यों को लेने चाहिए ताकि लोगों की जान बचाई जा सकें। हमारे देश में दानदाताओ की कमी भी नहीं है वे न राज्य सरकार को धन की कमी आने देंगे और न केंद्र सरकार को। जरूरत केवल पवित्र मन से बिना राजनीति किए काम करने की है। पवित्र भावना से किए जाने वाले कार्यों में धन की कमी कभी नही आ सकती।