बुधवार, 21 अक्तूबर 2020

चिराग पासवान पाला बदल सकते है

 बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव की जन सभाओं में जो भीड़ उमड़ रही है वो बिहार में बदलाव की स्पष्ट कहानी कह रही है। इससे नीतीश के जेडीयू और बीजेपी में बैचैनी बढ़नी स्वाभाविक ही है।

 इस बीच रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान एल जे पी ने एन डी ए से नाता तोड लिया है ये कहकर कि मोदी से कोई बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं। अब तेजस्वी की जन सभाओं में भारी भीड़ ने उनके पिता की भविष्य दृष्टा की झलक उनमें भी दिखाई देती है।

 नीतीश का चिराग के खिलाफ जन सभाओं में जिस तरह बोला जा रहा है वो न केवल चिराग को जे डी यू से दूर कर रहा है बल्कि बीजेपी से भी उन्हें धीरे धीरे दूर करता दिखाई देता है। नीतीश की सभाओं में बीजेपी के नेता भी होते है और उनकी चुप्पी ही एक तरह से नीतीश की कहीं गई बातों में उनकी सहमति मानी जा सकती है और यही वो वजह होगी जो बिहार में चुनाव परिणामों  के बाद परिस्थितियों को बदलने वाली साबित हो सकती है।

जो चिराग अभी अपने को मोदी का हनुमान बता रहे है वे विपरीत परिणाम आते ही मौसम की तरह बदल जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कारण अगर तेजस्वी की आर जे डी और कांग्रेस को बिहार में बहुमत मिलता है तो चिराग बीजेपी नेताओं के, नीतीश की सभाओं में उपस्थित रहते हुए उनके बारे में किए गए प्रलाप को उनकी मौन स्वीकृति बताते हुए बीजेपी से किनारा करने का  बड़ा कारण बता सकते है। वे यहां तक कह सकते है कि वे तो अंत तक कहते रहे कि वे मोदी के हनुमान है लेकिन  बीजेपी ने और मोदी ने नीतीश को मेरे बारे में अनर्गल प्रलाप करने से नहीं रोका इस वजह से इस हनुमान की आस्था टूट गई और वे  इस एलाइंस से नाता तोड़ते है।

चूंकि रामविलास पासवान हमेशा, चाहे किसी की भी सत्ता रही हो वे सत्ता में रहे है इसी वजह से उन्हें  राजनीति का मौसम विज्ञानी भी कहा जाता रहा है, उसी के अनुसरण में  उनके पुत्र चिराग पासवान भी अगर तेजस्वी से हाथ मिला लें तो कोई आश्चर्य नहीं होना चहिए। वे पाला बदल कर बिहार में सत्ता में आने वाली पार्टी से हाथ मिला ले तो  भी कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए वो चाहे फिर किसी भी दल का क्यों न हो। 

तेजस्वी ने चिराग पासवान के साथ नीतीश के बर्ताव पर बयान देकर ये संकेत भी दे दिया है कि अगर जरूरत पड़ी तो वे चिराग का साथ भी ले सकते है हालांकि उनकी जन सभाओं में उमडती भीड़  ये स्पष्ट संकेत दे रही है कि उनको शायद इसकी ज़रूरत ही न पड़े लेकिन राजनीति में रास्ते खुले रखने पड़ते है न जाने कब किसकी जरूरत पड़ जाएं।

चिराग पासवान ने भी किसी भी तरफ जाने के अपने रास्ते खुले रखे है। अगर जेडीयू और बीजेपी  एलाइंस की सरकार आती भी है तो मोदी के हनुमान को तो  तव्वजों देनी पड़ेगी और अगर नहीं आती है तो बीजेपी नेताओं का उनके बारे में नीतीश की टिप्पणी पर मौन रहना इस हनुमान का मोह भंग होने का एक कारण बनते भी देर नहीं लगेगी। और अगर आरजेडी और कांग्रेस की सरकार आती है तो तेजस्वी ने जो चिराग पासवान के प्रति सहानुभूति चुनावी सभाओं में दर्शाई है वे नजदीकियो का बड़ा कारण बन सकती है। इससे चिराग के लिए सत्ता के नजदीक रहना आसान ही रहेगा। हांलांकि ये सब उनकी पार्टी की विधानसभा में लाई गई सीटों पर निर्भर करेगा कि वे कितने पावरफुल होंगे। अपने पिता की मृत्यु की सहानुभूति उन्हें कितनी मिलती है ये भी एक फेक्टर होगा। लेकिन ये तय है कि सत्ता चाहे किसी की आए चिराग पासवान राज्य या केंद्र की सत्ता के आसपास ही रहेंगे।


रविवार, 18 अक्तूबर 2020

सिन्धु नदी समझौते पर पुनर्विचार की अटकलें

 

ये पोस्ट मेरी 4साल पहले  फेस बुक पर उस समय लिखी जिस समय मोदी सरकार पाकिस्तान का पानी रोकने की बातें कर रही थी। उस समय उरी हमले के कारण पूरे देश में आक्रोश था।


इन दिनों मीडिया में सिंधु नदी समझौते पर पुनर्विचार की चर्चाए जोरो पर है।कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी इस पर गंभीरता से विचार कर रहे है। मीडिया में बताया जा रहा है कि भारत 1960 में पाकिस्तान से हुए सिंधु समझौते को रद्द कर सकता है। जिससे पाकिस्तान का पानी बंद किया जा सकता है। पाक समर्थित आतंकियों द्वारा उरी हमले के बाद देश भक्ति का ज्जबा भारतीय जनता में कुछ ज्यादा ही है। हर कोई चाहता है कि पाकिस्तान को सबक सीखा देना चाहिए। 

ऐसे में ये समाचार आना कि सिंधु जल समझौते पर प्रधानमन्त्री मोदी  पुनर्विचार कर रहे है और पाकिस्तान को सिंधु नदी का पानी  बंद किया जा सकता है। जनता की भावनाओं का फायदा उठाकर वाह वाह मोदी , ऐसा प्रधानमंत्री पहली बार आया है जो अब पाकिस्तान को सबक सीखा सकता है, जैसे जुमले सुने जा सकते है।  मीडिया में इस तरह की वाह वाही लूटकर प्रधानमन्त्री मोदी को महिमा मंडित किया जा रहा है। 

ये ऐसी नीति है कि जिसे इस तरह प्रचारित किया जा रहा है जैसे लोग मोदी को ही नेता मानने लगे ।

 अब आपको थोड़ा सा पीछे ले चलता हूं जिसमे मीडिया में अभी कुछ दिनों पहले ही  उरी के हमलें का बदला लेने का समाचार जोर शोर से प्रचारित किया गया जिसमे पहली बार सर्जिकल स्ट्राइक करने की बात जनता मीडिया के माध्यम से बताई गई। कई नेताओ व समर्थको ने तो  मोदी को 56 इंच के सीने वाला नेता बताते हुए विपक्ष को निशाना बनाया गया। 

जबकिअभी हाल ही में  सुप्रीम कोर्ट में विदेश सचिव ने बताया है कि सर्जिकल स्ट्राइक इससे पहले भी होती रही है लेकिन इस तरह उन्हें कभी प्रचारित नही किया गया। 

पाकिस्तान के साथ जिस सिंधु समझौते को रद्द करने अथवा पुनर्विचार करने की बाते की जा रही है वो भी सर्जिकल स्ट्राइक के बड़बोले पन की तरह की खबरे है जबकि हकीकत यह है कि सिंधु समझौते के तहत भारत अपने हिस्से का पूरा पानी उपयोग ही नही कर रहा। हम अपने हिस्से का पानी उपयोग करने की स्थिति में नही है इसलिए वो पानी पाकिस्तान जा रहा है। 

दरअसल उस पानी का उपयोग करने पर विचार किया जा रहा है जबकि प्रचारित यूं किया जा रहा है जैसे बस भारत पाकिस्तान का पानी रोकने ही वाला है और सिंधु नदी जल समझोते को रद्द करने वाला है। भारत की मीडिया के इस बहुप्रचारित खबरों का असर ये हुआ कि भारत ने तो पाकिस्तान का पानी बंद नही किया लेकिन चीन ने बर्ह्मपुत्र की एक सहायक नदी का पानी बंद कर दिया। 

भारतीय जनता में मोदी का प्रभुत्व जमाने के लिए प्रचारित इस समाचार का अंतराष्ट्रीय समुदाय में ये सन्देश गया कि भारत पाकिस्तान का पानी बंद करने जा रहा है । पाकिस्तान को भी भारत की इन मीडिया ख़बरों को अंतराष्ट्रीय जगत में भुनाने का मौका मिल गया और चीन ने पहला कदम उठा लिया। समझ नही आ रहा कि ये कैसी कूटनीती है जिससे लाभ तो हो न हो नुकशान पहले ही होना शुरू हो गया। 

जबकि सरकार ये जानती है कि सिंधु नदी समझौते में इतना ही किया जा सकता है कि भारत अपने हिस्से के पानी को रोक दे जिससे अंतराष्ट्रीय समझोते का उलघ्घन भी न हो और भारत की जनता की सहानुभूति भी बनी रहे। समझ से परे है कि इस तरह ढिढ़ोरा पिट कर क्यों हम अन्तराष्टिय समुदाय में अपनी विश्वनीयता में कमी ला रहे है। 

पाकिस्तान हमारे मीडिया की खबरें अंतराष्ट्रीय स्तर पर हमारे ही खिलाफ इस्तेमाल कर सकता है। वो अंतराष्ट्रीय समुदाय को हमारे मीडिया की खबरे दिखाकर ये बता सकता है कि भारत में उसके खिलाफ ऐसी खबरे  दिखाई जा रही है  इन खबरों से वह अंतराष्ट्रीय समुदाय की भावनाए अपनी ओर बटोरने की कोशिश में कामयाब हो सकता है। ये कूटनीति भारतीय जनता को अपनी और आकर्षित करने के लिए तो सही हो सकती है लेकिन अंतराष्ट्रीय जगत में हमारी विश्वशनियता पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाली साबित हो सकती है। जबकि मीडिया में ऐसी खबरे प्रचारित करने का एक मात्र उदेश्य जनता का रुख अपनी और करना मात्र ही  है। क्योकि मुदामुद्दी सरकार जानती है कि पानी रोकने की हद, वही तक उपयोग लाई जा सकती है 

जहा तक कि हमारें हक के पानी को पाकिस्तान जाने से रोकना । वह भी तब तक नही रोका जा सकता जब तक कि हम खुद उस पानी के उपयोग करने लायक नहरो का निर्माण नही कर लेते। क्योंकि हम पाकिस्तान को अपने हिस्से का पानी किसी सदायशता से या दयालुता से नही दे रहे , हकीकत ये है कि हमारे पास उस पानी को उपयोग में लेने लायक साधन ही उपलब्ध नही है इसलिए वो पानी पाकिस्तान जा रहा है और पाकिस्तान ने उस अतिरिक्त पानी के लिए अपनी नहरे विकसित कर ली है। 

उन नहरो में हमारे द्वारा उपयोग में नही लिए जा रहे पानी का जो हिस्सा पाकिस्तान जा रहा है उसका उपयोग 1960 से सिंधु नदी के किनारे बसे पाकिस्तानी गांव या शहर कर रहे है। जब भी  हम उस अतिरिक्त दिए जा रहे पानी को रोकोंगे तो पाकिस्तान अंतराष्ट्रीय जगत में हमारे मीडिया की इन खबरों को दिखाकर ये साबित करने की कोशिश करेगा  कि भारत ने हमारे पानी को रोक दिया है जैसे कि हमें पूर्व में ही आंशका व्यक्त की थी। भारतीय मीडिया की  ये खबरे उस समय पाकिस्तान के लिए अंतराष्ट्रीय समुदाय से सिम्पेथी प्राप्त करने का कारण बन सकती है। क्या इसे सफल दूरगामी कूटनीति कहा जा सकता है ?  इस तरह की नीति कुछ समय के लिए तो वाहवाही दिला सकती है लेकिन इसके दूरगामी परिणाम हमारे लिए ही घातक सिद्ध हो सकते है। इसलिए अति उत्साह में हमें  अपनी नीतियों का खुलासा समय से पहले नही करना चाहिए। उचित समय और क्रियान्विति के बाद ही जरुरत होने पर ही खुलासा करना चाहिए।