रविवार, 29 जून 2014

क्या आस्था, विश्वास, भक्ति, श्रद्धा के आधार पर् किसी को भगवान माना जा सकता है ? क्या हमारे धर्म ग्रंथो मे कोइ मानदंड बना रखे है जिसके आधार पर ये तय किया जा सके कि भगवान किसे माना जाए और किसे नही ?

शिर्डी के साइ बाबा को भगवान  मानने को लेकर हमारे धर्म गुरूओ मे बहस छिड गइ है . साइ के भक्त उन्हे भगवान  मानते है तो शंकराचार्य सरस्वती उन्हे भगवान की तरह महिमा मंडित किए जामने का विरोध करते है . प्रश्न ये आता है कि क्या आस्था, विश्वास, भक्ति, श्रद्धा के आधार पर् किसी को भगवान  माना जा सकता है ? क्या हमारे धर्म ग्रंथो मे कोइ मानदंड बना रखे है जिसके आधार पर ये तय किया जा सके कि भगवान किसे माना जाए और किसे नही ?

शंकराचार्य जी का सोच शायद ये है कि यदि इसी तरह 150 साल पूर्व हुए ऐसे किसी संत को भगवान की तरह पूजा जाने लगा तो हो सकता आने वाली पीड्डीयो को  ब्रह्मा, विश्नु, महेश, राम, क्रिश्न , आदि को सदियो से मान रही सनातनी परम्परा मे इनका नाम विलोप हो जाएगा और लोग इन्हे भूल जाएगे और 200-500 सालो मे हुए महापुरूशो को लोग भगवान मानकर यदि  पूजने लग जाएगे  तो इस प्रकार भावी पिधी टुकडो मे बंट जाएगी और सनातनी परम्परा विलुप्त हो जाएगी जिससे हिन्दू धर्म ही संकट मे पड जाएगा इस्लिए शायद शंकराचार्य सरस्वती जी विचलित हो गए होंगे , उन्होने हिन्दू धर्म को टुकडो मे बंट्ने से बचाने के लिए ही शायद एसा बयान दिया हो , इसमे उनकी भावना हिन्दू धर्म को बंट्ने से रोकने की हो सकती है

अब प्रश्न ये आता है कि क्या किसी संत  महात्मा, फकीर, महापुरूश या मानव मात्र की सेवा करने वाले महान आत्मा को भगवान मानना उचित होगा ? साइ बाबा का इतिहास देखा जाए तो वह 150 साल पुराना बताया जाता है जिसमे उन्होने फकीर के वेश मे रहकर दीन दुखियो की सेवा की , उनके अनुयाइयो ने उन्हे पूजना शुरू कर दिया  देश मे जगह जगह उनके मन्दिर बनने लगे, उनकी मूर्तियो की स्थापना की जाने लगी और साइ मन्दिर अलग से बनने लगे , हिन्दू धर्म के ही ज्यादातर लोगो की भावना साइ बाबा की ओर होने लगी , जब हिन्दू धर्म के सनातनी लोगो ने एक बडे वर्ग को साइ बाबा को भगवान मानकर पूजा अर्चना करते देखा तो उन्हे लगा कि इस तरह तो हिन्दु धर्म टुकडो टुकडो मे विखंडित होकर बिखर सकता है तो उन्होने इसका विरोध शुरू कर दिया जिसकी परिनिती हम आज देख ही रहे है

ये यक्ष प्रश्न है कि क्या सनातनी धर्म को मानने वालो का ये विचार उचित है कि इससे सनातन धर्म को नुकसान पहुचेगा ?  क्या हिन्दु धर्म् के टुकडॆ हो जाने से किसी दूसरे धर्म को भारत मे पैर फैलाने मे आसानी रहेगी ? क्या संत, महात्मा, फकीरो या महापुरूशो को भगवान का दर्जा देकर विभिन्ं खंडो मे हिन्दू धर्म को बांट्कर उसे विखंडित किया जा रहा है? ताकि भविश्य मे लोग विभिन्न संतो, महात्माओ व फकीरो के अनुयाइ होकर बट जाये , पर्श्न ये भी है कि यदी हम हर काल खंड के किसी संत, महात्मा या फकीर को भगवान मानकर पूजने लगे तो हर 150-200 सालो के बाद भगवान बदल जाएगे , फिर तो हर शंकराचार्य की गद्दी पर बैथने वाला अपने को भगवान मान कर अपनी पूजा अर्चना शुरू करा देगा और उनके अनुयाइ उन्हे भगवान मानकर पूजते रहेंगे, और फिर ये परम्परा मनुश्य के जीवन काल तक ही सिमट कर रह जाएगी , कल्पना किजिए कि यदि एसा होने लगा तो बह्र्मा, विश्नु महेश, राम, क्रिश्न को तो आने वाली पीधीया भूल ही जाएगी
फिर तो हर संत आशाराम बन जायेगा और अपने अपने अनुयाइयो की जमात के साथ भगवान की तरह पूजा जाने लगेगा , इससे ऐसा लगता है कि  द्वारका के शंकराचार्य जी की पीडा वाजिब ही लगती है कि इससे हिन्दू धर्म को नुकसान ही होगा , हिन्दू विभिन्न संतो को भगवान मानकर उन्ही मे रम जायेगा और बंट कर सनातनी परम्परा को समाप्त कर देगा

शायद इसीलिए द्वारिका के शंकराचार्य ने इसकी कल्पना कर ही साइ बाबा को भगवान नही मानने की बात कही होगी और सत्य् भी है कि हम अपने ही सनातन धर्म को  किसी व्यक्ति विशेश की आस्था की आड मे बांटने को तैयार  है , हमारे समाज को सैकडो हजारो संत, महात्माओ, फकीरो  महापुरूशो ने  मार्गदर्शन  दिया है क्य हम उन्हे भी भगवान मानकर पूजना आरम्भ कर  दे यदि ऐसा करने लगे तो गोस्वामी तुलसी दास, कबीर दास, तुकाराम , भगत सिन्ह, राजगुरु, महात्मा गान्धी, मदर टेरेसा जैसे हजारो सैकडो महापुरूश भगवान की श्रेणी मे आ जाएगे

 इसलिए उचित यही होगा कि  संत , महात्माओ, फकीरो, महापुरूशो के आर्दशो को अपनाते हुए हमारी सनातनी परम्पराओ को अक्षुण्ण बनाए रखे और इस विवाद मे न पडॆ कि किसे भगवान माना जाए , हमारे वेद, पुराणो और ग्रंथो मे जब अतिथी देवो भव जैसे उदाहरण भरे है तो फिर अतिथी की मूर्ती बनाकर उसे पूजने मे क्या हर्ज है लेकिन क्या हम ऐसा करते है ? नही करते ना तो फिर  साइ के दिखाए मार्ग का हम अनुसरण करे, उनकी तरह दीन दुखियो की सेवा मे अपन समय बिताए न कि इसमे कि साइ भगवान है या नही इसमे अपना समय बरबाद करे , स्वय साइ ने कहा  "सबका मालिक एक" उन्होने ये तो नही कहा कि "सबका मालिक मै"  इसका मतलब ये कि साइ बाबा ने भी जब अपने को भगवान नही कहा उन्होने भी मालिक किसी और को बताया तो हम उन्हे ही मालिक क्यो बता रहे है? ये भी तो उनके बताए मार्ग का अनुसरण नही हुआ ना. जबकि हम कहते है हम उनके अनुयाइ है . ये कैसे अनुयाइ हुए हम भाइ . उनके कही बात को ही हम नही मान रहे और उनके अनुयाइ होने का दंभ! ये कैसी भक्ति?

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