बुधवार, 4 मार्च 2015

आप पार्टी मे वर्चस्व की लडाई शुरू

आप पार्टी मे वर्चस्व की लडाई शुरू हो गई है . आप के नेता जिन्होने इस पार्टी को सींचा है वे ही अब अपना वजूद चाहने लगे है और ये सही भी है कि जब कोई पेड बडा हो जाए तो उसके फल की चाह उन सभी को होती है जिन्होने उसे लगाया है .पेड लगाने के लिए जमीन को तलाश कर उसे लगाना और फिर उसे प्रतिरोपित करना ,फिर उसकी देखभाल करने से लेकर उसमे फल लगने तक साथ रहने वाले सभी लोग उसके फल की चाह रखते है और वे समझते है कि पहला फल चखने का पहला अधिकार उनका है और ये मानवीय प्रव्रति है ,लेकिन होता क्या है कि ,पौधा लगने तक तो कुछ लोग ही होते है लेकिन जब वो पौधा अच्छा पेड बनता अन्य लोगो को दिखता है तो वे भी उस पेड को सीचने मे जुट जाते है ,कारवा थोडा ज्यादा हो जाता है लेकिन पोधे के लिए जमीन तलाशने वाले और उसे प्रस्थापित करने वाले उस पर अपना अधिक अधिकार मानते है और जब पेड पहला फल देता है तो वे उस पर पहला हक अपना मानते है जबकि बाद मे जुटने वाले भी उसी फल को पहले अपना मानते है और ऐसे शुरू होता है वर्चस्व का दौर . आप बतावे कि पहला हक किसका है ? पेड के लिए जमीन तलाश कर उसे प्रतिस्थापित कर उसे पौधा बनाने वाले लोगो का ?अथवा पौधा बनने के बाद उसे पेड बनाने मे सहयोग करने वाले लोगो का ? या सभी का बराबर अधिकार है पहला फल चखने का . आप पार्टी मे पहला फल पका हुआ दिल्ली की सत्ता रूपी बागडोर का है जिसे सभी अपना बता कर श्रेय लेना चाहते है .हालाकि धीरज रहे तो इस पेड मे कई और फल लग सकते है लेकिन पहले फल को ही पाने की लालसा ने इसा पार्टी मे ये नौबत ला दी है .अब देखना है कि कौन धीरज से संतोश से इसे खाने को राज़ी होता है और कौन उतावली मे है 

सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

क्यो जरूरी था भूमि अधिग्रहण बिल 2013 मे अध्यादेश के माध्यम से संशोधन ?


बीजेपी सरकार को भूमि अधिग्रहण कानून 2013 मे कुछ संशोधनो की जरूरत अध्यादेश के माध्यम से दिसम्बर 2014 मे करने की क्या जल्दी थी और वह भी तब जबकि दो महिने बाद फरवरी मे तो बज़ट सत्र होने ही वाला था ,फिर क्यो अध्यादेश लाने की जल्दी थी ,बजट सत्र मे ही संशोधन बिल पेश कर, बहस के बाद इसे पारित कराया जा सकता था .बीजेपी इसका जो कारण बताती है वो एक हो सकता है कि अन्य बिलो मे इसके प्रभावी होने से संशोधन की समस्या हो जाती इसलिए कानूनी बाध्यता के चलते इसे 29 दिसम्बर को लाना पडा .हो सकता है यह अपनी जगह सही भी हो लेकिन जानकारो का मानना है कि ये अध्यादेश लाना इसलिए भी जरूरि था क्योकि 26 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा भारत आ रहे थे और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मेक इन इंडिया कार्यक्रम के कारण उनके साथा आने वाले कम्पनियो कए सी ओज को निवेश के लिये प्रोत्साहित करने के लिये उन्हे ये बताना जरूरी था कि भारत मे उनके लिये उद्योग लगाना कितना आसान है ,इस संशोधन से उन निवेशको मे ये सन्देश दिया गया कि उनके लिये �भारत मे भूमि खरीदने मे उन्हे कोई परेशानी नही होगी और वे आसानी से अपनी च्वाईस की भूमि अपनी शर्तो पर कही भी खरीद सकते है भारत का कानून कही उनके लिए बाधक नही बनेगा
इससे प्रभावित होकर ही ओबामा ने भारत के 100 शहरो को स्मार्ट सिटी बनाने का आश्वासन दे गये ,क्या आप जानते है वे 100 शहर कौनसे है ? ये सभी शहर ऐसे है जहा जमीनो की किमते आसमान छू रही है ऐसे मे समार्ट सिटी बनाने के लिए उन कम्पनियो को जमीन तो चाहिए ना ,अगर 2013 का भूमि अधिग्रहण कानून लागू रहता तो इन कम्पनियो को 80% भूमि मालिको की सहमति जरूरी होती जो तभी हो पाती जबकि भूमि मालिको को उचित दाम मिलते ऐसे मे स्मार्ट सिटी बनाने वाली कम्पनियो को ज्यादा रकम भूमि मालिको को देनी पडती ,और ये भी हो सकता थ कि ये कम्पनिया अपने हाथ भी खींच लेती इससे निपटने के लिए और उनकी बाधा दूर करने के लिए ओबामा के आने से पहले ये संशोधन जरूरी हो गये थे और अध्यादेश लाने के अलावा और कोई सरल रास्ता भी नही था .उधोगो के लिये किसानो की भूमि अपनी मन चाही कीमत पर लेना तो ऐसे ही हुआ कि एक घर को बसाने के लिये बसे बसाए घर को उजाडना .हा ये सही है कि भारत मे उधोगो के लिए इंफ्रास्ट्रचर ,व सरल,आसान प्रक्रिया जरूरी है लेकिन उसके लिए भूमि मालिको, किसानो को उन उधोगो के मालिको के रहमो करम पर छोड देना तो लोकतांत्रिक मूल्यो के अनूकूल नही कहा जा सकता ,खेती को उजाड कर यदि हम ओधोगिकिकरण करना चाहते है तो क्या इसे समझ्दारी कही जा सकती है जबकि हमारा देश क्रषि प्रधान कहा जाता हो ओधोगिकीकरण भी उतना ही जरूरी है जितना कि खेती और किसानो का हित

भूमी अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध मे अन्ना का जंतर मंतर पर धरना


भूमी अधिग्रहण कानून 2013 के कुछ प्रावधानो मे संशोधंन के लिए भाजपा सरकार द्वारा दिसम्बर 2014 मे लाए गये अध्यादेश का विरोध जहा पहले विपक्षी दल ही कर रहे थे ,अब उस अध्यादेश का विरोध करने अन्ना हज़ारे भी पहुच गए है और उनके साथ मेधा पाटकर सहित करीब 70-80 किसान संगठन बताए जा रहे है .वास्तव मे 2013 मे जो भूमी अधिग्रहण बिल संसद मे पास किया गया उसका विरोध न तो उस समय बीजेपी ने किया और न ही किसान संगठनो और अन्ना हज़ारे ने किया ,तब अचानक बीजेपी के दिसम्बर 2014 के अध्यादेश का सभी क्यो विरोध करने लगे है ऐसे क्या संशोधन अध्यादेश के माध्यम से किये गये है कि इसका विरोध शुरू हो गया है . आईये कुछ समझने की कोशिश करते है कि आखिर जो बीजेपी 2013 के बिल पर सहमत थी तो फिर ऐसी क्या मजबूरिया थी कि उसे 2014 मे सत्ता मे आते ही इस बिल मे संशोधन के लिये संसद के सत्र तक का इंतज़ार नही था और उसे अध्यादेश के माध्यम से रष्ट्रपति महोदय से हस्ताक्षर कराकर लागू करना पडा और अब 6 महिने मे अध्यादेश को संसद मे पास कराने की अनिवार्यता ने सरकार को विरोध के रूप मे देखना पड रहा है
क्यो है विरोध ?
जानकारो का मानना है कि इस अध्यादेश के माध्यम से नरेन्द्र मोदी सरकार ने जो संशोधन किए है वह किसान विरोधी है ,जिसमे यह संशोधन सबसे बडा विरोध का कारण है कि 2013 के भूमी अधिग्रहण कानून मे निजी या कारपोरेट द्वारा भूमी के अधिग्रहण से पूर्व 80% भूमी मालिको की सहमति होने पर ही भूमी का अधिग्रहण किया जा सकेगा,सरकारी मामलो मे यदि भूमी अधिग्रहण अनिवार्य होने पर 70% मालिको की सहमति जरूरी होगी ,लेकिन इस सरकार ने इस प्रावधान को समाप्त कर दिया है अर्थात अब भूमी मालिको की सहमति जरूरी नही होगी यदि किसी निजी या कारपोरेट घराने को भूमी की जरूरत होगी तो वह अपनी जरूरत के हिसाब से भूमी को अधिग्रहित करा सकेगा इसके लिए 80% भूमी मालिको की सहमति के प्रावधान को हटा दिया गया है अर्थात यदि किसी निजी या कारपोरेट घराने को अपना उद्योग स्थापित करने के लिए भूमी की जरूरत होगी तो वह भूमी अधिग्रहित करा सकेगा
दूसरा विरोध का कारण यह बताया जा रहा है कि 2013 के भूमी अधिग्रहण कानून मे किसानो को या भूमि मालिको को उनकी भूमी की किमत निजी या कारपोरेट व भूमि मालिको के बीच हुई सहमति से निर्धारित होगी लेकिन विरोध करने वालो का कहना है कि नए लाये अध्यादेश मे नरेन्द्र मोदी सरकार ने यह प्रावधान हटाकर निजी या कारपोरेट द्वारा दी गई कीमत पर ही भूमी मालिको को संतोष करना पडेगा,यदि इसमे सच्चाई है तो यह वास्तव मे विरोध का कारण है ही ये तो एक तरह से पूंजीपतियो को मनमानी करने की खुली छूट देना है जो गरीब और कमजोर किसानो व भूमि मालिको की कमर तोड देने वाला है
तीसरा विरोध इस अध्यादेश का इस कारण भी हो रहा है कि यदि कोई किसान तय किया मुआवजा लेने को राजी नही होता है तो उसका मुआवजा सरकारी कोष मे जमा कराया जा सकता है अर्थात सरकार या निजी और कारपोरेट घराना जो मुआवजा तय करता है वो ही मुआवजा भूमि मालिको को लेना पडॆगा नही तो वह सरकारी कोष मे जमा हो जाएगा और भूमी का मालिकाना हक उस सरकारी ,निजी या कारपोरेट घराने के पास चला जाएगा जिसने भूमि का अधिग्रहण किया है यदि ये सही है तो इसका सीधा सीधा अर्थ तो भूमि छिनना हुआ

शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015

जाम मे जकडा शहर बीकानेर्

आज राजस्थान पत्रिका मे बीकानेर की रेल फाटको की समस्या पर पूरा एक पेज स्पाट लाईट आया है ,हर कोई इसका जल्दी समाधान चाहता है ,लोग बहुत परेशान है किसी दिन शहरवासी उमड पडे तो जिला प्रशासन,रेल अधिकारियो और जन प्रतिनिधीयो को भारी पड सकती है उनकी ठिलाई ,केवल बयान बाजी से काम नही चलेगा जनता बहुत परेशान हो चुकी है सब्र का बान्ध कब टूट जाये कोई थाह नही ,लोग अन्दंर ही अन्दंर भारी परेशान है ,अगर किसी संगठन ने झंडा पकड लिया तो जनता उसके साथ हो लेगी और फिर बीकानेर मे भी 16 दिसम्बर की दिल्ली जैसे सैलाब को होते देर नही लगेगी .सब्र का प्याला छलक पडे उससे पहले ही कोई समाधान सम्बधित जिला प्रशासन,रेल प्रशासन,और जनप्रतिनिधी तलाश ले तो अच्छा है
जागो प्रशासन जागो,आश्वासनो का लालीपाप बहुत हो गया ,जनता अब राहत चहती है केवल आश्वासन नही ,आश्वासनो को झेलते हुए उसे वर्ष्रो हो चुके है और सिथति वही ठाक के तीन पात वाली बनी हुई है ,नेता प्रशासन सब लाली पाप चूसा रहे है बीकानेर की जनता को ,इसा जाम से जनता आज़ीज़ आ गई है समझ लीजिए जनता के मन की बात ,जान लीजिए उसकी परेशानी कही ऐसा ना हो कि कानून व्यवस्था की सिथति बिगडने की नौबत आ जाए ,उपर के फोटो मे कैसे रैंग रहे है लोग ,ये स्थति हर रोज़ दिन मे कई कई बार होती है आखिर इस सिथति को कब तक सहन कर सकती है जनता ,विचार किजिए प्रशासन ,रैल प्रशासन और जनप्रतिनिधीयो ,एक एक दिन भारी होने लगा है अब इस समस्या से बीकानेर की जनता का



बुधवार, 18 फ़रवरी 2015

रेलवे फाटको के कारण रैंगता शहर बीकानेर

रेलवे फाटको के कारण रैंगता शहर बीकानेर
राजस्थान पत्रिका के बीकानेर संसकरण मे कल ये फोटो छपी है जिसमे लोग शहर के बीचोबीच स्थित रेल फाटको से किस तरह परेशान कि घंटो परेसान होने के बाद भी फाटक नही खुलने पर मिलकर एक दुसरे की मोटर साईकिलो को फाटक के उपर से निकालने को मजबूर है ,इनको मालूम है ये खतरनाकहै और गैर कानूनी भी .लेकिन ना तो प्रशासन और ना ही रेलवे और ना ही चुने हुए जन प्रतिनिधी इसका निदान निकालने के प्रति गंभीर दिखाई देते है .ये समस्या कोई 1-2 साल की नही है बीकानेर की जनता इस समस्या से वर्षो से दो चार हो रही है ,पर सरकार, प्रशासन,जनप्रतिनिधी ऐसी कुभकर्णी नीन्द सोए है कि उनकी नीन्द है कि खुलने का नाम ही नही ले रही .किसी दिन जनता परेशान होकर सडको पर उतरेगी और इस उदाशीनता के प्रति लावा फूटॆगा तभी सभी पक्षो की आंखे खुलेगी .
ऐसे फ़ोटो कोई आज ही नही आये है अखबारो मे ये तो रोज़ आते है पर कोई फर्क नही पडता ना तो प्रशासन पर ना रेल अधिकारियो पर और ना ही जन प्रतिनिधीयो पर ,शांत शहर को अशांत क्यो बनाने को उतारू है ,ये सब ! प्लीज हमारे शांत शहर को मजबूर मत करिए,शीघ्र राहत देकर यहा को लोगो को छुटकारा दिला दिजिए ना आप सब मिलकर

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

दिल्ली के चुनावो से भाजपा और कांग्रेस दोनो बडी पार्टियो को सबक लेने की जरूरत है : जनता ने उनको चुना जिन्होने बिना किसी जातिय भेदभाव के वोट मांगे ,


दिल्ली की जनता ने पूरे देश के लोगो के मिजाज को बता दिया है कि जनता किसी भी जाति,धर्म,समुदाय को अपना वोट बैंक समझने वाली पार्टीयो को नकारने लगी है , इन चुनावो मे ना तो इमाम बुखारी की अपील को जनता ने स्वीकार किया और ना ही राम रहीम के 22 लाख अनुयायियो ने. उन्होने इन राजनीतिक दलो को ये बता दिया है कि अब उनको जाति धर्म समुदाय के आधार पर वोट मांगने की अपनी रणनीति को बदल लेना चाहिये वरना उनका हष्र आगामी चुनावो मे दिल्ली जैसा होने मे देर नही लगेगी , अब भारत की जनता, बांटने की राजनीति पर वोट देने की परम्परा को छोडने की तैयारी मे है और इसकी शुरूआत दिल्ली से हो चुकी है, अब वोट विकास के नाम पर ही मिलने की मानसिकता जोर पकडने लगी है , जो पार्टी जनता के इस मिज़ाज़ को जितना जल्दी समझ लेगी वो उतना ही जल्दी भारत के लोगो के दिलो पर राज़ करने मे सक्षम होगी.इसका उदाहरण केजरीवाल को दिल्ली की जनता द्वारा सत्ता सोपना है, जिन्होने आम जनता के दैनिक जीवन मे आने वाली कठ्नाईयो को अपना मुद्दा बनाया और जाति, धर्म और समुदाय से उपर उठकर वोट करने की अपील की उसका असर ये हुआ कि हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख,ईसाई सभी ने जात पांत से उपर उठकर उन्हे इतना वोट दिया कि भारतीय लोकत्ंत्र के इतिहास मे आज तक किसी को ऐसा बहुमत कभी नही मिला और शायद कभी किसी को मिले भी नही 70 सीटो मे से 67 सीटो पर (रूझान के अनुसार ,हो सकता है 1-2 सीटो मे फाईनल रिजल्ट तक बदलाव हो जाए,और ये भी कि संख्या ये ही रहे ) बहुमत , खुद केजरीवाल इतने अधिक बहुमत से अच्ंभित है , कारण स्पश्ट है कि पिछली बार जनता ने समझ लिया कि केजरीवाल काम करके दिखाने वाले नेता है लेकिन स्पष्ट बहुमत नही मिलने के कारण वे काम नही कर सके ,इस बार जनता ने इस काम करने वाले व्यक्ति पर विश्वास किया है और इनकी झोली इतनी लबालब कर दी है कि अब ये जनता को नही कह सकते कि स्पष्ट बहुमत नही मिलने के कारण हमारी पार्टी अपने वादे पूरे नही कर सकती , अब बारी केजरीवाल की है कि वो जनता की झोली मे अपने किये वादो से भरते है या नही , यदि उन्होने भी भाजपा की तरह इन वादो को चुनावी जुमला कहकर भुलने की कोशिश की तो जनता उनका भी हष्र , केन्द्र की 9 महिने पुरानी सरकार का किया है , वो दोहराने मे समय नही लगाएगी.अब जनता ने ये मिथक तोड दिया कि वोट जांत पांत ,धर्म या समुदायो के मठाधीशो से अपील कराने से मिल सकते है ,जनता जागरूक हो रही है और नेताओ की लफ्फाजियो को समझने लगी है ,उन्हे तो जो काम करता हुआ दिखाई देगा वोट उसे ही मिलेगा,इस रास्ते को अखित्यार करने लग गई है , इसलिए सभी राजनीतिक दलो को समझ लेना चाहिए कि आने वाले चुनावो मे वो लोगो की तक्लीफो पर अपने एजेन्दे बनाए और जाति ,धर्म के नाम पर वोट बटोरने की राजनीति को तिलांजली दे, जो रजनीतिक दल जनता के इस मिज़ाज़ को जितना जल्दी पकडेगा वो उतना ही जल्दी भारतीय राजनीति को अपने पक्ष मे करने मे सफल रहेगा ,साथ ही एक बात और कि लफ्फाजी का जुमला जनता को कुछ दिनो तक तो लुभा सकता है लेकिन उसे उतरते भी ज्यादा समय नही लगता ,जो इसे समझ लेगा वो सफल हो जायेगा और जो नही समझेगा वो पिछड जायेगा