शनिवार, 14 नवंबर 2020

बिना पटाखों की दीपावली, घी के दिए जलाकर करें वातावरण को शुद्ध

 



अनुभूत करें भगवान राम के अयोध्या लौटने के असली दिन को


दीपावली पर पटाखें न फोड़े और दीपावली मनाएं , कितना अजीब लगता होगा ये आज से 50-60 वर्षो पहले कहना। उस समय लोग ये कहने वाले को कितना मूर्ख समझते होंगे, उसका कितना मजाक बनता होगा।


 लेकिन 2020 की 14 नवम्बर की दीपावली वास्तव में बिना पटाखों वाली दीपावली है। सरकार ने भी पटाखों को बेचने और चलाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि कभी दीपावली भी बिना पटाखों के मनानी पड़ सकती है।


कोरोना वायरस ने जब मार्च में  होली पर अपनी उपस्थिति दर्ज की थी तो किसी ने सोचा नहीं था कि  ये बीमारी इतनी लंबी चलेगी और दीपावली के पटाखे चलाने की परम्परा को भी ये डस लेगी। जी हां ये डसना ही है । दीपावली का मतलब ही पटाखों का पर्याय होता है लेकिन कोरोना ने इस मतलब को बदल दिया है। हालांकि पिछले काफी वर्षो से पटाखों से  बढ़ते वायु प्रदूषण  से सरकारें  लोगों को आगाह करती आईं है और अपील करती रही है कि वे केएम से कम पटाखे जलाएं ताकि वायु प्रदूषण कम हो। दिल्ली में तो बाकायदा पटाखों का समय निर्धारित कर दिया गया कि निर्धारित समय के बाद पटाखे ऩ छोड़े जाएं लेकिन पूर्णतः प्रतिबन्ध नहीं लगाया। लेकिन इस बार तो कोरोना वायरस के कारण पटाखों पर बाकायदा पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। 


सरकारों ने पटाखें बेचने के लाइसेंस नहीं दिए है और जिनके पास स्थाई लाइसेंस थे उनके लाइसेंस भी रद्द कर दिए है। और तो और अगर आप सोच रहे है कि कोई बात नहीं बेचने पर प्रतिबन्ध लगाया है सरकार ने ,तो हमारे पास तो पहले से ही है ,एचएम उन्हें छोड़कर अपनी दीपावली पटाखों वाली मना लेंगे । तो जनाब ये भी नहीं कर सकेंगे इस बार आप। आपके पटाखे आपकी अलमारी को शोभा ही बढ़ा सकते है या फिर आप उन्हें देख कर आभास कर सकते है क्योंकि आप उन्हें छोड़ नहीं सकते। सरकार ने पटाखें बेचने के साथ साथ छोड़ने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। 


कोरोना ने लगाई लगाम


कोरोना ने पटाखों पर लगाम लगा दी है। क्योंकि पटाखों से वातावरण में प्रदूषण बढ़ जाता है और ये प्रदूषण कोरोना मरीजों को श्वास की तकलीफ कर सकता है। इस  बीमारी में अधिकाश मौत श्वास की तकलीफ से ही होती है। मरीज के फेफड़े सामान्य श्वास भी लेने में दिक्कत महसूस करते है  और अगर फिर प्रदूषित हवा मिलने से तो जिन मरीजों की स्थिति सामान्य है उनकी पटाखों से प्रदूषित हुई हवा जान लेवा साबित हो सकती है। इसलिए सरकार ने इस बार पटाखों पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा दिया है।


घी के  दिए जलाकर मनाएं दीपावली


जब भगवान रामचन्द्र जी लंका से जीतकर अयोध्या आए थे तो लोगों ने अपने घरों पर घी के दिए जलाकर खुशियां मनाई थी। उस समय पटाखों का प्रचलन नहीं था। लोगों ने घी और तेल के दिए जलाकर इस त्यौहार को मनाने की शुरुआत की थी आज हजारों साल बाद फिर लोगों को घी और तेल के दिए जलाकर दीपावली मनानी पड़ रही है। हालांकि असली दीपावली तो घी और तेल के दिए जलाकर ही मनाई जाती है लेकिन कालांतर में इसमें पटाखों ने कब अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया पता ही नहीं चला। वर्तमान पीढ़ी तो दीपावली का मतलब ही पटाखों का त्यौहार मानती है। पटाखें नहीं जलाना मतलब अपनी खुशियों को मन मसोस कर दबाना। इसे सरकार का जबरस्ती का थोपा गया आदेश मानना। जबकि वास्तव में असली दीपावली तो घी के दीयो की ही होती है ये आज की जनरेशन जानती ही नहीं।


माटी के दीयों की सुगन्ध, घी की बाती से सरोबार होकर प्रदूषित वातावरण को शुद्ध करने को आतुर



प्रकृति ने खुद ही  भगवान राम के उस दिन अयोध्या लौटने के दिवस को एक बार फिर उसी रूप में मनाने को हमें विवस कर दिया है। देखे,महसूस करे और अनुभव प्राप्त करे, इस बार कि भगवान राम के अयोध्या लौटने के उस दीपावली के दिन भी कुछ ऐसा ही रूप था, जिसमें पटाखों की गूंज नहीं थी लेकिन घी के दीयों की वातावरण को शुद्ध करने वाली सौंधी माटी की सुंगध थीं। आज फिर हजारों वर्षो बाद उसी वातावरण को निर्मित करने का अवसर आ गया है जिसमें एक बार फिर वहीं माटी के दीयों की सुगन्ध घी की बाती से सरोबार होकर प्रदूषित वातावरण को शुद्ध करने, भगवान राम के समय के वातावरण निर्मित करने को आतुर है। उस काल में हम नहीं थे लेकिन उस काल की परिस्थितियां बनाने का एक अवसर हमें प्रकृति ने जरूर दे दिया है जिसे हमें जी कर न केवल वायु प्रदूषण को रोकना है बल्कि देश के करोड़ो लोगों को सांस की तकलीफ से भी बचाना है। अगर इस समय हमनें नहीं सोचा तो एक ही काल रात्रि में ये दीपावली का त्यौहार हजारों लाखों लोगों की जिन्दगी पर तो भारी पड़ेगा ही साथ ही उस काल के वास्तविक अनुभव से भी हमें वंचित कर देगा।


आइए हम सब मिलकर भगवान राम के उस वास्तविक दिन को अनुभूत करें जिस दिन वे अयोध्या लौटे थे और लोगों ने घी के दिए जलाकर वातावरण को शुद्ध बनाया था।