शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

काला बाजारियों जरा सोचो

संकट की इस घड़ी में जब लोग मानव सेवा निशुल्क कर रहे है तब तुम लोगों को लूट रहे हो ? 


निशुल्क सेवा नहीं कर सकते तो  कम से कम कालाबाजारी तो मत करो


इतना तो कर ही सकते हो कि जितने कीमत की वस्तु दवा या आक्सीजन है उस कीमत पर तो दे सकते हो ये भी बहुत बड़ी सेवा होगी इस संकट काल में। इस कीमत में भी आपका मुनाफा तो शामिल ही है।


अस्पतालों में क्या हालत हो रही है ये तुम भी देख रहे होंगे  किसी का जवान बेटा दवाइयों आक्सीजन के अभाव में दम तोड रहा है तो किसी का सुहाग लुट रहा है कोई बच्चे अपने पिता माता को खो रहे है तो कोई बहन अपने भाई के लिए हाथ पैर जोड़ रही है।


एक बार अपने को उस बेड पर होने की कल्पना करो और सोचो कि आपकी मां आपके जीवन के लिए भीख मांग रही है आपकी पत्नी डाक्टरों से आपको बचाने की गुहार लगा रही है आपके बेटे बेटी कातर निगाह से बेबस खड़े है आपकी बहन आपकी जान बचाने के लिए लोगों के पैर पड़ रही है और आपके लिए न रेडमेसीवर मिल रही है न  आक्सीजन। 


आप अभी कालाबाजारी करके लाखों कमा भी लेते है लेकिन हो सकता है आप भी इस बीमारी की चपेट में आ जाओ । अगर आप रेडमेसिवर बेचते हो तो मान लिया आप रेडमेसिवर की व्यवस्था तो कर लोगे लेकिन आक्सीजन की जरूरत होने पर आपके परिजन उसी तरह गुहार लगाते दिखेंगे जिस तरह दूसरे लोग अभी कर रहे है और उनको भी आक्सीजन नही मिलेगी तो क्या होगा। इसी तरह जो लोग आक्सीजन की काला बाजारी कर रहे है वे अपने और परिजनों के लिए आक्सीजन की व्यवस्था तो कर लेंगे लेकिन रेडमेसिवर के लिए तो उन्हे भी किसी के हाथ पांव पकड़ने होंगे । बताए इस तरह काला बाजारी कर लाखों कमाए किस काम के? 


इसी तरह उन जरूरी चीजों की काला बाजारी कर लाखों कमाने  वाले अपने को उस बेड पर होने की कल्पना करें जिस पर मौत मंडरा रही है उस समय घर के लोगों को किस चीज की जरूरत नहीं होगी आप जिस वस्तु का व्यापार करते है मान लिया उसकी व्यवस्था तो आप बेड पर से कर देंगे लेकिन वहां पर दवाइयां आक्सीजन के लिए तो आपके परिजनों को भी उसी लाइन में लगना पड़ सकता है। ऐसे में वो लाखों कमाए हुए ऐसे ही खर्च हो जाएंगे।


अगर काला बाजारी न हो तो क्या हो


अगर काला बाजारी न हो तो  देश में आक्सीजन जरूरत से ज्यादा उपलब्ध है। अगर कालाबाजारी न हो तो रेडमेसिवर सबको मिल सकती है। अगर काला बाजारी न हो तो किसी वस्तु की देश में कमी नहीं है। और कमी भी है तो कालाबाजारी की वजह से ज्यादा लोग जान गंवा रहे है आवश्यकता की पूर्ति की जा सकती है लेकिन कालाबाजारी की  पूर्ति नहीं हो सकती। 


कई लोग और संस्थाएं इस संकट की घड़ी में  लोगों को फ्री भोजन, आक्सीजन, दवाइयां आदि दे रहे है क्या आप अपने पास के स्टॉक को अपना वाजिब मुनाफा रखते हुए  भी नही दे सकते? ये भी तो बड़ी सेवा है कि आपके पास उपलब्ध स्टॉक तक आप उसे उतनी कीमत पर उपलब्ध कराए जितने की वो है। स्टॉक समाप्त तो आप क्या कर सकते है। अगर सभी ये संकल्प ले ले तो कोई मां अपने बेटे के लिए गिड़गिड़ाती नहीं दिखेगी कोई पत्नी अपने सुहाग की भीख मांगती नहीं दिखेगी कोई बहन अपने भाई के लिए किसी के पैरो में गिरती नहीं दिखेगी कोई बच्चे अपने माता पिता के लिए बिलखते नहीं दिखेंगे।


 बस  इतना भर करना है कि आप जिस किसी का भी व्यापार करते है उस चीज को उतने ही दामों में बेचने का संकल्प ले कि इस महामारी में मुझे काला बाजारी नहीं करनी। मैं आपको मुफ्त में बेचने को नही कहता क्योंकि मैं जानता हूं घोड़ा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या? लेकिन आप इतना तो इस महामारी के वक्त कर ही सकते है। ये भी आपका योगदान ही होगा। और अगर सभी ये निश्चय कर ले कि मैं इतना सहयोग तो करूंगा ही तो देखिए फिर हमारे लोगों की जान कैसे बचनी शुरू हो सकती है।


शमशानो में जिन्हे जलाया जा रहा है या जिन्हे कब्रिस्तानों में दफनाया जा रहा है उनमें से किसी के साथ भी कमाया हुआ एक पैसा भी नहीं जा रहा फिर इस संकट की घड़ी में  कमा किसके लिए रहे हो? कहीं काला बाजारी से संकट की इस घड़ी में कमाया गया पैसा आपके किसी परिजन की बीमारी पर ही खर्च न हो जाएं?  ये गारंटी तो है नहीं कि ये बीमारी आपको या आपके परिजन पर तो आएगी ही नहीं। 10 दिनों में ये बीमारी अच्छे भले इंसान को लील सकती है तो हमारा जीवन भी तो अनिश्चित है फिर ऐसी कमाई किस काम की?


कोई नहीं देख रहा लेकिन वो ऊपर वाला तो देख रहा है


हां सही है कि आपको काला बाजारी करते हुए कोई नहीं देख रहा लेकिन वो ऊपर वाला तो सबको देख रहा है।  किसी का जवान बेटा जा रहा है तो किसी का भाई! ये इस जन्म का नहीं तो प्रारब्ध का कोई कर्म तो है ही जो उन्हे ऐसा देखना पड़ रहा है।  मान लो इस जन्म में  काला बाजारी से धन कमा लिया और कुछ हुआ भी नहीं तो आप लोगों को तड़पते देख तो रहे है वो उनके इस जन्म का नहीं तो प्रारब्ध का तो कोई कलंक तो है ही।


इसलिए इस संकट की घड़ी में काला बाजारी नही कर मानव सेवा करो। अगर नहीं कर सकते तो कम से कम आम दिनों की तरह अपना वाजिब मुनाफा लेते हुए तो काम कर ही सकते हो। आज के समय में ये भी एक सेवा ही है।


आओ संकल्प ले कि हम जो भी व्यापार करते है उनमें अपना वाजिब मुनाफा लेते हुए अपने सारे स्टॉक को बेचेंगे। यही आज के समय की बड़ी सेवा है।


इन तस्वीरों में मरीजों की जगह खुद को या अपने किसी परिजन को रख कर सोच लो क्या गुजरती होगी  इन लोगों पर

गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

आक्सीजन के लिए हाहाकार

आक्सीजन के अभाव में दम तोड रहे मरीज

देश में कोरोना की दूसरी लहर ने आक्सीजन के अभाव में मरीजों को दम तोड़ने पर मजबूर कर दिया है

विभिन्न राज्यों से कोरोना मरीजों का आक्सीजन के अभाव में दम टूट रहा है जिस पर विडंबना ये कि हम विश्व में आक्सीजन निर्यात करने वाले सबसे बड़े निर्यातक है। 

आखिर ये स्थिति आई कैसे?

आक्सीजन के सबसे बड़े निर्यातक को 50 हजार मिट्रिक टन आक्सीजन आयात करनी क्यों पड़ रही है? इसे मिस मैनेजमेंट कहा जाए या  जानबूझ कर  की गई लापरवाही। हमें ये आभास ही नही था कि देश में आक्सीजन के लिए इस तरह हाहाकार मच सकता है हम आक्सीजन का निर्यात दुगना करते रहे पिछले साल जहां हमनें  4500 मिट्रिक टन इंडस्ट्रियल आक्सीजन निर्यात की वहीं इस साल जनवरी तक 9000 मिट्रिक टन निर्यात की। हमारे सत्ताधारी नेता कहते है कि जो आक्सीजन निर्यात करते है वो इंडस्ट्रियल आक्सीजन है जबकि  इसे मेडिकल आक्सीजन में बदला जा सकता है।

प्रश्न ये है कि जब इंडस्ट्रियल आक्सीजन को मेडिकल आक्सीजन में बदला जा सकता है तो फिर हमनें ये तैयारियां क्यों नही रखी। और तो और पूरे देश में आक्सीजन सप्लाई करने वाले टैंकर भी सिर्फ 2000 ही है। क्या ये 135 करोड़ देशवासियों के लिए पर्याप्त है? क्या हमें दूसरी लहर के आने पर अपने इंतजाम पूरे नही करने चाहिए थे ? 

प्यास लगने पर कुआं खोदने की आदत 

हमनें इस ओर ध्यान दिया ही नहीं।  आफत आने पर कुआं खोदने की हमारी प्रवृति ने लाखों लोगों की जान पर ला दी। अब हम इंडस्ट्रियल आक्सीजन को भी मेडिकल आक्सीजन में बदलने के निर्देश दे रहे है तो निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा रहे है इसके अलावा आक्सीजन का आयात भी करने के आर्डर दे रहे है। लेकिन जिस प्राणवायु के 2 सेकेंड के लिए भी बाधित होने पर मरीज की जान पर बन आती है उसके लिए दिनों इंतजार करने तक तो हज़ारों लोग काल कलवित हो जाएं तो आश्चर्य कैसा ?  

केंद्र सरकार करती है नियंत्रित आक्सीजन सप्लाई

देश में जितने भी आक्सीजन उत्पादन इकाईयां है इनका नियंत्रण केंद्र सरकार करती है। वह ही तय करती है की किस राज्य को कितनी आक्सीजन सप्लाई करनी है। कितनी इंडस्ट्रियल और कितनी मेडिकल आक्सीजन उत्पादित होगी और किस तरह उसका वितरण होगा?

हमारा डिजास्टर मैनेजमेंट फेल

 अब अगर केंद्रीय डिजास्टर मैनेजमेंट सबल होता और सीरी की रिपोर्टों को गंभीरता से लिया जाता तो आज ये स्थितियां नहीं आती। हमनें न तो सीरी की रिपोर्ट को तवज्जो दी और न ही आपातकाल में डिजास्टर मैनेजमेंट की तकनीक का इस्तेमाल ही किया।

भावी संकट की हमें जानकारी थी लेकिन हमनें ये नहीं सोचा था कि एक दिन में 3 लाख लोग भी कोरोना पॉजिटिव आ सकते है लेकिन डिजास्टर मैनेजमेंट ही तो हमें ये बताता है कि संकट के लिए हमें कैसे व्यवस्थाएं करनी है लेकिन हमने या तो इस ओर ध्यान दिया ही नही या फिर हमारा डिजास्टर मैनेजमेंट इतना निकम्मा है कि उसके संकट के समय हाथ पांव फूल जाते है।

हमारे नेता अपने अपने हिसाब से बयान देते है सत्ताधारी नेता अपनी सरकार का पक्ष लेते है तो विपक्ष के नेता अपने हिसाब से।  जबकि देश की जनता पर जब संकट हो तो हर नेता को ईमानदारी से पक्ष विपक्ष को भूलकर वास्तविक स्थिति को देश के सामने रखना चाहिए ताकि उसकी कमियों को दूर किया जा सकें।

शनिवार, 17 अप्रैल 2021

लौट आया कोरोना

 

लौट आया कोरोना

जी हां, कोरोना फिर से लौट आया है। पिछले साल मार्च में ही इसने अपना पहला कदम रखा था  अब ये एक साल का होकर दौड़ने लगा है। जी हां इसकी रफ्तार पिछले साल से दुगुनी है और कहीं कहीं तो ये तिगुनी चौगुनी रफ्त्रार से भागने लगा है।


क्या उपाय किए हमनें ?


 जब ये लौट ही आया है तो हमें आंकलन तो करना ही पड़ेगा कि जब विश्व के दूसरे देशों में ये दूसरी लहर के रूप में फैल रहा था तो हमने अपने देश में क्या उपाय किए?  हमनें वेक्सिन तो बना ली लेकिन उसका भंडारण नही किया हमनें दूसरे देशों को बांटकर अपने बड़े होने का अहसास कराया। पी पी ई किट का उत्पादन शुरू किया लेकिन जरूरत जितना उत्पादन भी हम कर पाए या नही ये आने वाले दिनों में सामने आ जाएगा।

हमनें वेंटीलेटर का उत्पादन भी शुरू किया लेकिन उनमें से 90%  काम ही नहीं कर रहे। हमनें  पहले दौर में रिमेडिवर दवा की कमी को पूरा किया लेकिन दूसरे दौर में भी ये दवाएं कम ही पड़ रही है।


तो फिर हमनें तैयारी क्या की?


हमने तैयारी की चुनावों की, हमनें तैयारी की कुंभ की, हमने तैयारी की राममंदिर के निर्माण की, जिस जिस की तैयारिया की वे सब चल रही है। चुनाव हो रहे है, कुंभ चल रहा है, राम मंदिर की नींव पड़ रही है। यानी जिन जिन चीजों की हमने तैयारियां की वे सफलता से हो रही है।


हमनें तैयारी नही की दूसरी लहर पर आने पर उसके लिए क्या करना है उसकी? आज स्थिति ये है कि जिस तेज रफ्तार से ये लौट आया कोरोना फैल रहा है  उसकी रोकथाम के लिए न हमनें अस्पतालों में बिस्तर बढ़ाए न वेंटीलेटर न टीकाकरण के लिए पर्याप्त टीको का स्टॉक ही रखा। हमारी तैयारियां ही नहीं थी कि अगर दूसरी लहर आई तो वो कितनी खतरनाक हो सकती है। हमनें न आक्सीजन उत्पादन के कोई प्रयास किए अगर किए होते तो आक्सीजन आयात नहीं करनी पड़ती। न हमने दवाइयों का स्टॉक ही रखा और न ही हमने विकट परिस्थितियों के लिए कोई तैयारी ही की। हमने तो सोचा अब गया कोरोना अब वह हमारे देश में तो आ नही सकता इसलिए हमने बेफिक्र होकर चुनाव कराएं, हमने बेफिक्र होकर अपने टिके दूसरे देशों को बांटे और तो और हमने बेफिक्र होकर कुंभ के स्नान भी कराएं जैसे है इस बीमारी से अजेय हो गए।


अब जब पिछले साल के आंकड़े भी बौने लगने लगे है तो हम कुंभ को भी प्रतिकात्मक करने की सलाह दे रहे है, हम दो गज दूरी की भी सलाह दे रहे है और तो और  पिछली बार की तरह ही फिर से लॉक डाउन भी कर रहे है। फिर एक बार देश में हड़बड़ी मच रही है, मजदूर पलायन कर रहे है। लोग अपने गांवों को लौट रहे है ये सोचकर कि न जाने कब पिछली बार की तरह लंबा लॉक डाउन हो जाएं।


हमने सबक कुछ सीखा ही नही


वास्तव में अगर हम विवेचन करें तो लगता है हमने न तो पिछले अनुभव से कुछ सीखा और न ही जब दूसरे देशों में दूसरी लहर चल रही थी तब अपने यहां कोई तैयारी रखी। फिर वही अस्पतालों में बिस्तर की कमी, वही आक्सीजन के अभाव में मरते कोरोना मरीज, वही अस्पतालों में वेंटीलेटर का अभाव फिर वही शमशानो और कब्रिस्तानों में अंतिम संस्कारों की लाइन, पहली लहर से भी ज्यादा मरते लोग। 


आखिर हमने पिछले एक साल में किया क्या? 


ईमानदारी से अगर हम विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि हमने पिछले एक साल में दावे किए वेक्सिन बनाने के लेकिन जरूरत के समय वो भी कम पड़ गई। हमने दावे किए वेंटीलेटर बनाने के लेकिन फिर भी वे अस्पतालों में नही पहुंचे और अगर पहुंचे भी तो उन्हे आपरेट करने वाले लगाए ही नहीं,  हमने दावे किए सभी व्यवस्थाएं कर लेने की लेकिन दूसरी लहर के शुरुआत में ही हमारे हाथ पांव फूलने लगे है।


सोचना देश को है कि हमने क्या खोया और क्या क्या खो सकते है? क्योंकि हमारी तैयारियां और दावों की तस्वीर हमारे सामने है ।

सोमवार, 12 अप्रैल 2021

प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया के नाम आम नागरिक की पाती

 


मेरे देश के प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मालिकों, आपको ये पाती ऐसे समय (आम नागरिक) लिख रहा हूं, जिस समय देश के मीडिया को लोकतंत्र की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाने की जरूरत है,आप द्वारा दिखाई जाने वाली खबरों से देश की जनता लोकतंत्र की दशा व दिशा तय करती है, ऐसे समय में चौथे स्थंभ की जवाबदेही ज़्यादा हो जाती है। 

सोशल मीडिया पर जिस तरह के प्रचार हो रहे है उससे जनता असमंजस में है , तरह तरह की अफवाहें आम नागरिक को भृमित कर रही है, आज आम नागरिक ये समझ नही पा रहा कि सोशल मीडिया व मीडिया द्वारा दिखाई जा रही  खबरें कितनी विश्वनीय है, कई चैनल किसी एक राजनैतिक दल के लिए काम करते दिखाई देते है तो कुछ किसी अन्य के पक्ष में। चैनलों पर जो चर्चाए हो रही है उनका कोई निष्कर्ष नही निकलता।

 क्या चैनल टाइम पास कर रहे है? लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की ये जिम्मेदारी है कि वो जनता को पूरी ईमानदारी से निष्पक्ष रहकर जनता को सच्चाई से अवगत कराएं। मीडिया को सरकार की उन कमियों को उजागर कर जनता को जागरूक करना चाहिए जिनमे सरकार कोई गलत कदम उठाती है, जबकि आम नागरिक इस समय ये महसूस कर रहा है कि कुछ चैनल तो केवल सरकारी भोपू बन रहे है। 

सरकार के अच्छे कदमो की जहां प्रंशशा होनी चाहिए वहीं गलत कदमों की खुल कर आलोचना भी करनी चाहिए, तभी लोकतंत्र की रक्षा संभव होगी, जिसमे चौथे स्तंभ की जिम्मेदारी महत्वपूर्ण है।

क्या हमारे देश का मीडिया विश्व स्तरीय विश्वसनीय नही होना चाहिए? आज इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया की देश मे बाढ़ आई हुई है कोई चैनल किसी के गुणगान कर रहा है तो कोई किसी के इससे आम आदमी भृमित हो रहा है उसे निणर्य करने में परेशानी हो रही है कि वो किस चैनल को विश्वसनीय समझें? ऐसा इसलिए हुआ है कि एक ही विषय पर कोई चैनल कुछ और परोस रहा है तो कोई कुछ जबकि सच्चाई तो शाश्वत होती है फिर ये विरोधाभास क्यों? 

इसका तात्पर्य ये है कि चैनल सच्चाई नहीं खोज कर सिर्फ अपने अपने सूत्रों के हवाले से खबरें परोस रहे है, जबकि अगर खोजी ख़बर हो तो उसमें सभी चैनल के पास सच्चाई की एक ही रिजल्ट आएगा। इससे साबित होता है कि हर चैनल अपने अपने आकाओं से फिड बैक लेकर अपनी अपनी राग अलाप रहे है। इससे मीडिया किसी एक पक्ष का होता दिखाई देता है।

लोग हमारे देश के सैकड़ों चैनलों को छोड़कर फिर से विश्वनीय खबरों व विश्लेषण के लिए बीबीसी जैसे चैनलों  की ओर वापस सुनने लगे है । क्या ये हमारे देश के चैनलों के लिए एक प्रश्नचिन्ह नही है कि सैकड़ो चैनलों को छोड़कर लोग विदेशी चैनलों की ख़बरो को सुनना पसंद कर रहा है? इस पर विचार करने की जरूरत है। 

आपसे आम नागरिक की अपील है कि आप विश्वस्तरीय विश्वसनीय मीडिया हाउस बने, हिंदुस्तान के चैनलों को पूरे विश्व मे बीबीसी की तरह विश्वसनीय माना जाए। लेकिन इसके लिए आपको निष्पक्ष रहना होगा। जनता को सच्चाई दिखानी होगी ताकि वो लोकतंत्र के लिए ऐसी सरकार चुन सके जो कल्याणकारी साबित हो और इसमें मीडिया की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। 

आपकी  अस्पष्टता जनता के मानस को बदल सकती है।क्या आपने इसे बिजनेस बना लिया है ? जबकि मीडिया तो वो कड़ी है जिससे जनता का मानस बनता बिगड़ता है ऐसे में आपकी जिम्मेदारी महत्वपूर्ण है, जो सरकारों को बना सकता है और सरकारों के गिरने का कारण बन सकता है।

आप अगर निष्पक्ष नही रहेंगे और खोजी पत्रकारिता नही करेंगे तो कुछ समय के लिए तो आपसे जनता भृमित हो सकती है लेकिन धीरे धीरे जनता अपना रास्ता दूसरा चुन लेती है, जिसमे बीबीसी जैसे चैनल वापस देखे जाने शुरू हो सकते है। और अगर ऐसा होता है तो ये भारतीय मीडिया के लिए शर्मनाक स्थिति से कम नही हो सकता। 

देश की आबादी करीब 130 करोड़ के आसपास है, उसमे से चैनलों को देखने वाले लोग कितने है आप जानते है, ये जागरूक व कुछ निर्णय लेने वाले होते है और उनका निर्णय, आपके द्वारा दिखाए गए विश्लेषणों के आधार पर होता है। अगर ये लोग या इनका एक बड़ा तबका, बीबीसी जैसे चैनलों में विश्वनीयता खोजने लगा तो ये न केवल भारतीय मीडिया के लिए शर्मनाक होगा बल्कि विश्व मे भारतीय मीडिया की छवि भी खराब होगी।

अतः आपसे आम नागरिक का निवेदन है कि आप जनता को निष्पक्षता से बिना किसी लाग लपेट के सही व विश्वसनीय विश्लेषण दिखाए जिससे न केवल भारतीय मीडिया की विश्वनीयता बढे बल्कि हमारे लोकतंत्र को भी मजबूती मिले। आप खुद जानते है कि आप जनता को मूल मुद्दों से भटका कर क्या परोस रहे है? 

आरक्षण पर लोगो का मानस क्या है आपसे छुपा नही है, संसद में महत्वपूर्ण कार्य होने के बजाय शोर शराबा होता है। जबकि जनहित के बिल रुक जस्ते है और सांसदों के लाभ के बिल पास हो जाते है, हमारा मीडिया चुप रहता है,इसी तरह पब्लिक संबंधित बहस नही होकर ऐसे मुद्दों पर समय जाया किया जाता है जिनका पब्लिक का कोई भला नही होना। जिसमें श्री देवी की मौत, सलमान खान की गिरफ्तारी व जमानत की ख़बरे दिन भर चलती है। जबकि बैंक घोटाले, घोटालेबाजो का देश छोड़कर भागना,एफडीआई, जीएसटी , पेट्रोल डीजल के दाम आदि  कईं मुद्दे जनता व सरकार के बीच चर्चा के होने चाहिए, यही नहीं  इन पर पूरी खोजपूर्ण खबरें जनता के समक्ष सच्चाई से आनी चाहिए थी। जिसमे सरकार का ध्यान उन कमियों की ओर दिलाना चाहिए जिनसे ऐसे घोटाले नही हो सके।

आपसे आम नागरिक ये अपेक्षा रखता है कि आप लोकतंत्र को मजबूत रखने के लिए जनता को सही व निष्पक्ष रास्ता दिखाएंगे अगर आपकी भूमिका निस्जपक्ष नही रही तो लोकतंत्र को जो नुकसान होगा उसके लिए मीडिया  को कभी माफ नही किया जा सकेगा।

मंगलवार, 6 अप्रैल 2021

37 साल पहले चुनाव आयोग ने किया था EVM का प्रयोग, कराना पड़ गया था बैलेट पेपर से मतदान


    
चुनाव के शोर में उस पहले चुनाव के बारे में भी जान लीजिए जो 1982 में पहली बार ईवीएम से हुआ था. उस चुनाव के दिलचस्प विवाद और नतीजे की कहानी मज़ेदार है.

हमारे देश में हर चुनाव के बाद ईवीएम की अग्निपरीक्षा शुरू हो जाती है. जीतनेवाला चुप रहता है लेकिन हारनेवाला खूब शोर मचाता है.. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हिंदुस्तान में पहली बार ईवीएम का इस्तेमाल कब हुआ और उस चुनाव का नतीजा क्या रहा?

वो साल 1982 था और प्रयोग का मैदान था केरल की परावुर विधानसभा का उपचुनाव. छोटी और शांत विधानसभा प्रयोग के लिहाज से चुनाव आयोग को ठीक लगी होगी. यहां 123 में से 50 मतदान केंद्रों पर ईवीएम का इस्तेमाल करके देखा गया.  मुकाबले में थे कांग्रेस के ए सी जोस और सीपीआई के के सिवन पिल्लई
मतदान से पहले ही सीपीआई वाले के सिवन पिल्लई ने केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी और ईवीएम की उपयोगिता और इस्तेमाल पर सवाल खड़े कर दिए. चुनाव आयोग अदालत में पेश हुआ. मशीन का इस्तेमाल करके दिखाया. कोर्ट ने संतुष्ट होकर मामले में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया.

कमाल देखिए. ईवीएम पर भरोसा ना करनेवाले सीपीआई के पिल्लई साहब ने चुनाव में 2 हजार से अधिक वोटों से जीत दर्ज कर ली.
EVM पर भरोसा ना करनेवाले सीपीआई के उम्मीदवार सिवन पिल्लई को EVM से हुए मतदान में जीत मिली थी

अब बारी कांग्रेस के ए सी जोस की थी. वो भी हाईकोर्ट जा पहुंचे. उन्होंने दलील रखी कि आरपी एक्ट 1951 और कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स 1961 ईवीएम के इस्तेमाल की अनुमति नहीं देते हैं. हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग के पक्ष में ही फैसला दोहराया मगर हार से दुखी जोस साहब सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर पहुंचे. इस बार सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि उन 50 पोलिंग बूथ पर फिर से वोटिंग कराई जाए जहां ईवीएम का इस्तेमाल हुआ था, और वोट मशीन से नहीं बैलेट पेपर से डाले जाएं. सुप्रीम कोर्ट ने मशीन में गड़बड़ी जैसी कोई बात नहीं कही थी लेकिन ईवीएम का इस्तेमाल कानूनी होने तक रुकने पर सहमति बनी.

कांग्रेस प्रत्याशी जोस कब तक ईवीएम के समर्थक थे जब तक हार का मुंह नहीं देखा खैर फिर से मतदान हुआ. इस बार नतीजा उलट गया. 2 हज़ार से ज्यादा वोटों के अंतर से हारे जोस साहब ने 2 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव जीत लिया.

देशभर के मीडिया में जमकर सुर्खियां बनीं. वो तब की बड़ी घटना थी. मशीन का पहली बार इस्तेमाल हुआ था लेकिन लौटकर बैलेट पेपर पर ही आने से ये खबर और बड़ी हो गई. कांग्रेस के प्रत्याशी ए जी जोस वैसे भी केरल विधानसभा के स्पीकर रह चुके थे. उनका कद बहुत बड़ा था. ज़ाहिर है उनकी हार से बड़ा झटका भी महसूस किया गया होगा.

इस चुनाव के डेढ़ दशक बाद तक ईवीएम का प्रयोग नहीं किया गया. 1998 वो साल था जब दिल्ली, मध्यप्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनाव के दौरान 16 सीटों पर एक बार फिर प्रयोग हुआ. प्रयोग चल निकला. आखिरकार 2004 में पूरे देश ने लोकसभा चुनाव में ईवीएम का इस्तेमाल किया.

नितिन ठाकुर की वॉल से साभार