गुरुवार, 24 सितंबर 2020

किसान बिल से किसानों का कितना हित


केंद्र सरकार द्वारा किसानों के लिए तीन बिल पास किए है। सरकार कहती है इससे किसान खुशहाल होंगे जबकि विपक्ष और किसान संगठनों का कहना है कि इससे बड़ी बड़ी कम्पनियां किसानों का शोषण करने लगेगी जबकि सरकार का दावा है कि विपक्ष और किसान संगठन किसानों को भ्रमित कर रहे है।


सरकार का दावा है कि इन तीन बिलों से किसान अपनी फसल देश में कहीं भी बेचने को स्वतंत्र होंगे जबकि विपक्ष का कहना है कि वर्तमान में भी किसान अपनी फसल कहीं भी बेच सकते है लेकिन समस्या है कि वर्तमान का किसान अपनी फसल नजदीक की मण्डी तक  ले जाकर बेच नहीं पाता उसे सपने दिखाए जा रहे है कि को देश में कहीं भी जाकर, जहां उसे अच्छे दाम मिले, बेच सकता है। 


 विपक्ष का प्रश्न है कि किसान को पता कैसे चलेगा कि  उसकी फसल के दाम कहां अच्छे मिलेंगे और अगर उसे पता चल भी जाएं तो वो वहां तक अपनी फसल कैसे लेकर जाएगा इस पर सरकार का कहना है कि किसान आन लाइन ये सभी जानकारी ले सकेगा। किसान संगठनों तथा विपक्ष का इस पर कहना है कि किसान को अगर आन लाइन खरीद बेचान करना आता तो क्या वो बिजनेस नहीं कर लेता ? सरकार का ये तर्क विपक्ष और किसान संगठन को हास्यास्पद लगता है । उनका कहना है कि नेटवर्क की देश में क्या स्थिति है ये किसी से छुपा नहीं है अभी शहरों के घरों में कमरों से नेट के लिए बाहर खुले में आना पड़ता है तो जो किसान सड़कों से दूर जंगल में बैठा है उसे आन लाईन फसल बेचने की सलाह अक्ल के दीवालिएपन जैसा है। सरकार बड़े विकसित देशों की तरह के सपने दिखा रही है जबकि उनके जैसा इंफ्रास्ट्रक्चर तो पहले विकसित करें फिर ऐसी बाते करे तो कुछ अच्छी भी दिखे।


न्यूनतम समर्थन मूल्य को अनिवार्य क्यों नहीं कर रही सरकार?


विपक्ष तथा किसान संगठनों का कहना है कि सरकार इन बिलों को ऐतिहासिक बता रही है तो फिर इनमें न्यूनतम समर्थन मूल्य अनिवार्य क्यों नहीं किया गया। अगर सरकार इन बिलों में ये प्रावधान कर दे कि कोई भी आढ़तिए, कम्पनी आदि किसान से न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम भाव में उसकी फसल नहीं खरीद सकेगा। किसान को हर वस्तु का जो समर्थन मूल्य सरकार निर्धारित करे वो तो देना ही होगा। लेकिन सरकार ऐसा नहीं कर रही। फिर ये ऐतिहासिक कैसे कहा जा सकता है ?   किसान को उसकी फसल का न्यूनतम मूल्य तक देने में जिस सरकार को सोचना पड़े वो कितनी किसान का भला करने वाली हो सकती है कहने कि जरूरत नहीं। और फिर जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो 2011में वे केंद्र पर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की सिफारिश करते थे आज जब वे खुद प्रधानमन्त्री है तथा किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य दे सकते है तब इधर उधर के फायदे तो गिना रहे है लेकिन किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का प्रावधान नहीं कर रहे। इससे विपक्ष और किसान संगठनों को प्रधान मंत्री को घेरने का ये अच्छा मुद्दा मिल गया है। 


उनका कहना है कि मोदी किसानों को नहीं अंबानी और अडानी को फायदा पहुंचाने को आमदा है क्योंकि अगर हर वस्तु का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित कर दिया जाए तो अंबानी अडानी और अन्य कम्पनियां उस न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम में फसल खरीद नहीं सकेगी जो इन कम्पनियों के लाभ को कम कर देगी और मोदी ऐसा कर नहीं सकते इसीलिए वे किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने का कोई प्रावधान इन बिलों में नहीं करना चाहते।


कांट्रेक्ट फार्मिंग


सरकार का कहना है कि एक बिल में कांट्रेक्ट फार्मिंग की व्यवस्था से किसान की फसल उनके खेत से ही कम्पनियां उठा लेगी जिससे किसान आढ़तियों जैसे बिचौलियों से मुक्त हो जाएगा। कम्पनियां किसान से उसकी फसल की  दर तय कर कांट्रेक्ट कर लेगी जिससे किसान निश्चित हो सकेगा कि उसे फसल का कांट्रेक्ट के अनुसार मूल्य तो मिलेगा ही। 


दूसरी तरफ विपक्ष और किसान संगठन कुछ और ही कह रहे है उनका कहना है कि इससे तो किसान बड़ी बड़ी कम्पनियों के चंगुल में फंस जाएगा। कम्पनियां एक बार तो किसान से बाजार मूल्य से ज्यादा का कांट्रेक्ट कर लेगी और फिर उनके दाम बढ़ा देगी जिससे किसान को तो उसी कांट्रेक्ट मूल्य पर अपनी फसल कम्पनियों को देनी होगी जबकि बढ़े दामो का लाभ कम्पनियां उठा लेगी इससे किसान इन साहूकार कम्पनियों के चंगुल में फंस जाएगा।


यही नहीं विपक्ष का तो यहां तक कहना है कि सरकार   आवश्यक कमोडिटी एक्ट  में अधिकतम भंडारण की सीमा को समाप्त कर कालाबाजारी के रास्ते खोल रही है एक तरफ किसानों से फसल का कांट्रेक्ट कर उन्हें बाज़ार जाने से रोक दिया जाएगा दूसरी तरफ इन कम्पनियों के लिए चाहे जितनी मात्रा में भंडारण की छूट देकर सरकार उन्हें कालाबाजारी करने की खुली छूट दे रही है क्योंकि कोई सीमा नहीं होने से बड़े बड़े व्यापारी या कम्पनियां माल को रोक लेगी और फिर ऊंचे दामों पर बेचेगी जिससे किसान ही नहीं अाम आदमी भी महगांई से त्रस्त हो जाएगा। बाज़ार पर बड़ी बड़ी अंबानी अडानी जैसी कम्पनियों का बोलबाला हो जाएगा और वे मनमर्जी दाम वसूलेंगे। 


किसान संगठनों तथा विपक्ष का तो यहां तक कहना है कि ये सब बिल किसानों के हित के लिए नहीं बल्कि पूरी तरह योजनाबद्ध तरीके से बड़ी बड़ी कम्पनियों को फायदा दिलाने के लिए लाए गए है ताकि उन्हें परेशानी नहीं हो। वरना एक बिल में न्यूनतम समर्थन मूल्य का तो प्रावधान नहीं किया जाता जबकि व्यापारियों के लिए अधिकतम भंडारण की सीमा भी हटा दी गई है। उनका कहना है कि सामान्य सा अक्ल रखने वाला भी ये जान सकता है कि ये इस क्षेत्र में आने वाली बड़ी बड़ी कम्पनियों को कोई परेशानी न हो इसलिए उनकी हर बाधा को इन तीन बिलों से दूर किया गया है।