शनिवार, 8 मई 2021

हमें अपने स्वास्थ्य सिस्टम को अपडेट करना होगा

 

प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में आक्सीजन  कांस्ट्रेटर तो सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों  पर आक्सीजन प्लांट हो


गांवों में बढ़ रहे कोरोना मरीज


हमारे देश का स्वास्थ्य सिस्टम 1957 के विकसित सिस्टम पर चल रहा है। 64 साल पहले विकसित सिस्टम वर्तमान कोरोना महामारी के आगे फेल हो गया है। विशेषकर कोरोना की दूसरी लहर ने हमें ये संदेश दे दिया है कि अब हमें इस पुराने सिस्टम को अपडेट करना होगा वरना तीसरी कोरोना लहर इससे भी ज्यादा घातक सिद्ध हो सकती है। अगर हम अभी भी नहीं चेते तो भावी संकट इससे भी बड़ा होते हमें अपनी आंखों से देखना पड़ सकता है। जो राज्य सरकारें इससे सबक लेकर अपने राज्यों के हेल्थ सिस्टम को अपडेट कर लेगी वे राज्य अपनी जनता को कम से कम नुकसान  से बाहर निकाल सकेंगे।


क्या अपडेट करें कि जनहानि कम से कम हो

अब प्रश्न आता है कि हम क्या अपडेट करें कि हम भावी जन हानि से लोगों को बचा सकें। आइए विचार करते है।


प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र मजबूत हों


हमारे गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और उप स्वास्थ्य केंद्र खुले है लेकिन उनमें या तो डाक्टर नही है या फिर वे ए एन एम के भरोसे चल रहे है। वर्तमान कोरोना संकट में इन स्वास्थ्य केन्द्रों को मजबूत किए जाने की जरूरत है ताकि वहां प्रारंभिक कोरोना मरीजों का इलाज हो सकें। वहां स्वीकृत पदों के अनुसार चिकित्सक, पैरा मेडिकल स्टॉफ हो उसके बाद प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर कोरोना के कम गंभीर मरीजों के इलाज की व्यवस्था हो, वहां कोरोना जांच की मशीन तकनीकी कर्मचारी के साथ हो।


 इसके अलावा जो आक्सीजन कांस्ट्रेटर जिला अस्पतालों में दिए जा रहे है वे प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर उपलब्ध हो। ये आक्सीजन कांस्ट्रेटर 5 लीटर आक्सीजन प्रति मिनिट मरीज को दे सकते है। गांवों में जिन कोरोना मरीजों को 5 लीटर आक्सीजन प्रति मिनिट की जरूरत हो उन्हें वहीं आक्सीजन मिल जाएं तो सामुदायिक केंद्रों तथा जिला अस्पतालों में ऐसे मरीजों का आना कम हो जाएगा जिससे बड़े अस्पतालों पर भार कम होगा और वे गंभीर कोरोना मरीजों का इलाज कर सकेंगे।


वर्तमान में हो ये रहा है कि जो भी आक्सीजन कांस्ट्रेटर आ रहे है वे सभी बड़ी अस्पतालों में आ रहे है इसलिए वहां भीड़ लगी है कम गंभीर मरीज भी वहीं पहुंच रहे है तो गंभीर मरीज भी।वहां के डाक्टरों को तो दोनो तरह के मरीजों को देखना पड़ रहा है जिससे क्रिटिकल मरीजों की जान समय पर इलाज नहीं मिलने से जा रही है। मेरा मानना है कि हर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर कम से कम 5 आक्सीजन कांस्ट्रेटर तो उपलब्ध तो हो और इनकी व्यवस्था एक बार क्षेत्रीय विधायक के विधायक कोटे की राशि से की जाएं। इस तरह कम गंभीर कोरोना मरीजों का इलाज अपने गांव के पास स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर मिल सकेगा और बड़े अस्पतालों में गंभीर मरीज ही पहुंचेंगे जिससे डाक्टरों को उनका इलाज करने का समय मिल सकेगा।


सामुदायिक स्वास्थ केंद्रों पर हो आक्सीजन प्लांट


इसी  तरह हर सामुदायिक केंद्र पर एक आक्सीजन प्लांट  लगाया जाएं ताकि आक्सीजन कांस्ट्रेटर से ज्यादा आक्सीजन जरूरत वाले कोरोना मरीजों का इलाज सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर हो सकें। हर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर कम से कम 10 बेड  वेंटीलेटर  वाले हो साथ ही 10 आक्सीजन कांस्ट्रेटर भी हो ताकि लिक्विड आक्सीजन वाले मरीजों के स्वास्थ्य में सुधार होने पर उन्हें आक्सीजन कांस्ट्रेटर पर लिया जा सकें।


इन सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर आक्सीजन प्लांट, वेंटीलेटर तथा आक्सीजन कांस्ट्रेटर  तथा आक्सीजन सिलेंडरों की व्यवस्था भी विधायक कोटे, नगर पालिका ,नगर परिषद या ग्राम पंचायतों के ग्रामीण विकास के बजट से की जाएं इसके अलावा स्थानीय भामाशाहों के सहयोग से भी इसके लिए आर्थिक सहयोग लिया जा सकता है। इससे ऐसे कोरोना मरीज जिन्हे ज्यादा आक्सीजन तथा वेंटीलेटर की जरूरत है वे अपने नजदीक के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर अपना इलाज करा सकें। इससे केवल क्रिटिकल मरीज ही जिला अस्तपतालों में पहुंच पाएंगे। और जिला अस्पतालों पर बहुत ही कम भार हो जाएगा और वे अच्छे तरीके से क्रिटिकल मरीजों की देखभाल कर सकेंगे।


 इसके अलावा ज्यादातर सामुदायिक केंद्रों में भी डाक्टरों तथा पैरा मेडिकल स्टाफ, वेंटीलेटर आपरेट करने वाले तकनीकी कर्मचारी, फार्मासिस्ट , रेडियो ग्राफर आदि की कमी है। हर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर एक्सरे मशीन, रेडियोलॉजिस्ट,सोनोग्राफी मशीन, लेबोरेट्री, लेब असिस्टेंट, स्त्री रोग विशेषज्ञ, बाल रोग विशेषज्ञ, सर्जन, मेडिसिन, दंत चिकित्सक, एंबुलेस तथा इनसे संबंधित हर उपकरण व जांच की सुविधा उपलब्ध हो।


जिला अस्पतालों में क्रिटिकल मरीजों की देखभाल हो


जिले के बड़े अस्पताल में केवल क्रिटिकल मरीज ही पहुंचे शहरी क्षेत्र के प्राथमिक तथा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर उनकी आवश्यकता के अनुसार वहीं व्यवस्थाएं हो जो ग्रामीण क्षेत्र के प्राथमिक, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर जो सुविधाएं हो वे हो लेकिन इनमें आक्सीजन वाले बिस्तरों की संख्या वहां की आबादी घनत्व को देखते हुए कम ज्यादा रखी जा सकती है।


बड़े अस्पताल में आई सी यू, क्रिटिकल केयर की जरूरत वाले मरीजों के साथ साथ कम गंभीर मरीजों के इलाज की व्यवस्था भी हो ताकि क्रिटिकल केयर से निकले मरीजों को उनकी जरूरत के हिसाब से शिफ्ट किया जा सकें। जिला अस्पतालों में अक्सीजन प्लांट की क्षमता जरूरत को ध्यान में रखते हुए रखी जाएं ताकि आक्सिजन की कमी नही रहें। इनके लिए फंड की व्यवस्था स्थानीय विधायक सांसद, नगर निगम, नगर विकास न्यास, जिला परिषद, सी एस आर कंपनियों तथा बैंकों, भामाशाहों आदि से की जा सकती है।


कोरोना महामारी की रफ्तार को देखते हुए मनरेगा के कामों में अस्थाई रूप से अस्पतालों में उपकरण खरीदने,  अस्पताल भवन बनाने आदि की मंजूरी भी बिना देरी के दे देनी चाहिए ताकि स्वास्थ्य सेवाएं अपडेट होकर इस महामारी से मुकाबला करने को तैयार हो जाएं।


डाक्टरों तथा पैरा मेडिकल स्टॉफ की नियुक्ति राज्य सरकार करें। मुसीबत काल में सेवा निवृत डाक्टरों तथा पैरा मेडिकल स्टॉफ की सेवाएं भी ली जा सकती है। सरकार योग्य चिकित्सको तथा पैरा मेडिकल स्टॉफ का चयन कर उनका पैनल भी तैयार कर सकती है जिन्हे जरूरत पड़ने पर बुलाया जा सकता है।


आवश्यकता इस वैश्विक महामारी से दिमाग से तथा व्यवस्थित रूप से लड़ने की है। इससे ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को भी सीधे शहरों में दौड़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी। हमें ये भी ध्यान रखना होगा कि अगर अच्छा इलाज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर मिलेगा तो मरीज अपने आप ही अपने नजदीक के स्वास्थ्य केंद्र पर पहुंचेंगे। लेकिन होता क्या है कि हमारी आधी अधूरी व्यवस्थाएं लोगों में विश्वास नहीं जमा पाती। वर्तमान स्थिति क्या है कि जहां एक्सरे मशीन है वहां रेडियोलॉजिस्ट का पद ही नहीं है। न वहां मशीन खराब होने पर उसे ठीक करने वाला तकनीशियन। लेबोरेट्री तो है लेकिन लेब टेक्नीशियन का पद खाली पड़ा है या जांच की सामग्री की कमी है। इन्ही कमियों की वजह से ग्रामीण सीधे जिला मुख्यालय या बड़े अस्पताल जाना पसंद करते है हमारी सरकारों को ऐसी कमियों को दूर करना होगा तभी जनता का विश्वास  ग्रामीण स्वास्थ्य केन्द्रों पर जमेगा।

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