बुधवार, 5 मई 2021

हर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर आक्सीजन प्लांट क्यों नहीं

कोरोना की तीसरी लहर की क्या तैयारियां कर रहे हम

जब हमें ये पता है कि कोरोना की तीसरी लहर भी आएगी तो हमारी सरकारें हर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर  इससे मुकाबला करने के लिए चिकित्सकों, पैरा मेडिकल स्टॉफ,आक्सीजन प्लांट, कम से कम 10 वेंटीलेटर बेड, उन्हें संचालित करने वाले स्टॉफ की व्यवस्था क्यों नहीं कर रही।


अगर हमें अपनी पब्लिक की जान बचानी है तो ये व्यवस्थाएं करनी ही होगी अन्यथा हालात दूसरी लहर से भी ज्यादा खराब हो सकते है।


आक्सीजन का एक प्लांट ,  वेंटीलेटर तथा उसके बेड आदि का पैसा उस क्षेत्र के विधायक को अपनी विधायक कोष की राशि से अपने क्षेत्र के हर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए देना चाहिए ताकि उनके क्षेत्र के हर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में आक्सीजन की कमी, वेंटीलेटर तथा बेड की कमी न रहे। 


 एक विधायक  को एक वर्ष में  काफी राशि विधायक कोष में मिलती है और उसके क्षेत्र में इतने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भी नही होते की इन सब पर वो राशि खर्च हो जाए। और अगर हो भी जाए तो ये जरूरी भी है और अभी अति जरूरत वाली भी।


इसी तरह राज्य सरकारों को इन सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर पर्याप्त चिकित्सकों, पैरा मेडिकल स्टॉफ को तथा वेंटीलेटर तथा आक्सीजन प्लांट को संचालित करने वाले तकनीकी स्टॉफ को लगाने की व्यवस्था करनी चाहिए। राज्य सरकार अगर स्थाई स्टॉफ नहीं रख सकती तो कम से कम संविदा वाले ऐसे कर्मियों का पैनल तैयार कर तो रख ही सकती है ताकि एमरजेंसी में इनकी सेवाएं ली जा सकें।


अगर हमने अब भी तैयारियां  नहीं रखी तो फिर लोगो की जान खतरे में पड़ सकती है। अभी समय इस महामारी पर ध्यान केंद्रित करने का है चुनावों या अन्य धार्मिक आयोजनों का नहीं। केंद्र और राज्य सरकारों को भावी खतरे को देखते हुए अब तो कम से कम तैयारियां कर ही लेनी चाहिए। विडम्बना ये है कि हमारी सरकारें एक व्यवस्था करती है तो उससे संबंधित अन्य व्यवस्थाएं नहीं करती जिससे उस व्यवस्था का पूरा लाभ जनता को नहीं मिल पाता।


अभी हाल ही में कई अस्पतालों में वेंटीलेटर खुले ही नही क्योंकि इनके संचालन वाले या इंस्टाल करने वाले लगाए ही नहीं गए जिससे वेंटीलेटर होते हुए भी मरीजों को इनका लाभ नही मिल पाया। इसी  तरह निशुल्क दवा वितरण की व्यवस्था तो कर दी गई, दवाइयां भी पहुंचा दी गई लेकिन इन्हे वितरित करने वाले  फार्मासिस्ट लगाए ही नही गए जिससे अप्रशिक्षित नर्सिंग स्टॉफ से इनका वितरण कराया जा रहा है। अब जिस नर्सिंग स्टाफ को मरीजों को ड्रिप, इंजेक्शन पट्टी आदि के काम करने चाहिए वे अपना मूल कार्य छोड़कर गांवों  की अस्पतालों में निशुल्क दवा वितरित कर रहे है।  अब कोई तो काम सफर हो ही रहा है। 


यही नहीं जिन अस्पतालों में एक्स रे मशीन, सोनोग्राफी मशीन या अन्य जांच मशीनें है,  उनके खराब होने पर उन्हें ठीक करने वाले तकनीकी मेकेनिक ही नहीं है जिससे एक बार खराब होने पर वे मशीनें कई कई  दिनों तक ठीक नही हो पाती । इनको ठीक करने कंपनी के मेकेनिक जब आते है तब तक मरीज परेशान होते  रहते है। अगर जिला स्तर पर इन मशीनों को ठीक करने वाले तकनीकी मेकेनिको के पद स्वीकृत कर दिए जाए तो वे पूरे जिले में कहीं भी ऐसी  मशीन खराब होने पर बिना कंपनी के मेकेनिकों का इंतजार किए जल्दी दुरस्त कर सकते  है।


जरूरत इस बात की है कि किसी भी सुविधा के शुरू करने से पहले उसके सभी पहलुओं की भी व्यवस्थाएं की जाएं ताकि वे चुस्त दुरस्त रहे और हर समय अपनी पूरी क्षमता से कार्य करती रहें।

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