शनिवार, 17 अप्रैल 2021

लौट आया कोरोना

 

लौट आया कोरोना

जी हां, कोरोना फिर से लौट आया है। पिछले साल मार्च में ही इसने अपना पहला कदम रखा था  अब ये एक साल का होकर दौड़ने लगा है। जी हां इसकी रफ्तार पिछले साल से दुगुनी है और कहीं कहीं तो ये तिगुनी चौगुनी रफ्त्रार से भागने लगा है।


क्या उपाय किए हमनें ?


 जब ये लौट ही आया है तो हमें आंकलन तो करना ही पड़ेगा कि जब विश्व के दूसरे देशों में ये दूसरी लहर के रूप में फैल रहा था तो हमने अपने देश में क्या उपाय किए?  हमनें वेक्सिन तो बना ली लेकिन उसका भंडारण नही किया हमनें दूसरे देशों को बांटकर अपने बड़े होने का अहसास कराया। पी पी ई किट का उत्पादन शुरू किया लेकिन जरूरत जितना उत्पादन भी हम कर पाए या नही ये आने वाले दिनों में सामने आ जाएगा।

हमनें वेंटीलेटर का उत्पादन भी शुरू किया लेकिन उनमें से 90%  काम ही नहीं कर रहे। हमनें  पहले दौर में रिमेडिवर दवा की कमी को पूरा किया लेकिन दूसरे दौर में भी ये दवाएं कम ही पड़ रही है।


तो फिर हमनें तैयारी क्या की?


हमने तैयारी की चुनावों की, हमनें तैयारी की कुंभ की, हमने तैयारी की राममंदिर के निर्माण की, जिस जिस की तैयारिया की वे सब चल रही है। चुनाव हो रहे है, कुंभ चल रहा है, राम मंदिर की नींव पड़ रही है। यानी जिन जिन चीजों की हमने तैयारियां की वे सफलता से हो रही है।


हमनें तैयारी नही की दूसरी लहर पर आने पर उसके लिए क्या करना है उसकी? आज स्थिति ये है कि जिस तेज रफ्तार से ये लौट आया कोरोना फैल रहा है  उसकी रोकथाम के लिए न हमनें अस्पतालों में बिस्तर बढ़ाए न वेंटीलेटर न टीकाकरण के लिए पर्याप्त टीको का स्टॉक ही रखा। हमारी तैयारियां ही नहीं थी कि अगर दूसरी लहर आई तो वो कितनी खतरनाक हो सकती है। हमनें न आक्सीजन उत्पादन के कोई प्रयास किए अगर किए होते तो आक्सीजन आयात नहीं करनी पड़ती। न हमने दवाइयों का स्टॉक ही रखा और न ही हमने विकट परिस्थितियों के लिए कोई तैयारी ही की। हमने तो सोचा अब गया कोरोना अब वह हमारे देश में तो आ नही सकता इसलिए हमने बेफिक्र होकर चुनाव कराएं, हमने बेफिक्र होकर अपने टिके दूसरे देशों को बांटे और तो और हमने बेफिक्र होकर कुंभ के स्नान भी कराएं जैसे है इस बीमारी से अजेय हो गए।


अब जब पिछले साल के आंकड़े भी बौने लगने लगे है तो हम कुंभ को भी प्रतिकात्मक करने की सलाह दे रहे है, हम दो गज दूरी की भी सलाह दे रहे है और तो और  पिछली बार की तरह ही फिर से लॉक डाउन भी कर रहे है। फिर एक बार देश में हड़बड़ी मच रही है, मजदूर पलायन कर रहे है। लोग अपने गांवों को लौट रहे है ये सोचकर कि न जाने कब पिछली बार की तरह लंबा लॉक डाउन हो जाएं।


हमने सबक कुछ सीखा ही नही


वास्तव में अगर हम विवेचन करें तो लगता है हमने न तो पिछले अनुभव से कुछ सीखा और न ही जब दूसरे देशों में दूसरी लहर चल रही थी तब अपने यहां कोई तैयारी रखी। फिर वही अस्पतालों में बिस्तर की कमी, वही आक्सीजन के अभाव में मरते कोरोना मरीज, वही अस्पतालों में वेंटीलेटर का अभाव फिर वही शमशानो और कब्रिस्तानों में अंतिम संस्कारों की लाइन, पहली लहर से भी ज्यादा मरते लोग। 


आखिर हमने पिछले एक साल में किया क्या? 


ईमानदारी से अगर हम विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि हमने पिछले एक साल में दावे किए वेक्सिन बनाने के लेकिन जरूरत के समय वो भी कम पड़ गई। हमने दावे किए वेंटीलेटर बनाने के लेकिन फिर भी वे अस्पतालों में नही पहुंचे और अगर पहुंचे भी तो उन्हे आपरेट करने वाले लगाए ही नहीं,  हमने दावे किए सभी व्यवस्थाएं कर लेने की लेकिन दूसरी लहर के शुरुआत में ही हमारे हाथ पांव फूलने लगे है।


सोचना देश को है कि हमने क्या खोया और क्या क्या खो सकते है? क्योंकि हमारी तैयारियां और दावों की तस्वीर हमारे सामने है ।

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