सोमवार, 12 अप्रैल 2021

प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया के नाम आम नागरिक की पाती

 


मेरे देश के प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मालिकों, आपको ये पाती ऐसे समय (आम नागरिक) लिख रहा हूं, जिस समय देश के मीडिया को लोकतंत्र की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाने की जरूरत है,आप द्वारा दिखाई जाने वाली खबरों से देश की जनता लोकतंत्र की दशा व दिशा तय करती है, ऐसे समय में चौथे स्थंभ की जवाबदेही ज़्यादा हो जाती है। 

सोशल मीडिया पर जिस तरह के प्रचार हो रहे है उससे जनता असमंजस में है , तरह तरह की अफवाहें आम नागरिक को भृमित कर रही है, आज आम नागरिक ये समझ नही पा रहा कि सोशल मीडिया व मीडिया द्वारा दिखाई जा रही  खबरें कितनी विश्वनीय है, कई चैनल किसी एक राजनैतिक दल के लिए काम करते दिखाई देते है तो कुछ किसी अन्य के पक्ष में। चैनलों पर जो चर्चाए हो रही है उनका कोई निष्कर्ष नही निकलता।

 क्या चैनल टाइम पास कर रहे है? लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की ये जिम्मेदारी है कि वो जनता को पूरी ईमानदारी से निष्पक्ष रहकर जनता को सच्चाई से अवगत कराएं। मीडिया को सरकार की उन कमियों को उजागर कर जनता को जागरूक करना चाहिए जिनमे सरकार कोई गलत कदम उठाती है, जबकि आम नागरिक इस समय ये महसूस कर रहा है कि कुछ चैनल तो केवल सरकारी भोपू बन रहे है। 

सरकार के अच्छे कदमो की जहां प्रंशशा होनी चाहिए वहीं गलत कदमों की खुल कर आलोचना भी करनी चाहिए, तभी लोकतंत्र की रक्षा संभव होगी, जिसमे चौथे स्तंभ की जिम्मेदारी महत्वपूर्ण है।

क्या हमारे देश का मीडिया विश्व स्तरीय विश्वसनीय नही होना चाहिए? आज इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया की देश मे बाढ़ आई हुई है कोई चैनल किसी के गुणगान कर रहा है तो कोई किसी के इससे आम आदमी भृमित हो रहा है उसे निणर्य करने में परेशानी हो रही है कि वो किस चैनल को विश्वसनीय समझें? ऐसा इसलिए हुआ है कि एक ही विषय पर कोई चैनल कुछ और परोस रहा है तो कोई कुछ जबकि सच्चाई तो शाश्वत होती है फिर ये विरोधाभास क्यों? 

इसका तात्पर्य ये है कि चैनल सच्चाई नहीं खोज कर सिर्फ अपने अपने सूत्रों के हवाले से खबरें परोस रहे है, जबकि अगर खोजी ख़बर हो तो उसमें सभी चैनल के पास सच्चाई की एक ही रिजल्ट आएगा। इससे साबित होता है कि हर चैनल अपने अपने आकाओं से फिड बैक लेकर अपनी अपनी राग अलाप रहे है। इससे मीडिया किसी एक पक्ष का होता दिखाई देता है।

लोग हमारे देश के सैकड़ों चैनलों को छोड़कर फिर से विश्वनीय खबरों व विश्लेषण के लिए बीबीसी जैसे चैनलों  की ओर वापस सुनने लगे है । क्या ये हमारे देश के चैनलों के लिए एक प्रश्नचिन्ह नही है कि सैकड़ो चैनलों को छोड़कर लोग विदेशी चैनलों की ख़बरो को सुनना पसंद कर रहा है? इस पर विचार करने की जरूरत है। 

आपसे आम नागरिक की अपील है कि आप विश्वस्तरीय विश्वसनीय मीडिया हाउस बने, हिंदुस्तान के चैनलों को पूरे विश्व मे बीबीसी की तरह विश्वसनीय माना जाए। लेकिन इसके लिए आपको निष्पक्ष रहना होगा। जनता को सच्चाई दिखानी होगी ताकि वो लोकतंत्र के लिए ऐसी सरकार चुन सके जो कल्याणकारी साबित हो और इसमें मीडिया की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। 

आपकी  अस्पष्टता जनता के मानस को बदल सकती है।क्या आपने इसे बिजनेस बना लिया है ? जबकि मीडिया तो वो कड़ी है जिससे जनता का मानस बनता बिगड़ता है ऐसे में आपकी जिम्मेदारी महत्वपूर्ण है, जो सरकारों को बना सकता है और सरकारों के गिरने का कारण बन सकता है।

आप अगर निष्पक्ष नही रहेंगे और खोजी पत्रकारिता नही करेंगे तो कुछ समय के लिए तो आपसे जनता भृमित हो सकती है लेकिन धीरे धीरे जनता अपना रास्ता दूसरा चुन लेती है, जिसमे बीबीसी जैसे चैनल वापस देखे जाने शुरू हो सकते है। और अगर ऐसा होता है तो ये भारतीय मीडिया के लिए शर्मनाक स्थिति से कम नही हो सकता। 

देश की आबादी करीब 130 करोड़ के आसपास है, उसमे से चैनलों को देखने वाले लोग कितने है आप जानते है, ये जागरूक व कुछ निर्णय लेने वाले होते है और उनका निर्णय, आपके द्वारा दिखाए गए विश्लेषणों के आधार पर होता है। अगर ये लोग या इनका एक बड़ा तबका, बीबीसी जैसे चैनलों में विश्वनीयता खोजने लगा तो ये न केवल भारतीय मीडिया के लिए शर्मनाक होगा बल्कि विश्व मे भारतीय मीडिया की छवि भी खराब होगी।

अतः आपसे आम नागरिक का निवेदन है कि आप जनता को निष्पक्षता से बिना किसी लाग लपेट के सही व विश्वसनीय विश्लेषण दिखाए जिससे न केवल भारतीय मीडिया की विश्वनीयता बढे बल्कि हमारे लोकतंत्र को भी मजबूती मिले। आप खुद जानते है कि आप जनता को मूल मुद्दों से भटका कर क्या परोस रहे है? 

आरक्षण पर लोगो का मानस क्या है आपसे छुपा नही है, संसद में महत्वपूर्ण कार्य होने के बजाय शोर शराबा होता है। जबकि जनहित के बिल रुक जस्ते है और सांसदों के लाभ के बिल पास हो जाते है, हमारा मीडिया चुप रहता है,इसी तरह पब्लिक संबंधित बहस नही होकर ऐसे मुद्दों पर समय जाया किया जाता है जिनका पब्लिक का कोई भला नही होना। जिसमें श्री देवी की मौत, सलमान खान की गिरफ्तारी व जमानत की ख़बरे दिन भर चलती है। जबकि बैंक घोटाले, घोटालेबाजो का देश छोड़कर भागना,एफडीआई, जीएसटी , पेट्रोल डीजल के दाम आदि  कईं मुद्दे जनता व सरकार के बीच चर्चा के होने चाहिए, यही नहीं  इन पर पूरी खोजपूर्ण खबरें जनता के समक्ष सच्चाई से आनी चाहिए थी। जिसमे सरकार का ध्यान उन कमियों की ओर दिलाना चाहिए जिनसे ऐसे घोटाले नही हो सके।

आपसे आम नागरिक ये अपेक्षा रखता है कि आप लोकतंत्र को मजबूत रखने के लिए जनता को सही व निष्पक्ष रास्ता दिखाएंगे अगर आपकी भूमिका निस्जपक्ष नही रही तो लोकतंत्र को जो नुकसान होगा उसके लिए मीडिया  को कभी माफ नही किया जा सकेगा।

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