शुक्रवार, 15 मई 2020

दुख हरो हे जनता! अब भी पैदल चल रहे इन लोगों का

दुख हरो हे जनता!
 अब भी पैदल चल रहे इन लोगों का


वाह रे कोरोना! इनके  दुख को 20 लाख करोड़ के पैकेज ने  दूर नहीं किया। ये अब भी पैदल चल रहे है।इनके लिए कब बसें चलेगी, न इनके पास देने को किराया है न खाने को रोटी और न पीने के लिए पानी के पैसे ही।

सरकारें तो कुछ करें या न करें कुछ लेकिन शहरों और गांवों से गुजरते इन लोगों के लिए सेवाभावी संस्थाएं तो जगह जगह इनके लिए सेवा शिविर लगा ही सकती है जैसे रामदेवरा पैदल जाते लोगों के लिए जगह जगह शिविर लगाएं जाते है निशुल्क खाना ,रहना और मालिश के लिए दर्द निवारक तेल। ताकि इनकी अपने गांव जाने की पैदल यात्रा आसान हो सकें।  मानवता की इससे बड़ी सेवा कोई हो ही नहीं सकती। सरकारों के भरोसे तो ये पलायन रुकता दिखता नहीं। गांव गांव के सेवाभावी लोगों को ही आगे आना होगा उन्हें अपने गांव की सड़कों से गुजरते ऐसे लोगों के लिए गांव के बाहर ही शिविर लगा कर इनकी सहायता करने को, ताकि ये पैदल चलते लोग वहां रुक सकें कुछ देर विश्राम कर सकें, भोजन कर सकें और जब थकान दूर हो जाएं तो वापस अपनी इस यात्रा पर आगे बढ़ सकें।

परिवारों के साथ जा रहे लोगों को एक ही टेंट में तो एकल लोगों को सोशल दिस्टेंगिंग से ठहराए। उनके गांव की सड़क पर पहुंचते ही सेनेताइज करें फिर उन्हें टेंट में भेजें उनके लिए खाने की व्यवस्था हो आराम करने लिए  बिस्तर चद्दरों सहित। जितने दिन वो रुकना चाहे रुके और जब वे चले जाएं तो उस स्थान को पहले सैनेताईज करें फिर उनके उपयोग में लिए गए बिस्तर आदि को 2-3 दिनों तक धूप में रखें फिर उनका उपयोग करें।

ये कोई मुश्किल नहीं बस इच्छाशक्ति की जरूरत है। गांव  में रहने वाले लोगों से ज्यादा तो पलायन वाले लोग नहीं है इसलिए गांव के लोग अगर चाहे तो इन पैदल चलते लोगों का दुख कुछ कम कर सकते है।

सरकारों के वश का नहीं है ये सब जनता अगर चाहे तो कर सकती है। ये पैदल चलते लोग वे है जिनके पास बसों और रेलों का किराया देने की सामर्थ्य नहीं है, अगर होती तो ये श्रमिक ट्रेनों में न अा जाते, उन स्पेशल ट्रेनों में नहीं अा जाते जिनमें राजधानी का किराया लगता है। इनकी मज़बूरी और बेबसी को समझे और अगर आपके गांव की सड़क से ऐसे लोग निकलते दिखे तो उनकी सहायता करें।
देखिए इनके पैरों की हालत नीचे के फोटो में क्या इन्हें कोई शौक है इस तरह पैदल चलने का।  कोई रास्ता नहीं दिखा तो ये चल पड़े है पैदल ही। क्या मानवता , हमारा धर्म नहीं कहता कि ऐसे लोगों की सहायता को हम आगे आएं।

ऐसे लोगों की मदद ही सच्ची सेवा है। उन गांवों के लोगों को भगवान ने सेवा का मौका दिया है जिन गांवों की सड़कों से ये लोग गुजर रहे है। इनके दिलों से निकली सच्ची दुआएं ही आपके जन्म जन्मांतर को सुखमय बना सकती है। इनकी सेवा भगवान की सेवा से भी बढ़कर होगी।

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