आप पार्टी मे वर्चस्व की लडाई शुरू हो गई है . आप के नेता जिन्होने इस पार्टी को सींचा है वे ही अब अपना वजूद चाहने लगे है और ये सही भी है कि जब कोई पेड बडा हो जाए तो उसके फल की चाह उन सभी को होती है जिन्होने उसे लगाया है .पेड लगाने के लिए जमीन को तलाश कर उसे लगाना और फिर उसे प्रतिरोपित करना ,फिर उसकी देखभाल करने से लेकर उसमे फल लगने तक साथ रहने वाले सभी लोग उसके फल की चाह रखते है और वे समझते है कि पहला फल चखने का पहला अधिकार उनका है और ये मानवीय प्रव्रति है ,लेकिन होता क्या है कि ,पौधा लगने तक तो कुछ लोग ही होते है लेकिन जब वो पौधा अच्छा पेड बनता अन्य लोगो को दिखता है तो वे भी उस पेड को सीचने मे जुट जाते है ,कारवा थोडा ज्यादा हो जाता है लेकिन पोधे के लिए जमीन तलाशने वाले और उसे प्रस्थापित करने वाले उस पर अपना अधिक अधिकार मानते है और जब पेड पहला फल देता है तो वे उस पर पहला हक अपना मानते है जबकि बाद मे जुटने वाले भी उसी फल को पहले अपना मानते है और ऐसे शुरू होता है वर्चस्व का दौर . आप बतावे कि पहला हक किसका है ? पेड के लिए जमीन तलाश कर उसे प्रतिस्थापित कर उसे पौधा बनाने वाले लोगो का ?अथवा पौधा बनने के बाद उसे पेड बनाने मे सहयोग करने वाले लोगो का ? या सभी का बराबर अधिकार है पहला फल चखने का . आप पार्टी मे पहला फल पका हुआ दिल्ली की सत्ता रूपी बागडोर का है जिसे सभी अपना बता कर श्रेय लेना चाहते है .हालाकि धीरज रहे तो इस पेड मे कई और फल लग सकते है लेकिन पहले फल को ही पाने की लालसा ने इसा पार्टी मे ये नौबत ला दी है .अब देखना है कि कौन धीरज से संतोश से इसे खाने को राज़ी होता है और कौन उतावली मे है
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