सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

भूमी अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध मे अन्ना का जंतर मंतर पर धरना


भूमी अधिग्रहण कानून 2013 के कुछ प्रावधानो मे संशोधंन के लिए भाजपा सरकार द्वारा दिसम्बर 2014 मे लाए गये अध्यादेश का विरोध जहा पहले विपक्षी दल ही कर रहे थे ,अब उस अध्यादेश का विरोध करने अन्ना हज़ारे भी पहुच गए है और उनके साथ मेधा पाटकर सहित करीब 70-80 किसान संगठन बताए जा रहे है .वास्तव मे 2013 मे जो भूमी अधिग्रहण बिल संसद मे पास किया गया उसका विरोध न तो उस समय बीजेपी ने किया और न ही किसान संगठनो और अन्ना हज़ारे ने किया ,तब अचानक बीजेपी के दिसम्बर 2014 के अध्यादेश का सभी क्यो विरोध करने लगे है ऐसे क्या संशोधन अध्यादेश के माध्यम से किये गये है कि इसका विरोध शुरू हो गया है . आईये कुछ समझने की कोशिश करते है कि आखिर जो बीजेपी 2013 के बिल पर सहमत थी तो फिर ऐसी क्या मजबूरिया थी कि उसे 2014 मे सत्ता मे आते ही इस बिल मे संशोधन के लिये संसद के सत्र तक का इंतज़ार नही था और उसे अध्यादेश के माध्यम से रष्ट्रपति महोदय से हस्ताक्षर कराकर लागू करना पडा और अब 6 महिने मे अध्यादेश को संसद मे पास कराने की अनिवार्यता ने सरकार को विरोध के रूप मे देखना पड रहा है
क्यो है विरोध ?
जानकारो का मानना है कि इस अध्यादेश के माध्यम से नरेन्द्र मोदी सरकार ने जो संशोधन किए है वह किसान विरोधी है ,जिसमे यह संशोधन सबसे बडा विरोध का कारण है कि 2013 के भूमी अधिग्रहण कानून मे निजी या कारपोरेट द्वारा भूमी के अधिग्रहण से पूर्व 80% भूमी मालिको की सहमति होने पर ही भूमी का अधिग्रहण किया जा सकेगा,सरकारी मामलो मे यदि भूमी अधिग्रहण अनिवार्य होने पर 70% मालिको की सहमति जरूरी होगी ,लेकिन इस सरकार ने इस प्रावधान को समाप्त कर दिया है अर्थात अब भूमी मालिको की सहमति जरूरी नही होगी यदि किसी निजी या कारपोरेट घराने को भूमी की जरूरत होगी तो वह अपनी जरूरत के हिसाब से भूमी को अधिग्रहित करा सकेगा इसके लिए 80% भूमी मालिको की सहमति के प्रावधान को हटा दिया गया है अर्थात यदि किसी निजी या कारपोरेट घराने को अपना उद्योग स्थापित करने के लिए भूमी की जरूरत होगी तो वह भूमी अधिग्रहित करा सकेगा
दूसरा विरोध का कारण यह बताया जा रहा है कि 2013 के भूमी अधिग्रहण कानून मे किसानो को या भूमि मालिको को उनकी भूमी की किमत निजी या कारपोरेट व भूमि मालिको के बीच हुई सहमति से निर्धारित होगी लेकिन विरोध करने वालो का कहना है कि नए लाये अध्यादेश मे नरेन्द्र मोदी सरकार ने यह प्रावधान हटाकर निजी या कारपोरेट द्वारा दी गई कीमत पर ही भूमी मालिको को संतोष करना पडेगा,यदि इसमे सच्चाई है तो यह वास्तव मे विरोध का कारण है ही ये तो एक तरह से पूंजीपतियो को मनमानी करने की खुली छूट देना है जो गरीब और कमजोर किसानो व भूमि मालिको की कमर तोड देने वाला है
तीसरा विरोध इस अध्यादेश का इस कारण भी हो रहा है कि यदि कोई किसान तय किया मुआवजा लेने को राजी नही होता है तो उसका मुआवजा सरकारी कोष मे जमा कराया जा सकता है अर्थात सरकार या निजी और कारपोरेट घराना जो मुआवजा तय करता है वो ही मुआवजा भूमि मालिको को लेना पडॆगा नही तो वह सरकारी कोष मे जमा हो जाएगा और भूमी का मालिकाना हक उस सरकारी ,निजी या कारपोरेट घराने के पास चला जाएगा जिसने भूमि का अधिग्रहण किया है यदि ये सही है तो इसका सीधा सीधा अर्थ तो भूमि छिनना हुआ

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