मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

दिल्ली के चुनावो से भाजपा और कांग्रेस दोनो बडी पार्टियो को सबक लेने की जरूरत है : जनता ने उनको चुना जिन्होने बिना किसी जातिय भेदभाव के वोट मांगे ,


दिल्ली की जनता ने पूरे देश के लोगो के मिजाज को बता दिया है कि जनता किसी भी जाति,धर्म,समुदाय को अपना वोट बैंक समझने वाली पार्टीयो को नकारने लगी है , इन चुनावो मे ना तो इमाम बुखारी की अपील को जनता ने स्वीकार किया और ना ही राम रहीम के 22 लाख अनुयायियो ने. उन्होने इन राजनीतिक दलो को ये बता दिया है कि अब उनको जाति धर्म समुदाय के आधार पर वोट मांगने की अपनी रणनीति को बदल लेना चाहिये वरना उनका हष्र आगामी चुनावो मे दिल्ली जैसा होने मे देर नही लगेगी , अब भारत की जनता, बांटने की राजनीति पर वोट देने की परम्परा को छोडने की तैयारी मे है और इसकी शुरूआत दिल्ली से हो चुकी है, अब वोट विकास के नाम पर ही मिलने की मानसिकता जोर पकडने लगी है , जो पार्टी जनता के इस मिज़ाज़ को जितना जल्दी समझ लेगी वो उतना ही जल्दी भारत के लोगो के दिलो पर राज़ करने मे सक्षम होगी.इसका उदाहरण केजरीवाल को दिल्ली की जनता द्वारा सत्ता सोपना है, जिन्होने आम जनता के दैनिक जीवन मे आने वाली कठ्नाईयो को अपना मुद्दा बनाया और जाति, धर्म और समुदाय से उपर उठकर वोट करने की अपील की उसका असर ये हुआ कि हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख,ईसाई सभी ने जात पांत से उपर उठकर उन्हे इतना वोट दिया कि भारतीय लोकत्ंत्र के इतिहास मे आज तक किसी को ऐसा बहुमत कभी नही मिला और शायद कभी किसी को मिले भी नही 70 सीटो मे से 67 सीटो पर (रूझान के अनुसार ,हो सकता है 1-2 सीटो मे फाईनल रिजल्ट तक बदलाव हो जाए,और ये भी कि संख्या ये ही रहे ) बहुमत , खुद केजरीवाल इतने अधिक बहुमत से अच्ंभित है , कारण स्पश्ट है कि पिछली बार जनता ने समझ लिया कि केजरीवाल काम करके दिखाने वाले नेता है लेकिन स्पष्ट बहुमत नही मिलने के कारण वे काम नही कर सके ,इस बार जनता ने इस काम करने वाले व्यक्ति पर विश्वास किया है और इनकी झोली इतनी लबालब कर दी है कि अब ये जनता को नही कह सकते कि स्पष्ट बहुमत नही मिलने के कारण हमारी पार्टी अपने वादे पूरे नही कर सकती , अब बारी केजरीवाल की है कि वो जनता की झोली मे अपने किये वादो से भरते है या नही , यदि उन्होने भी भाजपा की तरह इन वादो को चुनावी जुमला कहकर भुलने की कोशिश की तो जनता उनका भी हष्र , केन्द्र की 9 महिने पुरानी सरकार का किया है , वो दोहराने मे समय नही लगाएगी.अब जनता ने ये मिथक तोड दिया कि वोट जांत पांत ,धर्म या समुदायो के मठाधीशो से अपील कराने से मिल सकते है ,जनता जागरूक हो रही है और नेताओ की लफ्फाजियो को समझने लगी है ,उन्हे तो जो काम करता हुआ दिखाई देगा वोट उसे ही मिलेगा,इस रास्ते को अखित्यार करने लग गई है , इसलिए सभी राजनीतिक दलो को समझ लेना चाहिए कि आने वाले चुनावो मे वो लोगो की तक्लीफो पर अपने एजेन्दे बनाए और जाति ,धर्म के नाम पर वोट बटोरने की राजनीति को तिलांजली दे, जो रजनीतिक दल जनता के इस मिज़ाज़ को जितना जल्दी पकडेगा वो उतना ही जल्दी भारतीय राजनीति को अपने पक्ष मे करने मे सफल रहेगा ,साथ ही एक बात और कि लफ्फाजी का जुमला जनता को कुछ दिनो तक तो लुभा सकता है लेकिन उसे उतरते भी ज्यादा समय नही लगता ,जो इसे समझ लेगा वो सफल हो जायेगा और जो नही समझेगा वो पिछड जायेगा

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