सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

क्यो जरूरी था भूमि अधिग्रहण बिल 2013 मे अध्यादेश के माध्यम से संशोधन ?


बीजेपी सरकार को भूमि अधिग्रहण कानून 2013 मे कुछ संशोधनो की जरूरत अध्यादेश के माध्यम से दिसम्बर 2014 मे करने की क्या जल्दी थी और वह भी तब जबकि दो महिने बाद फरवरी मे तो बज़ट सत्र होने ही वाला था ,फिर क्यो अध्यादेश लाने की जल्दी थी ,बजट सत्र मे ही संशोधन बिल पेश कर, बहस के बाद इसे पारित कराया जा सकता था .बीजेपी इसका जो कारण बताती है वो एक हो सकता है कि अन्य बिलो मे इसके प्रभावी होने से संशोधन की समस्या हो जाती इसलिए कानूनी बाध्यता के चलते इसे 29 दिसम्बर को लाना पडा .हो सकता है यह अपनी जगह सही भी हो लेकिन जानकारो का मानना है कि ये अध्यादेश लाना इसलिए भी जरूरि था क्योकि 26 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा भारत आ रहे थे और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मेक इन इंडिया कार्यक्रम के कारण उनके साथा आने वाले कम्पनियो कए सी ओज को निवेश के लिये प्रोत्साहित करने के लिये उन्हे ये बताना जरूरी था कि भारत मे उनके लिये उद्योग लगाना कितना आसान है ,इस संशोधन से उन निवेशको मे ये सन्देश दिया गया कि उनके लिये �भारत मे भूमि खरीदने मे उन्हे कोई परेशानी नही होगी और वे आसानी से अपनी च्वाईस की भूमि अपनी शर्तो पर कही भी खरीद सकते है भारत का कानून कही उनके लिए बाधक नही बनेगा
इससे प्रभावित होकर ही ओबामा ने भारत के 100 शहरो को स्मार्ट सिटी बनाने का आश्वासन दे गये ,क्या आप जानते है वे 100 शहर कौनसे है ? ये सभी शहर ऐसे है जहा जमीनो की किमते आसमान छू रही है ऐसे मे समार्ट सिटी बनाने के लिए उन कम्पनियो को जमीन तो चाहिए ना ,अगर 2013 का भूमि अधिग्रहण कानून लागू रहता तो इन कम्पनियो को 80% भूमि मालिको की सहमति जरूरी होती जो तभी हो पाती जबकि भूमि मालिको को उचित दाम मिलते ऐसे मे स्मार्ट सिटी बनाने वाली कम्पनियो को ज्यादा रकम भूमि मालिको को देनी पडती ,और ये भी हो सकता थ कि ये कम्पनिया अपने हाथ भी खींच लेती इससे निपटने के लिए और उनकी बाधा दूर करने के लिए ओबामा के आने से पहले ये संशोधन जरूरी हो गये थे और अध्यादेश लाने के अलावा और कोई सरल रास्ता भी नही था .उधोगो के लिये किसानो की भूमि अपनी मन चाही कीमत पर लेना तो ऐसे ही हुआ कि एक घर को बसाने के लिये बसे बसाए घर को उजाडना .हा ये सही है कि भारत मे उधोगो के लिए इंफ्रास्ट्रचर ,व सरल,आसान प्रक्रिया जरूरी है लेकिन उसके लिए भूमि मालिको, किसानो को उन उधोगो के मालिको के रहमो करम पर छोड देना तो लोकतांत्रिक मूल्यो के अनूकूल नही कहा जा सकता ,खेती को उजाड कर यदि हम ओधोगिकिकरण करना चाहते है तो क्या इसे समझ्दारी कही जा सकती है जबकि हमारा देश क्रषि प्रधान कहा जाता हो ओधोगिकीकरण भी उतना ही जरूरी है जितना कि खेती और किसानो का हित

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